पिछले 12 महीनों में रुपये में लगभग 6% की गिरावट दर्ज हुई है। - प्रतीकात्मक फोटो
भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया है। बुधवार को रुपये में 7 पैसे की गिरावट के साथ 88.80 पर कारोबार शुरू हुआ। यह भारतीय करेंसी का नया निचला स्तर है। इस साल अब तक रुपया 3.5% से ज्यादा कमजोर हो चुका है, जबकि पिछले 12 महीनों में इसमें लगभग 6% की गिरावट दर्ज हुई है। यानी अगर पिछले साल कोई 100 रुपये का डॉलर खरीद रहा था, तो अब उसे वही डॉलर लगभग 106 रुपये में मिल रहा है। अब सवाल यह है कि आखिर रुपया इतनी तेजी से क्यों गिर रहा है? क्या यह सिर्फ अस्थायी हलचल है या फिर रुपये की ताकत सचमुच कमजोर हो रही है? आइए इसे आसान भाषा में समझते हैं।
इस बार रुपये की कमजोरी की सबसे बड़ी वजह अमेरिका की नई नीतियां हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने हाल ही में H-1B वीजा शुल्क में बड़ा इजाफा किया है। पहले यह शुल्क 2000 से 5000 डॉलर के बीच होता था, लेकिन अब इसे सीधे 100,000 डॉलर कर दिया गया है। H-1B वीजा वही है, जिसके तहत भारत के लाखों आईटी प्रोफेशनल्स अमेरिका जाकर काम करते हैं।
भारतीय आईटी कंपनियां इसी वीजा के सहारे अपने इंजीनियरों और टेक्निकल कर्मचारियों को अमेरिका भेजती हैं। चूंकि 70% से ज्यादा H-1B वीजा भारतीयों को ही मिलते हैं, इसलिए इस शुल्क वृद्धि का सबसे बड़ा असर भारत पर ही पड़ेगा। इसका मतलब है कि आईटी कंपनियों को अपने कर्मचारियों को अमेरिका भेजने के लिए अब बहुत ज्यादा पैसा चुकाना होगा। इसका सीधा असर कंपनियों की कमाई और मुनाफे पर पड़ेगा। इतना ही नहीं, अमेरिका ने भारतीय सामानों पर 50% आयात शुल्क भी लगा दिया है। इसका असर हमारे निर्यात (exports) पर भी होगा। भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिकी बाजार में सामान बेचना महंगा और मुश्किल हो जाएगा।
विदेशी निवेशकों (FPI– Foreign Portfolio Investors) ने भी भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकालना शुरू कर दिया है। सोमवार को ही उन्होंने करीब ₹2,910 करोड़ के शेयर बेच दिए। साल 2025 की शुरुआत से अब तक विदेशी निवेशक करीब ₹1.37 लाख करोड़ की इक्विटी बेच चुके हैं। जब निवेशक पैसा निकालते हैं, तो डॉलर की मांग बढ़ जाती है और रुपया कमजोर हो जाता है।
शिनहान बैंक (Shinhan Bank) के हेड ऑफ ट्रेजरी कुनाल सोधानी का कहना है कि अमेरिका की नीतियों और विदेशी निवेशकों की बिकवाली की वजह से रुपये पर लगातार दबाव बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि रुपया कमजोर होना केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि अन्य एशियाई मुद्राओं पर भी इसका असर दिख रहा है।
कई लोग पूछ रहे हैं कि जब रुपया इतना गिर रहा है, तो रिजर्व बैंक (RBI) क्यों इसे रोक नहीं रहा?
