जगदीप कपूर की समसिका मार्केटिंग कंसल्टेंट्स के पास कैरियर, ओटिस, सिंथॉल, फेविकोल, रिलायंस और गोदरेज जैसे क्लाइंट हैं।
1983 में एमबीए के बाद वोल्टास से करियर शुरू करने वाले कपूर जीटीसी इंडस्ट्रीज और पार्ले एग्रो समेत कई कंपनियों के लिए काम कर चुके हैं। कपूर से भैरवी अय्यर की बातचीत के अंश।
क्या आपको लगता है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदली है?
ग्रामीण परिदृश्य कमोबेश पहले जैसा ही है। अगर कुछ बदला है तो वह शहरी बाजार का ग्रामीण बाजार के प्रति नजरिया है। अब पहले की तुलना में अधिक कंपनियां ग्रामीण बाजारों पर ध्यान दे रही हैं। और यही होना भी था क्योंकि शहरी बाजार में एक स्थिरता सी आ गई है। आज के समय में अगर कहीं संभावनाएं नजर आती हैं तो वे ग्रामीण बाजार ही हैं।
बाजार के खिलाड़ियों को अचानक से ग्रामीण बाजारों में काफी संभावनाएं नजर आने लगी हैं और उन्हें लगता है कि इस संभावना का एहसास उन्हें बहुत पहले हो जाना चाहिए था। अगर आप मुझसे पूछें तो मैं यही कहूंगा कि असली बदलाव तो 1980 के दौर में टेलीविजन के आने से आया। हालांकि उसके बाद से ही किसी ने ग्रामीण क्षेत्रों में खुद जाकर सुध लेने की नहीं सोची।
काफी कम संख्या में कंपनियों ने इस ओर ध्यान दिया। मैं इस बारे में आपके सामने कुछ आंकड़े रखता हूं: वर्ष 1901 में भारत की 89 फीसदी आबादी गांवों में रहती थी और महज 11 फीसदी शहरों और कस्बों में बसती थी। अगर ठीक 100 साल बाद की स्थिति पर भी नजर डालें तो पता चलता है कि देश की 72 फीसदी आबादी अब भी ग्रामीण इलाकों में ही रह रही है।
इस तरीके से भौगोलिक परिदृश्य में कोई खास बदलाव नहीं आया है। भारत अब भी गांवों का देश ही है। अंतर केवल इतना है कि शहरी बाजारों को अब यह समझ में आने लगा है कि उन्हें ग्रामीण बाजारों पर भी ध्यान देना शुरू करना चाहिए।
ग्रामीण उपभोक्ताओं में किस तरीके के बदलाव नजर आ रहे हैं?
वे अब ज्यादा जागरूक हो गए हैं। उनके पास भी सूचनाएं पहुंच रही हैं और वे वैसी सेवाओं की ही मांग कर सकते हैं जो शहरी उपभोक्ताओं को मिल रही हैं। वे ब्रांड को लेकर भी जागरूक हो गए हैं। पहले उन्हें जो भी मिलता था, वे उससे ही खुश रहा करते थे पर अब वे चुनना पसंद करते हैं।
अब ग्रामीण खरीदारों में शहरी बनाम ग्रामीण उपभोक्ता का द्वंद्व नहीं है। ग्रामीण उपभोक्ताओं में अगर किसी बात का रोष है तो वह यह कि उन तक सामान नहीं पहुंच रहा। कई बार मार्केटर ग्रामीण बाजारों को सबसे कम तरजीह देते हैं और इस तरह ग्रामीण उपभोक्ताओं को उन पर भरोसा नहीं रहता है।
ग्रामीण भारत में सबसे अधिक बिकने वाली कौन सी श्रेणियां हैं?
यहां तीन तरह की श्रेणियां हैं। पहला वर्ग ग्रामीण-ग्रामीण है। ऐसे उत्पाद जो मुख्य रूप से ग्रामीण बाजारों में ही इस्तेमाल किए जाते हैं, जैसे कि ट्रैक्टर, बीज और खाद। दूसरा वर्ग ग्रामीण-शहरी है जिसमें ऐसे उत्पाद शामिल हैं जो दोनों जगहों पर इस्तेमाल किए जाते हैं। इनमें ट्रांजिस्टर, साइकिल, साबुन, शैंपू, बैटरी और वॉशिंग पाउडर आदि शामिल है।
तीसरा वर्ग शहरी-शहरी का है और इसमें सबसे अधिक बिकने वाली वस्तु मोबाइल है। ग्रामीण भारत में पहले तो फोन भी नहीं के बराबर हुआ करते थे, पर अब वे फोन नहीं होने से मोबाइल की तरफ बढ़ रहे हैं। डायरेक्ट-टू-होम टेलीविजन के मामले भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। जहां पहले गांवों में टीवी तक नहीं हुआ करता था, वहीं अब वे डीटीएच की ओर बढ़ रहे हैं।
क्या अब धीरे धीरे ज्यादा संख्या में बाजार के खिलाड़ी ग्रामीण मार्केटिंग के लिए आपसे संपर्क कर रहे हैं?
हां, ग्रामीण बाजारों की ओर ध्यान देने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। कुछ को ऐसा अनिवार्य रूप से करना पड़ रहा है तो कुछ संभावनाओं को भांपते हुए ऐसा कर रहे हैं।
शहर की तुलना में ग्रामीण बाजारों में ब्रांड को मजबूत बनाना कैसे अलग है?
आप इसके लिए कोई अलग तरीका नहीं अपनाते हैं। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि एसएमएस के जरिए मार्केटिंग शहरों में ही कारगर रहेगी, पर यह सब बस कहने की बात है।
एसएमएस ग्रामीण बाजारों में भी प्रभावी हो सकती है। आप प्रचार के लिए जो कंटेंट तैयार करेंगे, बस उसके लिए भाषा का ध्यान रखना होगा। आपके पास तकनीक है तो उसका इस्तेमाल करें। वहां शिक्षा एक बाधा हो सकती है पर ऐसा नहीं है कि वे सुन या देख नहीं सकते हैं। अगर आप ग्रामीण उपभोक्ताओं तक सशक्त रूप से अपनी बात पहुंचा पाते हैं तो आपके लिए संभावनाएं हैं।
जो कंपनियां ग्रामीण बाजारों में अपनी पकड़ बनाने की कोशिश में जुटी हैं उनके लिए आपकी क्या सलाह है?
पहली बात तो यह कि वे मुख्य कार्यालय (हेड ऑफिस) की अवधारणा भूल जाएं। अगर किसी कंपनी का मुख्य कार्यालय मुंबई, दिल्ली या फिर बेंगलुरु में है तो दूर दराज के इलाकों में वहां से कारोबार पर ध्यान देना मुमकिन ही नहीं है। हर इलाके के लिए मुख्य कार्यालय होना जरूरी है, खासतौर पर ग्रामीण इलाकों के लिए।
आमतौर पर ग्रामीण बाजारों के लिए दौरे तो आयोजित किए जाते हैं पर वहां वरिष्ठ स्तर का कोई अधिकारी मौजूद नहीं होता है। दूसरी बात यह कि ग्रामीण उपभोक्ताओं को समझने के लिए भी मशक्कत की जाए। तीसरी बात यह कि ग्रामीण उपभोक्ताओं के बीच विश्वसनीयता बनाने की कोशिश की जाए। अगर ऐसा संभव हो जाता है तो भारत का ग्रामीण बाजार पूरी दुनिया में सबसे तेजी से उभरता बाजार होगा।
