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घरेलू कंपनियों ने संकेत दिया है कि अमेरिकी प्रशासन द्वारा चीन के सामान पर ज्यादा शुल्क लगाए जाने के बाद से आयात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

Last Updated- April 14, 2025 | 10:54 PM IST
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प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो क्रेडिट: Pixabay

अमेरिका ने चीन से अपने देश में आने वाले उत्पादों पर ज्यादा शुल्क लगा दिया है। इसे देखते हुए विभिन्न क्षेत्रों के भारतीय निर्यातक घरेलू बाजार में चीनी सामान की ‘डंपिंग’ को लेकर चिंता जता रहे हैं। उद्योग जगत के लोगों का कहना है कि पिछले दो हफ्ते में चीन से आयात काफी बढ़ गया है जिसकी वजह से कुछ क्षेत्रों में कीमतों में भारी असमानता पैदा हो गई है। अधिक आपूर्ति से घरेलू विनिर्माताओं को नुकसान हो रहा है।

उदाहरण के लिए आयातित विस्कोस स्टेपल यार्न (वीएसवाई) का दाम घरेलू स्तर पर तैयार वीएसवाई से करीब 13 रुपये प्रति किलोग्राम कम है। इसी तरह अन्य श्रे​णियों जैसे कि रबर के दस्ताने (कीमत का अंतर प्रति 1,000 नग पर 8 डॉलर तक) और चिकित्सा उपकरण (12 प्रमुख श्रेणियों में आयात 80 फीसदी तक बढ़ गया है) उद्योग ने सरकार के समक्ष इस मुद्दे को उठाया है और तत्काल डंपिंग रोधी शुल्क लगाने की मांग की है। ​खिलौना उद्योग के सूत्रों ने भी बताया कि चीन से पूरी तरह से तैयार किट के आयात में वृद्धि हुई है जबकि ऐसे सामान के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) का प्रमाणन अनिवार्य है।

हालांकि ज्यादातर उत्पादों के आयात में पिछले दो हफ्तों के दौरान कितनी तेजी आई है, इस आंकड़े का पता अभी नहीं लगाया जा सकता है मगर घरेलू कंपनियों ने संकेत दिया है कि अमेरिकी प्रशासन द्वारा चीन के सामान पर ज्यादा शुल्क लगाए जाने के बाद से आयात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। तमिलनाडु स्पिनिंग मिल्स एसोसिएशन ने चीन से सस्ते धागे का आयात बढ़ने से घरेलू कताई मिलों के बंद होने और नौकरियां जाने की चेतावनी दी है।

एसोसिएशन के मुख्य सलाहकार के वेंकटचलम ने कहा, ‘अमेरिका और चीन के बीच शुल्क को लेकर जंग छिड़ी हुई है। ऐसे में चीन काफी कम दाम (185 रुपये प्रति किलोग्राम) पर भारत में वीएसवाई की डंपिंग कर रहा है। घरेलू वीएसवाई की कीमत 198 रुपये प्रति किलोग्राम है। हम चाहते हैं कपड़ा मंत्रालय और वा​णिज्य मंत्रालय दोनों इस मामले में हस्तक्षेप करें और चीन से आने वाले वीएसवाई पर डंपिंग रोधी शुल्क लगाएं।’

दिलचस्प है कि वीएसवाई के निर्माण के लिए प्रमुख कच्चा माल विस्कोस स्टेपल फाइबर (वीएसएफ) के आयात पर पहले से ही गुणवत्ता नियंत्रण आदेश के तहत पाबंदी लगी हुई है और बुने हुए कपड़ों और पॉलिएस्टर यार्न/फैब्रिक पर डंपिंग शुल्क लगाया गया है। इंडियन टेक्सप्रेन्योर्स फेडरेशन के संयोजक प्रभु दामोदरन ने कहा, ‘सैकड़ों कताई मिलें पहले से ही दबाव में हैं। अनियंत्रित आयात इस क्षेत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।’

सरकार ने उद्योगों के लिए हेल्पडेस्क स्थापित किया है जिस पर वे ट्रंप शुल्क के कारण उत्पन्न अन्य चुनौतियों के अलावा डंपिंग के संबंध में अपनी चिंता बता सकें।

घरेलू उद्योग की सुरक्षा के लिए भारतीय रबर दस्ताना विनिर्माता संघ और भारतीय चिकित्सा उपकरण उद्योग संघ ने भी वाणिज्य मंत्रालय से गुहार लगाई है। भारतीय रबर दस्ताना विनिर्माता संघ ने मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों के माध्यम से निम्न गुणवत्ता वाले दस्तानों की संभावित आपूर्ति के बारे में भी चिंता जताई।  

भारतीय रबर दस्ताना विनिर्माता संघ ने कहा कि इन देशों में नए सिरे से लेबलिंग और पैकेजिंग करने से उत्पाद के मूल देश का पता नहीं लगता है और वह जांच से बच जाते हैं। उद्योग संघ ने भारत के औषधि महानियंत्रक राजीव रघुवंशी को लिखे पत्र में कहा कि घटिया दस्तानों को कम कीमत पर डंप करने का जो​खिम काफी बढ़ गया है और और उन्हें ‘अस्वीकृति मूल्य’ पर देश में लाया जा रहा है।

भारतीय रबर दस्ताना विनिर्माता संघ के प्रवक्ता विकास आनंद ने कहा कि अमेरिका द्वारा शुल्क लगाए जाने से पहले से ही कई आयातक मलेशिया में बने घटिया और बेकार दस्ताने भारत में आयात कर रहे थे। ये आयातक ऐसे दस्तानों का आयात कर रहे थे जिनकी उपयोग अव​धि खत्म होने वाली है और जिन्हें अमेरिका जैसे देशों द्वारा मना कर दिया गया था। आयातक इसे 10-12 डॉलर प्रति 1,000 नग कीमत पर देश में ला रहे थे जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका दाम 18-20 डॉलर प्रति 1,000 नग था। आयातक भारतीय बाजार में 15 डॉलर प्रति हजार नग के भाव पर बेचने में सक्षम हैं जिससे घरेलू उद्योग पर असर पड़ा है। 

इस बीच घरेलू चिकित्सा उपकरण विनिर्माताओं के संगठन ने चिकित्सा उपकरणों पर सेफगार्ड शुल्क लगाने की मांग की है क्योंकि इन उत्पादों का आयात 80 फीसदी तक बढ़ गया है। संगठन ने सरकार से 12 प्रमुख चिकित्सा उपकरण श्रेणियों पर सेफगार्ड शुल्क लगाने का आग्रह किया है। साथ ही आगाह किया कि ‘अनियंत्रित आयात’ घरेलू विनिर्माताओं के लिए खतरा पैदा कर रहा है।

First Published - April 14, 2025 | 10:35 PM IST

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