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उत्तराखंड आर्थिक मोर्चे पर तो अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन पारिस्थितिक चिंताएं अभी भी मौजूद

उत्तराखंड में आर्थिक प्रगति के साथ पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ने की बात कही गई है और राज्य को सतत विकास की दिशा में कदम उठाने की जरूरत बताई गई है

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इंदिवजल धस्माना   
Last Updated- November 09, 2025 | 10:22 PM IST

उत्तराखंड में एक गाना काफी लोकप्रिय हुआ था, जिसके बोल हैं- ‘चुप रहो, शोर मत करो, मंत्री सो रहे हैं, इससे संकेत मिलता है कि सत्ताधारी वर्ग के लिए अपना आराम और शानो-शौकत उन आकांक्षाओं-अपेक्षाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है, जिनके साथ यह राज्य 9 नवंबर, 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग हुआ था। राज्य के गठन के शुरुआती वर्षों में जारी किया गया यह गाना अब केवल आंशिक सच्चाई को दर्शाता है, क्योंकि तब से एक लंबा अरसा बीत चुका है और काफी कुछ बदल चुका है।

उदाहरण के लिए जिस समय यह राज्य बना था, उस समय इसकी अर्थव्यवस्था देश की अर्थव्यवस्था से 1 प्रतिशत नीचे थी, लेकिन धीरे-धीरे बढ़ती हुई यह अब 1 प्रतिशत से अधिक हो गई है। इस समय उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था 1.1 से 1.3 प्रतिशत के बीच है। इसी तरह, गठन के समय राज्य में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम थी, लेकिन बाद के वर्षों में बढ़ते-बढ़ते यह राष्ट्रीय स्तर से 30 से 57 प्रतिशत अधिक रही है।

कर राजस्व भी राज्य बनने के बाद से हमेशा ही इसकी राजस्व प्राप्तियों का कम से कम 30 प्रतिशत रहा है। लेकिन कोविड महामारी वाले वर्ष 2020-21 को छोड़ दें तो यह 2000-01 के 31.9 प्रतिशत से अधिक ही रहा है। फिर भी जीएसटी लागू होने के बाद इसके चरम स्तर 40 प्रतिशत से अधिक के शिखर पर वापस आना बाकी है, जो नई कर व्यवस्था लागू होने से कुछ वर्ष पहले दर्ज किया गया था।

राज्य सरकार का पूंजीगत व्यय हाल के वर्षों में अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 3 प्रतिशत से धीरे-धीरे ऊपर जा रहा है, जो राज्य के अस्तित्व में आने के समय 1 प्रतिशत था। हां, 2005-06 में जरूर में इसमें एक उछाल आई थी।

यह राज्य के राजस्व और राजकोषीय संतुलन से भी स्पष्ट था। यह कोविड महामारी के वर्ष 2020-21 से लगातार चार वर्षों तक राजस्व अधिशेष वाला राज्य रहा और वित्त वर्ष 2025 और वित्त वर्ष 2026 में भी इसके इसी तरह का प्रदर्शन करने की उम्मीद है। इसके राजकोषीय घाटे की स्थिति दो वर्षों- 2005-06 और 2017-18 को छोड़ दें तो जीएसडीपी के 3 प्रतिशत की सीमा के भीतर ही रही। इससे पता चलता है कि उत्तराखंड द्वारा किया गया घाटा वित्त वर्ष 21 से पूंजीगत व्यय में जा रहा है।

फिर भी, उत्तराखंड में जीएसडीपी के अनुपात के रूप में पूंजीगत परिव्यय ज्यादातर उसी समय के आसपास अस्तित्व में आए दो अन्य राज्यों- छत्तीसगढ़ और झारखंड से कम रहा है।

उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 25 और 26 के लिए छत्तीसगढ़ में इसके 3.9 प्रतिशत और 4.1 प्रतिशत तथा झारखंड में 3.7 प्रतिशत और 4.1 प्रतिशत होने का अनुमान है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि छत्तीसगढ़ में वित्तीय स्थिति बेहतर थी और उन वर्षों के लिए झारखंड में सरकार द्वारा दिए गए लोन उत्तराखंड की तुलना में कम थे। लेकिन, प्रति व्यक्ति आय जैसे मैक्रोइकनॉमिक डेटा के मामले में उत्तराखंड उपरोक्त दोनों राज्यों की तुलना में काफी बेहतर स्थिति में रहा है। उत्तराखंड के विपरीत दोनों राज्यों में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम रही है।

विकास के पटल पर उत्तराखंड अपने समकालीन राज्यों की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। उदाहरण के लिए 2019-21 के दौरान उत्तराखंड में बहुपक्षीय गरीबी दर 9.67 प्रतिशत थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 14.96 प्रतिशत था, जबकि झारखंड और छत्तीसगढ़ दोनों में ही राष्ट्रीय स्तर से अधिक गरीबी दर थी। साथ ही, हरिद्वार को छोड़कर उत्तराखंड के सभी जिलों में राष्ट्रीय औसत से कम गरीबी दर थी।

कहा जा रहा है उत्तराखंड में विशेष रूप से पर्यटन को ध्यान में रखकर किए जा रहे आर्थिक विकास और इस पहाड़ी राज्य के पर्यावरण को बचाने की जरूरतों के बीच टकराव दिख रहा है। उत्तरकाशी के धराली गांव में घरों और होटलों को बहा ले जाने वाली अचानक आई बाढ़ सिर्फ एक दुखद उदाहरण है। भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण 2023-24 में मृत्यु दर बहुत अधिक हो गई और 2024-25 में उतनी ही थी जितनी कि उत्तर प्रदेश में जबकि यहां की जनसंख्या उत्तर प्रदेश के मुकाबले केवल 5 प्रतिशत है। साथ ही, दोनों वर्षों में उत्तर प्रदेश की तुलना में उत्तराखंड में नष्ट हुए घरों और खोए हुए मवेशियों की संख्या बहुत अधिक दर्ज की गई।

उत्तर प्रदेश ने अपने प्लास्टिक कचरे को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया है। उत्तराखंड में 2020-21 में पहली बार उत्तर प्रदेश की तुलना में बहुत अधिक दर्ज किया गया। इसमें वृद्धि के लिए पर्यटकों द्वारा फैलाई जाने वाली गंदगी काफी हद तक जिम्मेदार है। यह टकराव तब भी स्पष्ट था जब उत्तराखंड से पहले के दौर में हिमालयी क्षेत्र में अर्थव्यवस्था धीमी गति से आगे बढ़ रही थी। यही वजह रही कि वहां चिपको आंदोलन और बड़े बांध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन देखने को मिले। बाद की सरकारों द्वारा बड़े बांधों से संबंधित चिंताओं को दूर करने की भरसक कोशिश करने और वन क्षेत्र में वृद्धि होने के बावजूद यह टकराव थमा नहीं है। उत्तराखंड में 2001 में वन क्षेत्र केवल 64.8 प्रतिशत था, जो 2023 में बढ़कर 71 प्रतिशत हो गया है।

First Published : November 9, 2025 | 10:22 PM IST