रिजर्व बैंक के बाजार से तरलता सोखने की योजना कॉरपोरेट इंडिया के महत्वाकांक्षी पूंजी विस्तार योजना और बॉटमलाइन विकास को सीमित कर सकती है।
कर्ज लेना अब पहले जैसा नहीं होगा और कंपनियों को ब्याज दरों के कारण ब्याज पर ज्यादा खर्च करना होगा। साथ ही कंपनियों को पूंजी की कमी से निपटने के लिए ज्यादा तैयारी करनी होगी। लिहाजा इस स्थिति में कंपनियों के पास एक ही मंत्र बचता है कि लागत में कमी करना यानी खर्चे घटाना।
जबकि मझोले और छोटे स्तर की कंपनियों को अब बैंक के कर्जे पर निर्भरता के बजाए दूसरे अन्य विकल्पों मसलन इक्विटी डाइल्यूशन पर ध्यान देना होगा। जब नकारात्मक सेंटीमेंटों के कारण सेंसेक्स में 557 अंकों की गिरावट आई थी तो उद्योगपतियों ने क्रेडिट पॉलिसी पर तीखी प्रतिक्रिया की थी। टीवीएस मोटर्स के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक वेनू श्रीनिवासन के मुताबिक कंपनी निवेश में पिछले साल के 150 करोड़ रुपये के निवेश के मुकाबले 70 करोड़ रुपये की कटौती करने की योजना बना रही है।
साथ ही कंपनी के लिए चुनौती का विषय मार्जिन को बढ़ाने के बजाए मार्जिन को बरकरार रख पाना होगा। बजाज ऑटो के चेयरमैन राहुल बजाज कहते हैं कि इस कदम से बाइक निर्माता कंपनियों को मार्जिन पर दवाब के साथ साथ बिक्री की कमी भी देखनी पड़ सकती है। इस नीति से विकास सिर्फ प्रभावित होगा जबकि उद्योगों को नुकसान झेलना पड़ेगा। मालूम हो कि पहली तिमाही में टू-व्हीलर इंडस्ट्री का ग्रोथ जहां 10 फीसदी था वहीं अब अगले दो तिमाहियों में 2 से 3 फीसदी दर रहेगी।
अब अगर रियल एस्टेट कंपनियों की बात करें तो ये कंपनियों नए प्रोजेक्टों को लांच करने और जमीन खरीदने में ज्यादा सतर्कता बरत रहे हैं। इस बारे में इंडिया बुल्स के अध्यक्ष अजित मित्तल कहते हैं कि हमने अपने कुछ नए प्रोजेक्टों की लांचिंग में कमी की है जबकि नए वायदे करने में भी सतर्कता बरती जा रही है। कुछ ऐसी ही बात एचडीआईएल के प्रबंध निदेशक सारंग वाधवान करते हैं कि ऊंची कर्ज दरें और ईएमआई में नतीजतन हुए इजाफे के कारण नई संपत्तियों की खरीदारी और यह सेक्टर दोनो प्रभावित हुआ है।
इसी का तकाजा है कि मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में पिछले छह महीनों के दौरान प्रॉपर्टी के कारोबार में 10 से 15 फीसदी तक की गिरावट आई है। साथ ही डेवलपर्स के क्रियान्वयन कौशल और उनके कैश फ्लो दोनो काफी हद तक सीमित हुई हैं। जबकि लार्सन एंड टर्बो के प्रमुख वित्तीय अधिकारी वाइएम देओसाथले का कहना है कि महंगाई दर को काबू करने का आरबीआई का प्रयास शायद अनुमानित असर न छोड़ सके।
वह कहते हैं कि महंगाई का दवाब अर्थव्यवस्था पर बना रहना संभावित लग रह रहा है और जहां तक रिजर्व बैंक की उपायों का सवाल है तो उनके उपायों का लक्ष्य मैक्रो इंडिकेटरों को लक्षित स्तर के दायरे में लाना है। आदित्य बिरला ग्रुप के मुख्य कार्यकारी (कॉरपोरेट स्ट्रैटजी एवं कारोबार विकास) अजय श्रीनिवास के मुताबिक ऐसा लग रहा है कि अभी आरबीआई की महंगाई को लेकर चिंता बनी रहनी है ।