दूरसंचार ऑपरेटरों रिलायंस जियो, एयरटेल और वोडाफोन आइडिया ने सरकार से 1,200 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम सहित संपूर्ण 6 गीगाहर्ट्ज बैंड को मोबाइल संचार के लिए नीलामी के माध्यम से आवंटित करने की मांग की है। दूरसंचार कंपनियों का कहना है कि इसे कम क्षमता वाले लाइसेंस रहित वाई-फाई उपयोग के लिए अन्य के साथ विभाजित न किया जाए।
दूरसंचार ऑपरेटरों का कहना है कि इससे सरकार को विश्वस्तरीय नेटवर्क और स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास को तेजी से क्रियान्वित करके 6जी के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अगुआ बनने के दृष्टिकोण को पूरा करने में मदद मिलेगी। कंपनियां न केवल भविष्य की नीलामी के मामले में बल्कि वर्तमान में अपने पास मौजूद स्पेक्ट्रम के लिए भी वैधता अवधि को 20 से बढ़ाकर 40 वर्ष तक करने पर जोर दे रहे हैं। वे दूरसंचार क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास में भारी पूंजी निवेश की दरकार और तेजी से विकसित हो रहे प्रौद्योगिकी परिदृश्य को देखते हुए इस कदम को उचित ठहरा रही हैं।
जियो, एयरटेल और वोडा आइडिया ने नवंबर के पहले सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय मोबाइल दूरसंचार के लिए चिह्नित रेडियो-फ्रीक्वेंसी बैंड की नीलामी पर दूरसंचार नियामक के परामर्श पत्र पर प्रतिक्रिया में ये बातें कहीं। दूरसंचार विभाग ने सिफारिश की थी कि 700 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम में से 6 गीगाहर्ट्ज के ऊपरी बैंड को दूरसंचार कंपनियों को आवंटित किया जाए जबकि 500 मेगाहर्ट्ज के निचले बैंड के बाकी बचे स्पेक्ट्रम वाई-फाई ऑपरेटरों के उपयोग के लिए लाइसेंस मुक्त कर दिया जाए।
हालांकि दूरसंचार कंपनियों ने कहा है कि इससे 6जी सेवा शुरू करने और उसकी गुणवत्ता को खतरा हो सकता है क्योंकि यह बैंड सर्वव्यापी 5जी और 6जी कवरेज के लिए मध्य-बैंड के रूप में कार्य करता है।
एक दूरसंचार कंपनी के शीर्ष अधिकारी ने बताया, ‘अगर हमें दुनिया में 6जी सेवा में अग्रणी बनना है तो प्रत्येक दूरसंचार कंपनी को कम से कम 400 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की आवश्यकता होगी। दूरसंचार विभाग की सिफारिशों के अनुसार चार ऑपरेटरों के लिए केवल 175 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम ही उपलब्ध होगा, जो देश में उच्च जनसंख्या घनत्व को देखते हुए बेहतरीन 6जी सेवा के लिए काफी कम है।’
दूरसंचार कंपनियों ने कहा है कि केवल 400 मेगाहर्ट्ज ही नीलामी के लिए उपलब्ध होगा जबकि शेष स्पेक्ट्रम 2030 में आएगा जब सैटेलाइट ऑपरेटर स्पेक्ट्रम खाली करेंगे। दूरसंचार ऑपरेटरों ने सुझाव दिया है कि इसकी नीलामी तभी की जाए जब सभी स्पेक्ट्रम उपलब्ध हो जाएं।
अमेरिका जैसे देशों द्वारा समूचे 6 गीगाहर्ट्ज बैंड को लाइसेंस-मुक्त उपयोग के लिए निर्धारित करने के तर्क पर दूरसंचार कंपनियों ने कहा है कि भारत की तुलना अमेरिका से नहीं की जा सकती। वैसे, अमेरिका भी अपने पहले के निर्णय पर पुनर्विचार कर रहा है।
रिलायंस जियो ने कहा है कि भारत का उच्च जनसंख्या घनत्व (प्रति वर्ग किलोमीटर लगभग 481 व्यक्ति) चीन (150 व्यक्ति) से तीन गुना से भी अधिक और अमेरिका (40 व्यक्ति) से लगभग 12 गुना ज्यादा है। नतीजतन, भारतीय नेटवर्क एक अनोखी ‘मांग-घनत्व’ चुनौती का सामना कर रहे हैं जहां एक सेल साइट को कई गुना ज्यादा उपयोगकर्ताओं को सेवा देनी होगी।