विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों ने केंद्र के इस बयान पर हैरत जताई है कि जीएसटी परिषद ने उन्हें मिलने वाले मुआवजे को जून, 2022 के बाद जारी रखने से इनकार कर दिया है। इन राज्यों ने इसे गलत बताते हुए कहा कि शुक्रवार की बैठक में मामले को आगे चर्चा के लिए टाला भर गया था। इस बैठक में पश्चिम बंगाल की ओर से वहां की शहरी विकास एवं निकाय मामले तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने हिस्सा लिया था।
उन्होंने कहा, ‘यह फैसला हुआ ही नहीं था। राज्यों को होने वाला भुगतान जून, 2022 के बाद भी जारी रखने समेत सभील मुद्दे एक मंत्रिसमूह के हवाले कर दिए गए हैं।’
उन्होंने कहा कि केंद्र 101वें संविधान संशोधन अधिनियम का फायदा उठा रहा है, जिसमें कहा गया है कि हर्जाना जीएसटी शुरू होने की तारीख से पहले पांच साल की अवधि तक चुकाया जाएगा। यह अप्रत्यक्ष कर प्रणाली 1 जुलाई 2017 को लागू की गई थी और अगर परिषद हर्जाने को आगे नहीं बढ़ाती है तो यह 30 जून 2022 को समाप्त हो जाएगा।
भट्टाचार्य ने कहा, ‘केंद्र को मुआवजा मार्च, 2026 तक बढ़ाना ही था, जो उसने नहीं बढ़ाया। वह बकाया दे रही है। मगर अगली किस्त का क्या? राज्यों के लिए ऐसे चलना मुमकिन नहीं होगा।’ दिल्ली के वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया ने भी दोहराया कि राज्यों को मुआवजे का मसला मंत्री समूह को भेजा गया है, जो दो महीनों में अपनी रिपोर्ट सौंपेगा। इसी तरह केरल ने भी राज्यों को पांच साल और हर्जाना देने का दबाव बनाया। मगर पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने हर्जाना केवल तीन साल और बढ़ाने की मांग की है। तमिलनाडु के वित्त मंत्री पी त्यागराजन ने कहा कि राज्यों के लिए हर्जाना 2022 से आगे नहीं बढ़ाने की बात परिषद की बैठक में नहीं बताई गई थी। परिषद में छत्तीसगढ़ की नुमाइंदगी करने वाले वहां के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंह देव ने कहा कि राज्यों के लिए हर्जाना आगे भी जारी रखने से इनकार नहीं किया गया था, जैसा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा।
सीतारमण ने साफ किया कि परिषद ने मुआवजा उपकर मार्च 2026 तक बढ़ाने का फैसला किया है। लेकिन एकत्र धनराशि का इस्तेमाल केवल 2020-21 और 2021-22 में लिए गए ऋणों को चुकाने में किया जाएगा, राज्यों को आगे हर्जाना देने के लिए नहीं।
