कृषि और संबंधित गतिविधियों में चालू वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही में 4.5 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि दर्ज की गई है। इस क्षेत्र में पिछले साल की समान अवधि में 3.5 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। वित्त वर्ष 22 की पहली तिमाही में मौजूदा भाव पर भी 11.1 प्रतिशत की जोरदार बढ़ोतरी हुई है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 5.6 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी, इस तरह से महंगाई दर का असर 5.5 प्रतिशत है।
बहरहाल विशेषज्ञों और बाजार पर नजर रखने वालों का कहना है कि खरीफ की फसल के अंतिम उत्पादन को लेकर गंभीर चिंता है, क्योंकि हाल में बारिश के गति पकडऩे के बावजूद मध्य और पश्चिमी भारत के बड़े हिस्से में बारिश बेतरतीब बनी हुई है। इस साल अगस्त में बारिश सामान्य से 24.1 प्रतिशत कम थी। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह 1901 के बाद छठा सबसे सूखा अगस्त रहा है और 2005 और 2009 के बाद इस शताब्दी का तीसरा सबसे शुष्क महीना रहा है।
दक्षिण पश्चिम मॉनसून सत्र में अगस्त और जुलाई जो सबसे महत्त्वपूर्ण महीने होते हैं। अगर इन महीनों में बारिश में कोई कमी आती है तो इसका असर फसल के अंतिम उत्पादन पर पड़ सकता है। मौसम विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि अगस्त, 2021 में पूर्वी व पूर्वोत्तर को छोड़कर भारत के करीब सभी हिस्सों में सामान्य से कम बारिश हुई है।
मध्य एवं उत्तर पश्चिमी भारत में सामान्य से क्रमश: 39.2 प्रतिशत और 30.6 प्रतिशत कम बारिश हुई है। केयर रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘कृषि एक बार फिर चमकता क्षेत्र रहा है और 4.5 प्रतिशत की इस वृद्धि में रबी के मौसम ने अहम भूमिका निभाई है। खरीफ की स्थिति थोड़ी गंभीर है मॉनसून तथा बुआई के तरीके पर नजर रखे जाने की जरूरत है।’
पहली तिमाही के जीवीए का अनुमान कृषि विभाग द्वारा 2021-22 के कृषि उत्पादन के लक्ष्य के आधार पर लगाया जाता है। ऐसे में आने वाली तिमाहियों में आंकड़ों में बदलाव होगा, जब वास्तविक अनुमान सामने आएंगे। हाल की बुआई के आंकड़ों से पता चलता है कि असमान बारिश की वजह से खरीफ की बुआई प्रभावित हुई है। 27 अगस्त तक खरीफ की फसल की बुआई 1064 लाख हेक्टेयर में हुई थी, जो पिछले साल की समान अवधि में हुई बुआई के रकबे की तुलना में 1.75 प्रतिशत कम है।
एक और अहम मानक 130 जलाशयों में पानी का स्तर है, जिस पर नजर रखी जाती है। आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले सप्ताह तक इन सभी जलाशयों में जल स्तर दक्षिण भारत को छोड़कर हर इलाके में कम है। इसका आगामी रबी की बुआई पर गंभीर असर पड़ सकता है। इससे सिंचाई और बिजली उत्पादन की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है।