दुर्लभ खनिज के वैश्विक संकट ने इस क्षेत्र में भारत की योजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया है। उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2027 के अंत तक देश में नियोडिमियम का उत्पादन नौ गुना बढ़कर 500 टन हो जाएगा जबकि चालू वित्त वर्ष के आखिर तक उत्पादन करीब 200 टन तक पहुंच सकता है।
यह बात सरकारी कंपनी इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (आईआरईएल) के एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने कही। नियोडिमियम को दुर्लभ खनिज चुंबक उद्योग की रीढ़ माना जाता है। भारत ने पिछले साल करीब 40 टन नियोडिमियम का उत्पादन किया था और उस दौरान दुर्लभ खनिज का संकट चरम पर था।
परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत आईआरईएल फिलहाल दुर्लभ खनिज तत्वों के खनन एवं शुरुआती प्रॉसेसिंग का काम करती है। आईआरईएल के महाप्रबंधक और प्रमुख (दुर्लभ खनिज प्रभाग) वी. चंद्रशेखर ने कहा, ‘हम नियोडिमियम और प्रासियोडिमियम का उत्पादन बढ़ाने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। फिलहाल उद्योग को इसकी बेहद आवश्यकता है। हम एक साल के भीतर उत्पादन दोगुना कर लेंगे।’
चंद्रशेखर ने कहा, ‘जब मैग्नेट उद्योग संघर्ष कर रहा था तो हम 20 से 40 टन नियोडिमियम का उत्पादन कर रहे थे। हम इसे चालू वित्त वर्ष के आखिर तक 200 टन तक बढ़ाने के लिए तैयार हैं। अगले वित्त वर्ष के अंत तक यह हमारे अपने इंजीनियरिंग के साथ 500 टन तक पहुंच जाएगा।’ उन्होंने चेन्नई में सीआईआई और काउंसिल ऑफ स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट ऐंड इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशंस ऑफ इंडिया के एक संयुक्त कार्यक्रम में शुक्रवार को यह बात कही। आईआरईएल का ओडिशा में एक दुर्लभ खनिज निष्कर्षण संयंत्र और केरल में एक रिफाइनिंग इकाई है। दुर्लभ खनिज का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, विंड टर्बाइन, रक्षा प्रणाली, चिकित्सा उपकरण आदि में होता है।
बहरहाल, 17 दुर्लभ खनिज तत्वों में से लैंथेनम, सेरियम, नियोडिमियम, प्रासियोडिमियम, गैडोलिनियम, समैरियम, यूरोपियम और डिस्प्रोसियम सहित 8 का उत्पादन केरल की इकाई में पहले से ही किया जा रहा है। उसने टर्बियम और यूरोपियम के लिए संयंत्र स्थापित किए हैं।
चंद्रशेखर ने कहा, ‘दुनिया में कुल दुर्लभ खनिज के कारोबार में चीन की हिस्सेदारी लगभग 44 फीसदी है, जबकि भारत की हिस्सेदारी 5 से 6 फीसदी है। उत्पादन के मोर्चे पर चीन सबसे आगे है। दुर्लभ खनिजों के कुल उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी करीब 90 फीसदी है, जबकि भारत तीसरे पायदान पर है। भंडार के मामले में भी हम छठे पायदान पर हैं।’ आईआरईएल ने रक्षा एवं परमाणु ऊर्जा क्षेत्रों में विशेष रूप से उपयोग के लिए समैरियम-कोबाल्ट मैग्नेट के स्वदेशी उत्पादन के लिए एक दुर्लभ खनिज स्थायी चुंबक संयंत्र स्थापित किया है।
केंद्र सरकार ने इसी साल जनवरी में राष्ट्रीय दुर्लभ खनिज मिशन (एनसीएमएम) के जरिये वित्त वर्ष 2025 से 2031 तक 7 वर्षों की अवधि में 16,300 करोड़ रुपये के खर्च और सार्वजनिक उपक्रमों एवं अन्य हितधारकों द्वारा 18,000 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश का प्रस्ताव किया है।
भारत के तमिलनाडु, केरल, ओडिशा और आंध्र प्रदेश राज्यों में सबसे अधिक दुर्लभ खनिज संसाधन हैं।