बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के स्वामित्व संबंधी विस्तृत खुलासे के लिए निवेश की सीमा को 25,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये कर सकता है। इस मामले से अवगत लोगों ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इसका उद्देश्य एफपीआई की धारणा को मजबूती देना और 2023 में निर्धारित सीमा को बाजार में बढ़त के अनुरूप करना है।
यह निर्णय 24 मार्च को बाजार नियामक की आगामी बोर्ड बैठक में लिए जाने की संभावना है। बैठक में सेबी रिसर्च एनालिस्ट और निवेश सलाहकारों के लिए अग्रिम शुल्क संग्रह संबंधी नियमों को भी आसान बना सकता है। इसके अलावा वैकल्पिक निवेश फंड (एआईएफ) को भी कुछ राहत दिए जाने की उम्मीद है। सेबी ने इस बाबत जानकारी के लिए भेजे गए ईमेल का खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं दिया।
सेबी के नए चेयरमैन के तौर पर तुहिन कांत पांडेय द्वारा इस महीने की शुरुआत में पदभार संभाले जाने के बाद यह पहली बोर्ड बैठक होगी। अगस्त 2023 में लागू किए गए एफपीआई खुलासा मानदंडों के अनुसार, 25,000 करोड़ रुपये से अधिक की परिसंपत्ति (एयूसी) अथवा किसी एक कारोबारी समूह में 50 फीसदी से अधिक एयूसी वाले एफपीआई को स्वामित्व संबंधी अतिरिक्त खुलासा करना आवश्यक है।
एफपीआई खुलासे के लिए निवेश की सीमा को दोगुना किए जाने से अनुपालन बोझ को कम करने और पारदर्शिता बरकरार रखने में मदद मिलेगी। यह बदलाव ऐसे समय में किया जा रहा है जब पिछले छह महीनों के दौरान एफपीआई ने घरेलू शेयर बाजार से करीब 2 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली की है।
सिरिल अमरचंद मंगलदास के पार्टनर विवेक शर्मा ने कहा, ‘किसी एक समूह में निवेश की अधिकता संबंधी नियमों को बरकरार रखते हुए शेयर बाजार में निवेश की सीमा को बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये करना एक व्यावहारिक कदम है। ऐसे महत्त्वपूर्ण निवेश वाले एफपीआई द्वारा पीएन3 मानदंडों के उल्लंघन के खिलाफ सुरक्षा की उम्मीद की जाती है।’
पीएन3 अथवा प्रेस नोट 3 अप्रैल 2020 में लागू किया गया केंद्र सरकार का एक नियम है जो भारत के साथ भूमि सीमा वाले देशों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को विनियमित करता है। इसके अनुसार चीन सहित ऐसे अन्य देशों से किसी भी निवेश के लिए भारत सरकार से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक है।
बैठक के एक अन्य महत्त्वपूर्ण विषय रिसर्च एनालिस्ट और निवेश सलाहकारों के लिए अग्रिम शुल्क संग्रह सीमा पर नए सिरे से विचार करना है। फिलहाल इन पेशेवरों द्वारा एक तिमाही के लिए अग्रिम शुल्क एकत्रित किया जा सकता है। मगर सेबी इस सीमा को एक वर्ष तक बढ़ा सकता है ताकि उद्योग की मांग को पूरा किया जा सके।
बाजार नियामक श्रेणी2 के एआईएफ के डेट में निवेश के लिए नियमों को आसान बना सकता है। साथ ही ऐंजल फंड के लिए रूपरेखा में भी बदलाव किया जा सकता है। बाजार नियामक पात्र संस्थागत खरीदारों (क्यूआईबी) की परिभाषा का विस्तार करते हुए ऐंजल फंड में निवेश के लिए मान्यता प्राप्त निवेशकों को भी शामिल कर सकता है।
बंबई लॉ चैंबर्स की पार्टनर नंदिनी पाठक ने कहा, ‘मान्यता देने की प्रक्रिया को लागत, समयसीमा और तकनीक के अनुरूप किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया में फंड मैनेजरों को मध्यस्थ की भूमिका निभाने की अनुमति दी जानी चाहिए। मान्यता के लिए पेशेवर मानदंडों को वित्तीय मानदंडों से इतर स्वतंत्र आधार पर शामिल किया जाना चाहिए।’
बाजार नियामक फंड हाउसों के लिए छोटे सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) की लागत को कम करने संबंधी उपायों को भी मंजूरी दे सकता है। एसबीआई म्युचुअल फंड और कोटक महिंद्रा ऐसेट मैनेजमेंट जैसी कुछ परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियां 250 रुपये तक की छोटी एसआईपी योजनाएं पहले ही शुरू कर चुकी हैं। सेबी के प्रस्तावित उपायों से इन निवेश योजनाओं की परिचालन लागत कम होगी।
इसमें मध्यस्थ शुल्क को कम करने और वितरकों को प्रोत्साहन दिए जाने जैसे उपाय हो सकते हैं। बहरहाल सेबी की बोर्ड बैठक का कार्यक्रम काफी व्यस्त है। मगर सूत्रों का कहना है कि क्लियरिंग कॉरपोरेशन के स्वामित्व की समीक्षा और लेखा परीक्षकों की नियुक्तियों से संबंधित सुधारों पर इस बैठक में चर्चा नहीं हो पाएगी।