RBI MPC Meet: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) भारत में प्रमुख ब्याज दरें (Repo rate) तय करने के लिए अपनी तीन दिवसीय बैठक पूरी की। बैठक मंगलवार को शुरू हुई और गुरुवार को RBI गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) द्वारा रीपो रेट की घोषणा के साथ समाप्त हुई। बैठक में आम सहमति से नीतिगत दर को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखने का निर्णय लिया गया है। गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि वैश्विक स्तर पर अनिश्चितताओं के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर मजबूत बनी हुई है।
सभी की निगाहें रीपो रेट पर ही टिकी थीं। जिसमें उम्मीद के मुताबिक कोई बदलाव नहीं किया गया है। मई 2022 से इसमें 250 आधार अंकों की बढ़ोतरी की गई है। भारत में बैंक रीपो रेट के आधार पर जमा के साथ-साथ ऋण (loan) पर भी अपनी ब्याज दरें तय करते हैं। MPC की आखिरी बैठक 6 से 8 जून के बीच हुई थी। आज हम आपको MPC से जुड़ी सभी अहम बातें बताने जा रहे है।
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MPC छह सदस्यीय समिति है जो देश के लिए मौद्रिक नीति (monetary policy) तय करती है। उनका मुख्य उद्देश्य भारत में रिटेल मंहगाई को 2 से 6 प्रतिशत के सहनशीलता बैंड के साथ 4 प्रतिशत के नीचे रखना है।
समिति में तीन बाहरी सदस्य और RBI के तीन अधिकारी शामिल हैं। पैनल के बाहरी सदस्य शशांक भिड़े, आशिमा गोयल और जयंत आर वर्मा हैं। गवर्नर दास के अलावा, MPC में अन्य आरबीआई अधिकारी राजीव रंजन और माइकल देबब्रत पात्रा हैं।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित भारत की खुदरा महंगाई (retail inflation) जून में तीन महीने के उच्चतम स्तर 4.81 प्रतिशत पर पहुंच गई, जिसका मुख्य कारण खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें थीं। हालांकि, महंगाई RBI के 6 प्रतिशत से नीचे के आरामदायक स्तर के भीतर बनी हुई है। जुलाई की महंगाई दर के आंकड़े 14 अगस्त को जारी होंगे।
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रीपो रेट RBI द्वारा तय की गई वह ब्याज दर है जिस पर वह वाणिज्यिक बैंकों (commercial banks) को प्रतिभूतियों के बदले ऋण देता है। आसान भाषा में समझे तो रीपो रेट वह ब्याज दर है, जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को लोन देता है। इसका उपयोग केंद्रीय बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था में तरलता (liquidity) को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। महंगाई के दौरान, खर्च के लिए नकदी की उपलब्धता को सीमित करने के लिए रीपो रेट में बढ़ोतरी की जाती है।
रीपो रेट बढ़ाने का मतलब: बढ़ी हुई रीपो रेट का मतलब है कि बैंक जमा पर उच्च रिटर्न की पेशकश करेंगे, लोगों को अपने बैंक खातों में पैसा जमा करने के लिए प्रेरित करेंगे और तरलता (नकदी) को अर्थव्यवस्था से बाहर निकाल देंगे। साथ ही, उधार दरें बढ़ा दी गई हैं, जिससे लोग अधिक ऋण लेने से हतोत्साहित हो रहे हैं और अपने खर्च को सीमित कर रहे हैं। ऐसा तब किया जाता है, जब अर्थव्यवस्था में महंगाई हो और खर्च को नियंत्रित करना होता है।
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रीपो रेट घटाने का मतलब: वहीं दूसरी तरफ, कम रीपो रेट से लोगों के हाथ में अधिक पैसा रह जाता है। इससे उन्हें अधिक खर्च करने और मांग बढ़ाने, देश को अवस्फीति (मंदी) से बाहर निकालने में मदद मिलती है।