भारत का कर और जीडीपी का अनुपात कोविड के पहले के साल में एक बार फिर गिरकर एक दशक के निचले स्तर 9.88 प्रतिशत पर पहुंच गया है। इस गिरावट की प्रमुख वजह सीमा शुल्क व कॉर्पोरेशन कर संग्रह में कमी है, जबकि उत्पाद शुल्क में मामूली बढ़ोतरी हुई है।
इसके पहले के साल कर और जीडीपी का अनुपात 10.97 प्रतिशत था और 2017-18 में 11.22 प्रतिशत था। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में राजस्व में भारी गिरावट की संभावना है क्योंकि कोरोनावायरस के कारण की गई देशबंदी की वजह से आर्थिक गतिविधियां करीब ठप हो गई हैं।
इस अनुपात से पता चलता है कि सरकार अपने व्यय के वित्तपोषण में सक्षम है और साथ ही यह देश में कर अनुपालन का भी संकेत है। विकसित देशों में उनकी जीडीपी और कर का अनुपात ज्यादा होता है।
2019-20 में सकल कर राजस्व 3.39 प्रतिशत गिरा है और वित्त वर्ष के संशोधित बजट लक्ष्य की तुलना में संग्रह में 1.5 लाख करोड़ रुपये की कमी आई है।
2020-21 में साल का बजट लक्ष्य हासिल करने के लिए सकल कर राजस्व में 20.5 प्रतिशत बढ़ोतरी की जरूरत है। 2019-20 में जीडीपी वृद्धि 11 वर्ष के निचले स्तर 4.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
ज्यादा कर और जीडीपी के अनुपात से यह पता चलता है कि जीडीपी बढऩे के साथ कर का आधार बढ़ रहा है। सरकार ने अनुपालन में सुधार के लिए कुछ कदम उठाए हैं, जिनमें वस्तु एवं सेवा कर लागू किया जाना और कर अधिकारियों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक आकलन के साथ अन्य फैसले शामिल हैं।
कर जीडीपी अनुपात कम रहने से सरकार के पूंजीगत व्यय को लेकर हाथ बंध जाते हैं और इससे राजकोषीय घाटे का दबाव बढ़ता है।
2019-20 में कॉर्पोरेशन कर मेंं 16 प्रतिशत, सीमा शुल्क में 7 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि उत्पाद शुल्क में 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। कर-जीडीपी अनुपात के मामले में भारत ओईसीडी देशों से बहुत पीछे है, जिनका औसत 34 प्रतिशत है।
दरअसल केंद्र की राजस्व प्राप्तियों में कर राजस्व की हिस्सेदारी 2019-20 में 81.3 प्रतिशत रह गई है, जो इसके पहले साल में 85.8 प्रतिशत और 2017-18 में 84.3 प्रतिशत थी।
प्रत्यक्ष कर और जीडीपी का अनुपात गिरकर 14 साल के निचले स्तर 5.1 प्रतिशत पर पहुंच गया है, वहीं अप्रत्यक्ष कर और जीडीपी का अनुपात 2019-20 में गिरकर 5 साल के निचले स्तर पर आ गया है।
सकल कर में कॉर्पोरेशन कर का हिस्सा घटकर कम से कम 10 साल के निचले स्तर 27.7 प्रतिशत आ गया है।
सकल कर में सीमा शुल्क का हिस्सा वित्त वर्ष 20 में गिरकर 5.43 प्रतिशत पर आ गया है, जो इसके पहले साल में 5.66 प्रतिशत था।
इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि कॉर्पोरेट कर में कटौती और आर्थिक मंदी के मिले जुले असर से कुल संग्रह प्रभावित हुआ है, जबकि सोने के ज्यादा दाम होने और मांग गिरने से सीमा शुल्क की आवक कम हुई है। नायर ने कहा, ‘हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 21 में बजट अनुमान की तुलना में केंद्रीय करों में 30 प्रतिशत की गिरावट आएगी।’
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने रविवार को साफ किया कि सकल प्रत्यक्ष कर संग्रह की वृद्धि 2019-20 में दरअसल 8 प्रतिशत रहकर 14,01,920 करोड़ रुपये रही, लेकिन 1,68,200 करोड़ रुपये के पिछले साल किए गए कर सुधार की वजह से प्रत्यक्ष कर राजस्व में 5 प्रतिशत की कमी आई है। सरकार ने पिछले साल कहा था कि निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए वह कॉर्पोरेशन कर की दर घटाकर 25 प्रतिशत करेगी।