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कोरोनावायरस से कमजोर हुआ रेशम का धागा

Last Updated- December 15, 2022 | 7:59 AM IST

कोरोनावायरस आया तो पहली गाज वाराणसी के रेशम या सिल्क उद्योग पर ही पड़ी थी क्योंकि 60 से 70 फीसदी कच्चा माल उसी चीन से आता है, जहां सबसे पहले यह वायरस मिला था। बची-खुची कसर लॉकडाउन ने पूरी कर दी। अब लॉकडाउन खुला तो रेशम का कारोबार पहले से भी ज्यादा कराहने लगा। छोटे बुनकर तो हमेशा चोट झेलते हैं मगर इस बार तो बड़े रेशम कारोबारियों के सामने भी पूंजी डूबने का खतरा मंडरा रहा है।
देश-दुनिया में रेशमी यानी सिल्क के बेहतरीन कपड़ों के लिए मशहूर वाराणसी या बनारस के कारोबारियों को लग रहा है कि सालाना 2,000 करोड़ रुपये के  कारोबार वाला यह धंधा इस साल कम से कम 30 फीसदी सिकुड़ जाएगा। उन्हें यह भी लग रहा है कि इसकी मार आने वाले सालों में भी महसूस होगी। हालांकि दूसरे उद्योगों की तरह बनारसी सिल्क पर कारीगरों की कमी नहीं है बल्कि सिल्क के कारीगर जरूरत से ज्यादा ही मिल रहे हैं और यह कोविड-19 की वजह से ही हुआ है।
बनारसी सिल्क के प्रमुख निर्यात सिनर्जी फैब्रिक्राफ्ट के रजत मोहन पाठक ने बताया कि महामारी की वजह से सूरत, मुंबई और भिवंडी जैसे शहरों से बड़ी तादाद में बुनकर अपने घर लौट आए हैं। इस वजह से वाराणसी में बुनकर जरूरत से बहुत ज्यादा हो गए हैं। असली दिक्कत बाजार में लगा पैसा डूबने और नए ऑर्डर नहीं मिलने की है। काम नहीं होने की वजह से बनारस और आसपास के सिल्क कारखानों से 1 लाख के आसपास अकुशल मजदूर बाहर कर दिए गए हैं। स्थायी कामगारों की तनख्वाह भी 10 से 50 फीसदी घटा दी गई है।
सिल्क कारोबारी बता रहे हैं कि हैंडलूम और पावरलूम दोनों ही काम की किल्लत और बकाया भुगतान की दिक्कतों से गुजर रहे हैं। जिन को माल पहुंचा चुके थे, उनसे उधारी वसूलने की गुंजाइश भी उन्हें नजर नहीं आ रही है। छोटे कारोबारी ज्यादा मुश्किल में हैं। 70 दिनों तक बंद रहे पावरलूम दोबारा शुरू करने के लिए मशीनों की मरम्मत का खर्च उन पर पड़ रहा है और नए ऑर्डर आ नहीं रहे हैं यानी कमाई सिफर और खर्चे कई। हैंडलूम कारीगर कच्चे माल और ऑर्डरों के टोटे से तो जूझ ही रहे हैं, दूसरे शहरों से लौटे परिजनों का खर्च उन पर और बढ़ गया है।
तमाम परंपरागत धंधों की तरह बनारसी सिल्क के काम में भी महीने भर से लेकर 18 महीनों तक की उधारी चलती है। उधारी वसूलने का खयाल आने से पहले ही अनबिका माल भारी तादाद में लौटने लगा है। छोटे-बड़े सभी कारोबारी तैयार माल के ग_रों पर बैठे हैं और खरीदार फटकने का नाम नहीं ले रहे। व्यापारियों को बेचा गया माल जिस तेजी से वापस आ रहा है, उसे देखकर तमाम कारोबारियों पर पूंजी डूबने और बरबाद हो जाने का खतरा मंडराने लगा है।
पाठक बताते हैं कि दिक्कतें भारत में कोविड-19 आने के पहले ही शुरू हो गई थीं। फरवरी से चीन से आयात बंद होने के साथ ही रेशम के धागों की कीमत 25 से 35 फीसदी और एंब्रॉयडरी के काम आने वाले माल की कीमत 50 फीसदी चढ़ गई थी। वाराणसी ही नहीं देश के दूसरे भागों में भी सिल्क कारीगरों की पहली पसंद चीन से आने वाले मलबरी लैचर धागे हैं। सबसे ज्यादा खपत वाले इन धागों की आवक पिछले चार महीने से एकदम बंद है। चीन से आपूर्ति कब बहाल होगी यह भी कारीगरों को नहीं पता। आपूर्ति वाकई बहुत बड़ी समस्या है क्योंकि सालाना 2,000 करोड़ रुपये के कारोबार वाले वाराणसी में रोजाना 10 टन रेशम की खपत होती है। पड़ोसी जिलों मऊ, आजमगढ़, मिर्जापुर और गाजीपुर में मिलाकर 7 लाख के करीब लोग इसी धंधे से जुड़े हैं।
बहरहाल अब कारोबारियों का रेशम से मोहभंग होता दिख रहा है। पाठक ने बताया कि ज्यादातर बड़े सिल्क कारोबारी अब यह धंधा छोड़कर रियल एस्टेट और दूसरे कारोबारों में उतरने का विचार बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में सिल्क उद्योग जैसे असंगठित क्षेत्र नोटबंदी और जीएसटी की मार झेलते रहे और अब लॉकडाउन ने खटिया खड़ी कर दी। ऐसे में कारोबारियों को लग रहा है कि परंपरागत धंधा खतरे भरा है और दूसरे क्षेत्र में झांकने के अलावा कोई चारा नहीं है। सिल्क कारोबारी यह भी कह रहे हैं कि धंधा पटरी पर लौटेगा तो काफी कुछ बदल जाएगा। बिका माल लौटने के कारण कारोबारी अब मौखिक नहीं लिखित करार पर माल भेजेंगे। उधार माल शायद ही मिलेगा।

First Published - June 26, 2020 | 11:38 PM IST

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