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ग्रामीण अर्थव्यवस्था में असमान वृद्धि

Last Updated- December 12, 2022 | 12:00 AM IST

आर्थिक झटकों से उबरने में सक्षम मानी जाने वाली देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था असमान वृद्धि के सात संकेत दे रही है। एक तरफ लगता है कि महामारी के बाद ग्रामीण क्षेत्र में निवेश शुरू हुआ है। वर्ष 2019 से कृषि और विपणन में मददगार भारी वाहनों की बिक्री 30 फीसदी से अधिक बढ़ी है, जबकि निर्माण उपकरणों की बिक्री में 60 फीसदी से अधिक इजाफा हुआ है।
दूसरी तरफ ग्रामीण उपभोक्ता मांग में ठहराव आ गया है। रोजमर्रा के सामान (एफएमसीजी) की ग्रामीण बिक्री में वृद्धि अगस्त और सितंबर में 5 फीसदी से नीचे रही है। दोपहिया की बिक्री अपने वर्ष 2019 के स्तरों से दूर है। छोटे शहरों में टेलीविजन की बिक्री भी घटी है। पिछले ढाई साल के दौरान कृषि ऋण में महज 19 फीसदी इजाफा हुआ है। इसके अलावा श्रम की अतिरिक्त आपूर्ति करीब एक करोड़ है, जिसे इस समय रोजाना 210 रुपये में काम करना पड़ रहा है।
ग्रामीण उपभोक्ता मांग में दबाव : सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के वाहन डैशबोर्ड के मुताबिक सितंबर 2021 में दोपहिया की खुदरा बिक्री सुधरकर जनवरी 2019 के स्तरों के केवल 75 फीसदी पर पहुंची है। दोपहिया, विशेष रूप से गियर वाली मोटरसाइकलों की करीब आधी बिक्री ग्रामीण क्षेत्रों में होती है।
उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इस साल जनवरी से जुलाई के बीच एफएमसीजी उत्पादों की बिक्री में वृद्धि 12 फीसदी से ज्यादा घटी है। यह अगस्त और सितंबर में सालाना आधार पर करीब तीन फीसदी रही। शहरी बिक्री में वृद्धि जनवरी से सितंबर तक की अवधि में करीब 12 फीसदी रही है।
बहुत से आंकड़े ई-कॉमर्स क्षेत्र में शानदार वृद्धि का संकेत देते हैं। उदाहरण के लिए नीलसनआईक्यू ने पाया है कि वर्ष 2021 में ई-कॉमर्स बिक्री 2019 से 33 फीसदी अधिक है। अग्रणी ई-कॉमर्स कंपनियां ज्यादातर ग्रामीण पिन कोड पर सामान पहुंचा रही हैं। इसलिए ई-कॉमर्स के जरिये खपत में अच्छी वृद्धि हो सकती है, लेकिन इसे साबित करने के लिए फिलहाल कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
उपभोक्ता विश्लेषण कंपनी जीएफके के मुताबिक टिकाऊ उपभोक्ता सामान की बिक्री महामारी से पहले के स्तरों के 92 फीसदी पर पहुंच गई है। जीएफके के आंकड़ों से पता चलता है कि टीवी, माइक्रोवेव और एसी जैसे प्रमुख टिकाऊ उत्पादों की बिक्री 2019 से 2021 के बीच बड़े शहरों में 10 फीसदी और छोटे शहरों में 5 फीसदी लुढ़की है। लेकिन इन आंकड़ों में चौंकाने वाली चीज टीवी की बिक्री है। यह बड़े शहरों में महामारी से पहले की तुलना में 22 फीसदी, मझोले एवं छोटे शहरों तथा कस्बों में 18 फीसदी कम है।
ग्रामीण निवेश मांग हमेशा की तरह मजबूत  अगर खपत कमजोर पड़ रही है तो ग्रामीण निवेश 2021 में बढ़ रहा है। महामारी के बावजूद वर्ष 2019 से दो साल में ट्रैक्टरों, खाद्य ढोने वाले ट्रेलरों और हार्वेस्टरों की बिक्री 30 फीसदी से अधिक बढ़ी है। वर्ष 2019 में हर महीने औसतन 370 हार्वेस्टरों की बिक्री होती थी, जो 2020 में बढ़कर 580 प्रति महीना और 2021 मेें 820 प्रति महीना हो गई है। वाहन आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2019 में हर महीने 30,000 से 45,000 नए ट्रैक्टर पंजीकृत हो रहे थे। यह आंकड़ा 2020 में बढ़कर 40,000 से 60,000 हो गया। वर्ष 2021 में नए ट्रैक्टरों का पंजीकरण हर महीने 45,000 से ऊपर रहा है। इस साल जुलाई में पंजीकरण 74,000 और अगस्त मेें 65,000 रहे। इससे महामारी से पहले के मुकाबले अच्छी वृद्धि का पता चलता है। वर्ष 2019 में खाद्यान्न ढोने वाले ट्रेलरों की मासिक बिक्री 3,000 से कम थी। यह आंकड़ा महामारी के बाद 4,000 से ऊपर बना हुआ है। गैर-कृषि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी निवेश बढ़ रहा है। वाहन आंकड़ों के मुताबिक निर्माण उपकरणों की खुदरा बिक्री जनवरी 2019 से 61 फीसदी बढ़ी है।  कृषि इनपुट का अहम हिस्सा माने जाने वाले उर्वरकों की बिक्री खरीफ बुआई की जून से अगस्त अवधि में 1.73 करोड़ टन के स्तर पर सपाट रही है।