केडिया एडवाइजरी (Kedia Advisory) के डायरेक्टर अजय केडिया कहते हैं, RBI रुपये की गिरावट को सीधे तौर पर रोकने की कोशिश नहीं कर रहा है। RBI ने केवल सरकारी बैंकों के जरिये समय-समय पर डॉलर बेचकर थोड़ी स्थिरता देने की कोशिश की है। दरअसल, अगर RBI बड़े पैमाने पर डॉलर बेचेगा, तो देश का विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve) बहुत जल्दी कम हो जाएगा।
अभी भारत के पास लगभग 700 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, लेकिन अगर हर महीने 10-15 अरब डॉलर खर्च करना पड़े तो यह भंडार भी जल्दी खत्म हो सकता है। इसीलिए RBI की रणनीति यह है कि रुपये को कृत्रिम रूप से रोकने की बजाय उसे धीरे-धीरे और व्यवस्थित तरीके से गिरने दिया जाए।
जब रुपया गिरता है, तो आयात (Imports) महंगा हो जाता है। भारत अपनी जरूरत का लगभग 85% कच्चा तेल आयात करता है। रुपये की मौजूदा कमजोरी से तेल आयात पर प्रति लीटर ₹2.5–3 तक का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक्स सामान– जैसे मोबाइल, लैपटॉप, चिप्स और कंपोनेंट्स– भी महंगे हो जाएंगे। भारत हर साल 65–70 अरब डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स आयात करता है। रुपये की कमजोरी से इन पर 2–3% तक की अतिरिक्त लागत आ सकती है।
केडिया का कहना है, हालांकि इसका सीधा असर उपभोक्ता महंगाई पर उतना बड़ा नहीं होगा। वजह यह है कि सरकार कई चीजों पर सब्सिडी देती है, कंपनियां पहले से हेजिंग (Hedging) कर लेती हैं और कीमतें धीरे-धीरे उपभोक्ता तक पहुंचती हैं। उनका अनुमान है कि रुपये की गिरावट से CPI (उपभोक्ता महंगाई) पर केवल 0.6–0.8% तक का असर पड़ेगा। चूंकि अभी RBI का लक्ष्य 4–6% के बीच महंगाई को बनाए रखना है, इसलिए फिलहाल यह चिंता का बड़ा कारण नहीं है।
एक्सपर्ट कहते हैं, आम तौर पर रुपये की कमजोरी से निर्यातकों (Exporters) को फायदा होता है। क्योंकि जब रुपया गिरता है तो भारतीय सामान विदेशों में सस्ता हो जाता है। लेकिन इस बार मामला अलग है। अमेरिका ने भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ लगा दिया है। यानी भले ही रुपया कमजोर हो, लेकिन अमेरिका में हमारे सामान की कीमत बढ़ ही जाएगी। आईटी कंपनियों को भी फायदा नहीं हो रहा, क्योंकि H-1B वीजा शुल्क ने उनकी लागत बहुत बढ़ा दी है। इन वजहों से रुपया कमजोर होने के बावजूद निर्यातकों को राहत नहीं मिल रही है।
अगर हम भारत की तुलना इंडोनेशिया या वियतनाम जैसे देशों से करें, तो वहां की मुद्राएं ज्यादा नहीं गिरी हैं। भारत की स्थिति इसलिए ज्यादा खराब है क्योंकि हमारे ऊपर दोहरा दबाव है –
यानी, भारत पर एक साथ दो बड़ी मार पड़ी है, जो किसी और देश पर नहीं है। यही वजह है कि रुपया बाकी देशों के मुकाबले ज्यादा कमजोर हो रहा है।
RBI के पास तीन विकल्प हैं –
केडिया कहते हैं, अभी RBI के लिए ब्याज दरें बढ़ाना संभव नहीं है, क्योंकि महंगाई फिलहाल कंट्रोल में है और बाजार अगले महीनों में दरों में कटौती की उम्मीद कर रहा है। डॉलर बेचकर रुपये को संभालने की सीमा भी तय है, क्योंकि रिजर्व खत्म हो सकता है। इसलिए फिलहाल RBI की रणनीति यही है कि रुपये को धीरे-धीरे गिरने दिया जाए, ताकि बाजार में घबराहट न फैले और निवेशकों का भरोसा बना रहे।