बीमाकर्ताओं के लिए ड्रोन के उपयोग और सैटेलाइट की तस्वीर को अनिवार्य बनाया जा सकता है ताकि फर्जी और झूठे बीमा दावों पर एक नियंत्रण रखा जा सके। इसके लिए केंद्र और भारतीय बीमा विनियामक तथा विकास प्राधिकारण (आईआरडीएआई) प्रक्रियाओं में हेराफेरी और दावों के निपटारे में देरी को कम करने के लिए कृत्रिम बुद्घिमत्ता और बिग डेटा को अपनाने को लेकर चर्चा कर रहे हैं।
एक अधिकारी ने कहा कि आरंभ में तकनीकी को आधुनिक बनाना ऐच्छिक होगा लेकिन इसे शीघ्र ही सभी बीमाकर्ताओं के लिए अनिवार्य कर दिया जाएगा। इससे इस क्षेत्र में एक नया मानदंड स्थापित होगा। दावों के आकलन में तकनीक के उपयोग की जरूरत इसलिए पड़ रही है कि उन तौर तरीकों को ठीक किया जा सके जिनसे कृषि के साथ साथ औद्योगिक बीमा में फर्जी दावे किए जाते हैं।
कृषि बीमा के लिए जहां दावे फसल और फसल की कटाई के प्रारूपों पर निर्भर हैं वहां पर फसल की पैदावार के विस्तृत आकलन के लिए आरंभ में ऐच्छिक आधार पर सैटेलाइट की तस्वीर और ड्रोनों का उपयोग करने की योजना है। अधिकारी ने कहा कि इसी व्यवस्था को औद्योगिक बीमा में भी लाने की योजना है क्योंकि वहां पर समस्या के कारण की पहचान करने में कठिनाई आती है जिसके परिणामस्वरूप दावों के निपटारे में देरी होती है।
अधिकारी ने कहा, ‘ड्रोन की मदद से नुकसान के दायरे का पता लगाने में मदद मिलेगी जैसे कि किसी मकान के छत पर आग लगने की घटना या समुद्र में तेल रिसाव की घटना आदि जहां पर समस्या के कारण की पहचान या आकलन करना मुश्किल होता है।’ उन्होंने कहा कि इन मामलों में दावों के निपटारे में अत्यधिक देरी होती है।
बीमा फर्जीवाड़ा आवेदन या दावा करने के समय पर होता है और बीमा कंपनियों पर सालाना 45,000 करोड़ रुपये की लागत आती है। बीमा दावों के निपटारे में बदलावों को आईआरडीएआई द्वारा लाया जाएगा। प्रायोगिक अध्ययनों के बाद सरकार की तरफ से बदलावों की शुरुआत हो चुकी है। कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग ने 2018 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत खरीफ और रबी सीजन 2018-19 के दौरान रिमोट सेंसिंग और सैटेलाइट डेटा का उपयोग कर फसल कटाई प्रयोगों (सीसीई) के अनुकूलन के लिए प्रायोगिक अध्ययन किया था।
तकनीक के उपयोग के परिणामों के आधार पर सरकार ने 2019 में 9 राज्यों के 96 जिलों में खरीफ सीजन के दौरान चावल की फसल के लिए सैटेलाइट डेटा का उपयोग कर स्मार्ट नमूना तकनीक को लागू किया था।
ग्राम पंचायत स्तर पर पैदावार के अनुमान के लिए मानवरहित हवाई उपकरण या ड्रोन, कृत्रिम बुद्घिमत्ता और मशीन लर्निंग सहित विभिन्न उपायों के जरिये प्रायोगिक अध्ययन किए गए थे। सरकार ने अब तक तकनीक के उपयोग के जरिये पैदावार का अनुमान लगाने के किसी तरीके को नहीं अपनाया है।