वित्त वर्ष 2024 के दौरान ग्रामीण इलाकों में गरीबी में तेजी से कमी आई है। एसबीआई रिसर्च द्वारा शुक्रवार को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक गरीबी अनुपात पहली बार गिरकर 5 प्रतिशत से नीचे 4.86 प्रतिशत पर आ गया है, जो वित्त वर्ष 2023 में 7.2 प्रतिशत था। इसकी तुलना में शहरी इलाकों में इस अवधि के दौरान गरीबी अनुपात 4.6 प्रतिशत से गिरकर 4.09 प्रतिशत पर आ गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण गरीबी अनुपात में गिरावट खपत में उच्च वृद्धि के कारण आई है। सरकार द्वारा संचालित बैंक की ओर से कराए गए अध्ययन के मुताबिक, ‘सुधरा भौतिक बुनियादी ढांचा ग्रामीण गतिशीलता की नई कहानी लिख रहा है। ग्रामीण व शहरी आमदनी में अंतर घटने की यह एक वजह है। साथ ही ग्रामीण आय वर्ग में भी इससे अंतर कम हो रहा है।’
इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शहरी ग्रामीण अंतर घटने की एक और वजह प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से सरकारी योजनाओं का हस्तांतरण बढ़ना भी है। प्रोफेसर सुरेश तेंडुलकर द्वारा निर्धारित दशक की महंगाई दर और इंपुटेशन फैक्टर को गरीबी रेखा में समायोजित करते हुए एसबीआई रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वित्त वर्ष 2024 में ग्रामीण इलाकों के लिए नई गरीबी रेखा प्रति माह 1,632 रुपये और शहरी इलाकों के लिए 1,944 रुपये है।
इसके पहले 2011-12 में प्रोफेसर तेंडुलकर की अध्यक्षता में बनी विशेषज्ञों की समिति ने ग्रामीण इलाकों के लिए गरीबी रेखा 816 रुपये और शहरी इलाकों के लिए 1,000 रुपये तय की थी। बहरहाल टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर आर रामकुमार ने कहा कि एसबीई रिपोर्ट में खामियों वाली गरीबी रेखा का इस्तेमाल किया गया है और केवल तेंडुलकर की गरीबी रेखा को महंगाई दर के हिसाब से अद्यतन करके 2022-23 और 2023-24 के लिए गरीबी रेखा बना ली गई है।
उन्होंने कहा, ‘पहली बात तो यह है कि तेंडुलकर गरीबी रेखा, कोई गरीबी रेखा नहीं है, बल्कि सिर्फ एक ‘विपन्नता रेखा’ है। पिछली सरकार को इसके लिए सी रंगराजन समिति का गठन करना पड़ा था। साथ ही एसबीआई रिपोर्ट में गरीबी रेखा को अद्यतन करने के लिए एक ऐसी विधि का उपयोग किया गया है, जिसमें घरों में खपत में हुए बदलाव को शामिल नहीं किया गया है। इसके अलावा वे बहुत नीची गरीबी रेखा का इस्तेमाल कर रहे हैं। आश्चर्य की बात नहीं है कि उन्हें बहुत नीचे की गरीबी रेखा मिली है। संक्षेप में कहें तो उन्होंने गरीबी का कम अनुमान प्राप्त करने के लिए गरीबी रेखा को कम करके आंका है।’
रिपोर्ट में अलग से यह भी उल्लेख किया गया है कि भारत में गरीबी दर अब 4 प्रतिशत से 4.5 प्रतिशत के बीच रह सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यह संभव है कि 2021 की जनगणना पूरी होने के बाद इन आंकड़ों में मामूली बदलाव आए और ग्रामीण-शहरी आबादी का नया आंकड़ा प्रकाशित हो। हमारा मानना है कि शहरी गरीबी आगे और गिर सकती है।’रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि व्यय में हिस्सेदारी घटने के बावजूद खाद्य वस्तुओं में बदलाव ने खपत पर उल्लेखनीय असर डाला था। उच्च महंगाई दर की वजह से चौतरफा खपत कम रही है। यह असर कम आमदनी वाले राज्यों के ग्रामीण इलाकों पर ज्यादा नजर आया है। वहीं मध्य आय वाले राज्यों में ज्यादा टिकाऊ खपत मांग रही है।
उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा एसबीआई रिपोर्ट में एनएसएस के क्रमिक दौर में पद्धति में हुए बदलावों को महत्त्व नहीं दिया है। इसकी वजह से कई अनुमान समय के साथ तुलना के योग्य नहीं रह जाते हैं। एनएसएस सर्वेक्षण 2011-12 में संशोधित मिश्रित संदर्भ अवधि (एमएमआरपी) का उपयोग किया गया है, और 2022-23 और 2023-24 में किए गए सर्वेक्षणों में मिश्रित संदर्भ अवधि (एमआरपी) की पुरानी पद्धति का उपयोग नहीं किया गया है। एसबीआई रिपोर्ट एनएसएस दौर में तरीके से जुड़े इन महत्त्वपूर्ण बदलावों को पूरी तरह से नजरंदाज करती है।’