परिसमापन प्रक्रिया में और पारदर्शिता लाने के लिए भारतीय दिवाला एवं ऋणशोधन बोर्ड (आईबीबीआई) ने प्रस्ताव किया है कि परिसमापन से जुड़े सभी अहम मामलों में हिस्सेदारों की परामर्श समिति के साथ चर्चा की जानी चाहिए। परिसमापन नियमों में प्रस्तावित संशोधनों की जरूरत परिसमापक की जवाबदेही बढ़ाने को लेकर महसूस की गई, जिसे तहत हिस्सेदारों की समिति से अनिवार्य रूप से परामर्श करने का प्रस्ताव रखा गया है, जिससे तमाम मसलों पर चर्चा हो सके।
इनमें पेशेवरों की नियुक्ति, आरक्षित मूल्य तय करने सहित संपत्ति की बिक्री शामिल है। आईबीबीआई ने कहा कि इससे हिस्सेदारों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और प्रक्रिया में भागीदारी बढ़ेगी, जिससे प्रभावी निगरानी और पर्यवेक्षण हो सकेगा और प्रक्रिया के परिणाम में सुधार होगा। आईबीबीआई ने यह भी प्रस्ताव किया है कि परिसमापक को हर वर्ग में हिस्सेदारों को अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने की सुविधा देनी चाहिए।
एमवी कीनी लॉ फर्म में पार्टनर राज भल्ला ने कहा, ‘एससीसी से परामर्श संबंधित बदलाव सिर्फ यह सुनिश्चित करने के लिए है, जिससे कि पूरी प्रक्रिया में हिस्सेदारों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके। इससे जमीनी स्तर पर कानूनी लड़ाइयों में लगने वाला वक्त बचेगा।’ यह भी प्रस्ताव किया गया है कि परिसमापक संपत्ति की बिक्री करने वाले एजेंट की नियुक्ति कमीशन या सफलता शुल्क के आधार पर नहीं करेगा। परिसमापक को संपत्तियों की बिक्री करने के लिए हिस्सेदारों की परामर्श समिति के साथ सलाह के बाद विपणन रणनीति तैयार करनी होगी। आईबीबीआई ने कहा, ‘परिसमापक के इस दायित्व को पूरा करने के लिए कमीशन एजेंट की नियुक्ति कानूनी मंशा के खिलाफ है।’
दिवाला नियामक ने यह भी कहा कि कुछ परिसमापनों में पाया गया है कि परिसमापक ने अतार्किक बोली पूर्व योग्तता शर्तें लागू की हैं। कुछ मामलों में नीलामी में शामिल होने के लिए नॉन रिफंडेबल भागीदारी शुल्क लगाया गया है। इससे निपटने के लिए आईबीबीआई ने नियमों में संशोधन कर प्रावधान डालने का प्रस्ताव किया है कि परिसमापक के पास बोली लगाने वालों को किसी शुल्क या नॉन रिफंडेबल जमा करने की जरूरत नहीं होगी और परिसंपत्ति के आरक्षित मूल्य से 10 प्रतिशत से ज्यादा बयाना जमा करने का प्रावधान नहीं होगा।