उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने अंतरराष्ट्रीय निवेश संधि के नियम लागू नहीं होने वाले क्षेत्रों को चिह्नित करने के बारे में सुझाव देने के लिए परामर्श कंपनियों की सेवाएं लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
इससे भारत को संधि के मुख्य हिस्से में प्रतिबद्धता करने के बावजूद ऐसे क्षेत्रों को चिह्नित करने से ‘नीति के लिए स्थान संरक्षित’ करने में मदद मिलेगी। ये संधियां एकपक्षीय निवेश संधि, द्विपक्षीय निवेश संधि (बीआईटी) या मुक्त व्यापार समझौते के तहत निवेश अध्याय (आईसी) हो सकती हैं।
डीपीआईआईटी के जारी किए गए प्रस्ताव के अनुसार, ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति बनाने और निवेश की आकलन करने के लिए डीपीआईआईटी नोडल विभाग है।
लिहाजा मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) में गैर सेवा क्षेत्रों के निवेश के मामले में चर्चा को आगे बढ़ाता है। निवेश उदारीकरण (इंवेस्टमेंट लिबरलाइजेशन) के अध्यायों में ‘आरक्षित सूची’ है जो मेजबान देशों को चुनिंदा क्षेत्रों/ गतिविधियों को प्रतिबंधित करने की इजाजत देता है।’
परामर्शदाता नियुक्त करने का मामला तब आगे बढ़ रहा है, जब भारत कई देशों के व्यापार समझौतों पर विचार-विमर्श कर रहा है और निवेश के अलग समझौतों के लिए बातचीत कर रहा है। जैसे भारत की निवेश के लिए यूनाइटिड किंगडम, यूरोपियन यूनियन से बातचीत जारी है।
विशेषज्ञों को भरोसा है कि आरक्षित सूची में रक्षा, सरकारी खरीद क्षेत्र आदि आ सकते हैं। वैसे भी इन क्षेत्रों को लेकर भारत अत्यधिक चौकस है। परामर्श देने वाली कंपनी कानूनी कंपनी, थिंक टैंक या शोध संस्थान हो सकते हैं।
परामर्श देने वाली कंपनी को साझेदारों से विचार-विमर्श में हिस्सा लेना होगा और इससे डीपीआईआईटी इन क्षेत्रों को सूची को अंतिम रूप दे सकेगी।