केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वैश्विक ऋण कमजोरियों के प्रबंधन की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने आज कहा कि भारत ने ‘ग्लोबल साउथ’ की चिंताओं को व्यक्त कर अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा किया है। भारत ने कुछ देशों की ऋण की समस्या को जोरदार ढंग से उठाया है।
वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक द्वारा मुंबई में आयोजित जी-20 के एक सत्र को ऑनलाइन संबोधित करते हुए सीतारमण ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय निम्न-आय और कमजोर मध्यम-आय वाले देशों के लिए ऋण पुनर्गठन प्रयासों में समन्वय के मजबूत तरीके ढूंढें। इस दिशा में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को समन्वित ढंग से कार्य करना चाहिए। हमने हाल के वर्षों में इतनी बड़ी चुनौतियां कभी नहीं देखीं। ऐसे कदमों से कमजोर अर्थव्यस्थाओं को आर्थिक मुश्किलों से बचाने में मदद की जा सकती है।’
सीतारमण ने कहा कि भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि भू-राजनीतिक मतभेद अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रभावित न करें और यही जी-20 समूह और शिखर सम्मेलन की मुख्य अवधारणा है। शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं के समूह की अपनी अध्यक्षता के हिस्से के रूप में भारत ने वैश्विक दक्षिण की आवाज बनने की अपनी प्रतिबद्धता के कारण वैश्विक ऋण कमजोरियों के प्रबंधन को बहुत महत्त्व दिया है।
दिल्ली में जी20 की बैठक से माह भर पहले सीतारमण ने कहा कि अब तक भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग के मूल जी-20 जनादेश पर ‘भू-राजनीतिक मतभेद हावी न हों।’ उन्होंने कहा कि भारत की अध्यक्षता ने यह सुनिश्चित किया है कि 2023 में जी-20 के लिए विकास का एजेंडा कायम रखते हुए सभी आर्थिक मुद्दों पर आम राय बन सके।