बैंक ऑफ अमेरिका कारपोरेशन ने कहा है कि घरेलू मांग में बढ़ोत्तरी और एशिया एवं यूरोप से व्यापार से रुपया अमेरिकी मंदी के प्रभावों से उबरकर अपनी पुरानी स्थिति को प्राप्त कर लेगा।
इस साल लगातार गिरावट के कारण रुपये की हालत काफी पतली हो गयी थी और इस साल यह दूसरी सर्वाधिक खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा रही।मुद्रा इस महीने के अंत तक अब तक के सर्वाधिक ऊंचाई को प्राप्त कर सकती है क्योंकि फेडरल रिजर्व बैंक की ब्याज दरों में कटौती करने के फैसले से डालर को नुकसान पहुंच सकता है।
रुपये में आयी तेजी का इस्तेमाल भारतीय नीति-निर्माता महंगाई को कम करने के लिये कर सकते हैं क्योंकि तेल के दामों के नये स्तर को छूने से तेल को खरीदने के लिये दी जाने वाली राशि अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गयी है।युवो ने अपने साक्षात्कार में कहा कि हम रुपये की स्थिति को लेकर परेशान नहीं है क्योंकि भारत की वृध्दि घरेलू मांग से परिचालित होती है।
भारत के सकल घरेलू उत्पाद में निर्यात की मात्र 14 फीसदी हिस्सेदारी है जोकि उभरते एशियाई अर्थव्यवस्थाओं से अच्छी हालत है। इसके अतिरिक्त भारत की एशियाई और यूरोपीय बाजारों पर निर्भरता भी भारत को अमेरिकी मंदी से निपटने में मदद देगी।युवो का कहना है कि 31 मार्च तक रुपये का मूल्य डालर की तुलना में बढ़कर 39.20 होने के आसार हैं। इस स्तर को पहले भी नवंबर में प्राप्त किया जा चुका है। साल के अंत तक इसके 37 रुपये प्रति डालर रहने के आसार हैं।
कल मुद्रा का मूल्य 40.4275 पर बंद हुआ था। युवो ने रुपये को 40.50 में खरीदकर और जब यह बढ़कर 39.20 हो जाय तो उसे बेचकर 3.1 फीसदी के लाभ का सुझाव दिया। पिछले साल भारतीय मुद्रा ने 12.3 फीसदी की गति से बढ़त दर्ज की थी जो 1974 के बाद सर्वाधिक है। यह बढ़त तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के बीच दूसरी सबसे तेज बढ़त है।