वर्ष 2004 के लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा का बोरिया-बिस्तर गोल करने और केंद्र में कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार बनवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका वाली शख्सियत थे मुलायम सिंह यादव।
सबसे अधिक आबादी वाले इस प्रदेश में दो दशक बाद फिर समाजवादी पार्टी जोरदार प्रदर्शन करते हुए न केवल भाजपा से अधिक सीट पाने की ओर अग्रसर है, बल्कि इसके मुखिया अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम के नक्शेकदम पर चलते हुए भाजपा को तीसरी बार केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने से रोक दिया है।
दो दशक पहले मुलायम सिंह यादव ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को साथ लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति का रुख मोड़ दिया था। उस समय भाजपा राज्य की 80 में से केवल 10 सीट ही जीत पाई थी। देश भर में उसे 138 सीट ही मिलीं, जबकि कांग्रेस को सात ज्यादा 145 सीट हासिल हुई थीं। अखिलेश यादव ने अपने पिता के अनुभवों का इस्तेमाल इस चुनाव में किया। वर्ष 2014 के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा के हाथों लगातार लोक सभा और विधान सभा चुनाव हारने वाले अखिलेश ने इस बार प्रत्याशियों के चयन में महीनों मंथन किया। कांग्रेस के साथ गठबंधन ने दोनों ही दलों को फायदा पहुंचाया।
इस बार लोक सभा की 62 सीटों पर लड़ी समाजवादी पार्टी ने केवल पांच यादव उम्मीदवारों को ही टिकट दिया। कन्नौज से अखिलेश स्वयं मैदान में उतरे तो पत्नी डिंपल को मैनपुरी का मोर्चा दिया। उन्होंने चचेरे भाइयों को भी टिकट दिया। अन्य सीटों पर अखिलेश ने अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के लोगों को चुनाव लड़ाया। इनमें कई ऐसे थे जो पिछले चुनावों में भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज कर चुके थे।
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट रॉबर्ट्सगंज से सपा ने छोटेलाल खरवार को टिकट दिया जो 2014 में भाजपा के जीत दर्ज कर चुके थे। मिर्जापुर से सपा ने रमेश चंद बिंद को उतारा जो 2019 में भदोही से भाजपा के सांसद थे। बसपा के गाजीपुर सांसद अफजाल अंसारी को भी सपा में लाया गया।
राम मंदिर निर्माण के चलते भाजपा की प्रतिष्ठा से जुड़ी अयोध्या (फैजाबाद) की इस जनरल सीट पर सपा ने भाजपा के लल्लू सिंह के खिलाफ अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले अवधेश प्रसाद को मैदान में उतारा। पूर्वांचल में बड़ी संख्या में गैर यादवों को टिकट देने के कारण पिछड़ी जातियां सपा की ओर चली गईं।
अपनी आंबेडकर वाहिनी यूनिट के जरिए अखिलेश यादव ने दलितों में मजबूत पैठ बनाई। चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी के साथ मिलकर अखिलेश इस वर्ग को यह संदेश पहुंचाने में सफल रहे कि यदि भाजपा दोबारा सत्ता में आई तो वह किस तरह संविधान को बदल सकती है।