वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश के पूर्वी हिस्से में विकास को गति देने के लिए जिन पांच राज्यों को चुना है उनमें प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से आंध्र प्रदेश एकमात्र अपवाद है। पिछले दस वर्षों के दौरान आंध्र प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से अधिक रही है, जबकि इस समूह के अन्य राज्य वहां तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मगर इन दस वर्षों के दौरान दक्षिण के राज्यों के बीच आंध्र प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम रही है।
अगर प्रति व्यक्ति आय समृद्धि का संकेतक है, तो 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होकर बना तेलंगाना राज्य अपने विभाजित मूल राज्य के मुकाबले अधिक समृद्ध रहा है। उदाहरण के लिए, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, आंध्र प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय साल 2023-24 में 2,42,479 रुपये रहने का अनुमान है, जबकि तेलंगाना में यह आंकड़ा 1.4 गुना यानी 3,47,299 रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है।
तमिलनाडु में साल 2023-24 के दौरान 3,13,955 रुपये प्रति व्यक्ति आय होने का अनुमान लगाया गया है जो आंध्र प्रदेश के मुकाबले अधिक है। इसी प्रकार कर्नाटक में 2023-24 के दौरान प्रति व्यक्ति आय 3,32,926 रुपये दर्ज की गई। केरल में 2022-23 के लिए यह आंकड़ा 2,63,945 रुपये रहा।
यह तथ्य शायद उन आलोचकों को चुप करा सकता है जो दक्षिणी राज्यों के बीच केवल आंध्र प्रदेश को चुने जाने पर सवाल उठाते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि खास तौर पर तमिलनाडु को नजरअंदाज किया गया जबकि वह भी पूर्वी पट्टी में शामिल है।
जहां तक पूर्वोदय के अन्य राज्यों- बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल-का सवाल है तो उनकी स्थिति आंध्र प्रदेश से भी अधिक खराब है। बिहार प्रति व्यक्ति आय के मोर्चे पर राष्ट्रीय औसत के एक तिहाई स्तर तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। साल 2022-23 में उसकी प्रति व्यक्ति आय 55,000 रुपये से भी कम थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 1,69,000 रुपये पर इसके तीन गुना से भी अधिक है।
खनिज संपदा से भरपूर झारखंड की स्थिति अपने मूल राज्य बिहार से थोड़ी ही बेहतर है। उसकी प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के एक तिहाई से ज्यादा है, लेकिन वह उसे 60 फीसदी तक लाने के लिए जूझ रहा है। दो अन्य राज्यों (ओडिशा और पश्चिम बंगाल) की स्थिति बिहार और झारखंड जैसी खराब नहीं है, लेकिन वे राष्ट्रीय औसत तक पहुंचने के लिए अब भी प्रयासरत हैं।
साल 2014-15 में ओडिशा की प्रति व्यक्ति आय 63,345 रुपये थी, जबकि पश्चिम बंगाल की प्रति व्यक्ति आय 68,876 रुपये थी। मगर अब स्थिति बदल चुकी है। साल 2023-24 में ओडिशा की प्रति व्यक्ति आय 1,61,437 रुपये थी, जबकि पश्चिम बंगाल की 1,54,119 रुपये।
अगर अर्थव्यवस्था के आकार की बात करें तो खनिज संपदा से समृद्ध होने के बावजूद झारखंड इन पांचों राज्यों में सबसे छोटा है। साल 2014-15 से ही उसकी अर्थव्यवस्था का आकार राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के 1.5 से 1.7 फीसदी दायरे में रहा है। मगर यह भी एक तथ्य है कि क्षेत्रफल और जनसंख्या के मामले में भी झारखंड इन राज्यों में सबसे छोटा है।
साल 2011 की जनगणना के अनुसार, झारखंड की आबाद 3.3 करोड़ थी, जबकि बिहार की आबाद 10.4 करोड़, ओडिशा की 4.2 करोड़ और पश्चिम बंगाल की 9.1 करोड़। झारखंड का क्षेत्रफल 79,716 वर्ग किलोमीटर है, जबकि बिहार का क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किलोमीटर, ओडिशा का 1,55,707 वर्ग किलोमीटर और पश्चिम बंगाल का 88,752 वर्ग किलोमीटर है।
राज्य के अपने कर राजस्व (ओटीआर) के मामले में, आंध्र प्रदेश की स्थिति सभी पांच राज्यों में सबसे अच्छी थी। मगर 2015-16 जैसे कुछ वर्षों के दौरान राजस्व प्राप्तियों के अनुपात में पश्चिम बंगाल का ओटीआर अधिक था। बिहार की स्थिति सबसे खराब है, जबकि झारखंड और ओडिशा के बीच तगड़ी प्रतिस्पर्धा दिख रही है। यह मानने का कोई आधार नहीं है कि जुलाई, 2017 में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की शुरुआत से प्रति व्यक्ति आय के मोर्चे पर इन राज्यों में कोई सुधार हुआ है।
इसके बावजूद आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का सबसे कम हिस्सा पूंजीगत व्यय पर खर्च किया। यह परिसंपत्तियों के सृजन पर खर्च किए गए पूंजीगत व्यय का हिस्सा है। इसका कारण यह हो सकता है कि इन दोनों राज्यों ने राजस्व मद में अधिक किया।
उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश ने 2022-23 में अपने व्यय का 95.7 फीसदी हिस्सा राजस्व मद में खर्च किया, जबकि पश्चिम बंगाल के मामले में यह आंकड़ा 90.8 फीसदी था। बिहार के मामले में यह आंकड़ा 84.6 फीसदी और ओडिशा (संशोधित अनुमान) एवं झारखंड के मामले में 78.5 फीसदी था।
ओडिशा को छोड़कर अन्य सभी चार राज्यों का सॉवरिन ऋण हाल के वर्षों में उनके जीएसडीपी के 30 फीसदी से अधिक रहा था। पश्चिम बंगाल में पिछले दस वर्षों के दौरान हमेशा यही स्थिति दिखी है। साल 2014-15 को छोड़ दिया जाए तो राज्य का ऋण बोझ कभी भी 35 फीसदी से कम नहीं रहा।