वैश्विक वित्तीय संकट और यूक्रेन युद्ध के कारण मांग में गिरावट की कमी से जूझ रहे कपड़ा उद्योग ने सरकार से कपास पर आयात शुल्क हटाने और प्रोत्साहन देने की मांग की है। भारतीय कच्चे कपास की उच्च कीमतों से भी उद्योग प्रभावित हैं। अंतरराष्ट्रीय कपास की कीमतों की तुलना में भारत का कपास कम से कम 10-20 फीसदी अधिक है।
तमिलनाडु स्पिनिंग मिल्स एसोसिएशन (तस्मा) के मुख्य सलाहकार के वेंकटचलम ने कहा, ‘भारतीय कच्चे कपास की कीमत चीनी कपास सहित अंतरराष्ट्रीय कपास की तुलना में 10-20 फीसदी अधिक है। उच्च दर के कारण भारतीय कताई मिलों के लिए भारत का कपास नहीं खरीदतीं। वहीं केंद्र सरकार ने कपास पर 11 फीसदी आयात शुल्क लगा दिया है। इससे भारत के कपास उद्योग को काम करने का समान अवसर नहीं मिल पा रहा है।’
तस्मा द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-सितंबर के दौरान भारत के सूती कपड़े और कच्चे कपास का निर्यात 29 फीसदी घटकर 5.406 अरब डॉलर रह गया, जबकि 2021-22 में इसी अवधि के दौरान यह 7.606 अरब डॉलर था। इसी अवधि के दौरान सूती वस्त्र का निर्यात पिछले साल के 6.468 अरब डॉलर के मुकाबले 23 फीसदी घटकर 4.791 अरब डॉलर रह गया। इसी तरह, कच्चे कपास का निर्यात भी अप्रैल से सितंबर 2021 के 1.138 अरब डॉलर से 62 फीसदी घटकर 2022 में 43.59 करोड़ डॉलर रह गया।
दिल्ली के टीटी लिमिटेड के संजय कुमार जैन कहते हैं, ‘हमारी कपास की दरें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी नहीं हैं। घरेलू बाजार भी कपास के बदले पॉलिएस्टर को तेजी से अपना रहा है और इससे भी खपत कम हो रही है। इसलिए सरकार को आयात शुल्क हटा देना चाहिए और हमारे कच्चे माल को अंतरराष्ट्रीय कीमतों के बराबर करना चाहिए।’
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यह मांग ऐसे समय में आई है जब यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर कपड़े की मांग घटी है। वेंकटचलम कहते हैं, ‘जब तक केंद्र सरकार सभी स्तरों पर कपड़ा उद्योगों के लिए एक प्रोत्साहन पैकेज का प्रस्ताव नहीं करती है, चाहे वे कताई, बुनाई, फैब्रिकेटिंग, रेडीमेड गारमेंट्स और होम टेक्सटाइल हों, अधिकांश उद्योग बहुत जल्द एनपीए बन जाएंगे, क्योंकि वे सभी केवल सप्ताह में दो से तीन दिन काम कर रहे हैं और उनकी कार्यक्षमता घटकर 30 फीसदी तक ही रह गई है।’ दूसरी ओर, अक्टूबर में वाणिज्यिक वस्तुओं का कुल निर्यात 16.7 फीसदी घटकर 29.8 अरब डॉलर रह गया, जबकि रेडीमेड गारमेंट (आरएमजी) का निर्यात भी महीने के दौरान कम हो गया।