रोजगार की स्थिति श्रम बाजार में दबाव का संकेत
लेकिन महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम की मांग से बेहतर संकेत क्या हो सकता है। मनरेगा के तहत काम की मांग औसत से अधिक रही है। 2020 में जब अन्य क्षेत्रों से रोजगार छिन रहा था तब सरकार ने सहारे के रूप में मनरेगा को बढ़ावा दिया था। लेकिन 2021 में इसके तहत काम की मांग और भी बढ़ गई है। महामारी से पहले की अवधि की तुलना में 2021 में एक करोड़ ज्यादा परिवार हर महीने काम की मांग कर रहे हैं। आम तौर पर सितंबर में मनरेगा के तहत परिवारों की काम की मांग कम रहती है। वर्ष 2016 और 2017 के सितंबर महीने में मांग 1 से 1.1 करोड़ थी, जो वर्ष 2018 और 2019 में बढ़कर 1.4 से 1.5 करोड़ पर पहुंच गई। वर्ष 2020 में 2.4 करोड़ परिवारों ने काम की मांग की। यह आंकड़ा सितंबर 2021 में 2.3 करोड़ के औसत सामान्य से ऊपर रहा।

महंगाई ने बिगाड़ी बात
हालांकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बनावट बदल रही है, लेकिन कृषि या गैर-कृषि क्षेत्रों में काम करने वाले ग्रामीण श्रमिकों पर शेष आबादी की तुलना में महंगाई का कम असर पड़ रहा है। लेकिन अर्थव्यवस्था में सुधार होने पर वे कीमतों में बढ़ोतरी से पूरी तरह बचे रहेंगे?  खाद्य कीमतें इतनी कम हैं कि वे मुख्य महंगाई को नीचे ला रही हैं। लेकिन अन्य चीजों, विशेष रूप से रसोई गैस में महंगाई की वजह से उपभोक्ता मांग में सुस्त वृद्धि हो सकती है। ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली और रसोई ईंधन सम्मिलित रूप से पिछले साल के मुकाबले 11.5 फीसदी महंगे हुए हैं। इन दोनों के दाम शहरों में 17.2 फीसदी बढ़े हैं।

First Published - October 25, 2021 | 11:29 PM IST

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