भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने आज कहा कि अगर अमेरिका का फेडरल रिजर्व ब्याज दर में आगे और इजाफा करता है तब भी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) पर मौद्रिक नीति सख्त करने का दबाव नहीं होगा। हालांकि फेडरल रिजर्व ने बीते बुधवार को ब्याज दर में इजाफा नहीं किया मगर फेड के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने कहा कि अगर मुद्रास्फीति कम करने की दिशा में प्रगति रुकती है तो दरें फिर बढ़ाई जा सकती हैं।
सिंगापुर में आयोजित बार्कलेजएशिया फोरम के दौरान ब्लूमबर्ग टेलीविजन से नागेश्वरन ने कहा, ‘यदि फेड दर में 25 आधार अंक की वृद्धि करता या दो दफे और इस तरह की बढ़ोतरी करता है तब भी आरबीआई पर इसका अनुसरण करते हुए दरें बढ़ाने का दबाव नहीं होगा।’
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि आरबीआई का दर वृद्धि का चक्र फेड से पूरी तरह जुड़ा नहीं है क्योंकि भारत का बाह्य संतुलन और वित्तीय स्थिरता 10 साल पहले की तुलना में अब काफी बेहतर है। उस समय भारत फेड के रुख का अनुसरण करने वाले देशों में शामिल था।
नागेश्वरन ने कहा, ‘भारतीय रुपया इस साल सभी एशियाई मुद्राओं में सबसे स्थिर रहा है। वृहद आर्थिक स्थिति को देखते हुए मुझे लगता है कि आरबीआई के पास पहले की तुलना में कुछ हद तक स्वतंत्रता है।वित्तीय मोर्चे यानी ब्याज और विनिमय दर दोनों काफी स्थिर हैं।’
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी इसी सप्ताह बिज़नेस स्टैंडर्ड के बीएफएसआई इनसाइट समिट में कहा था कि देश की मौद्रिक नीति का निर्धारण घरेलू कारकों से होता है।
उन्होंने कहा, ‘हम सभी संभावित अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम पर नजर रखते हैं क्योंकि हम एकीकृत दुनिया में रहते हैं। हमारे आसपास जो भी होता है, उसका असर हम पर पड़ता है। लेकिन हमारी मौद्रिक नीति मुख्य रूप से घरेलू कारकों से निर्धारित होती है। हमारी मौद्रिक नीति पर बॉन्ड यील्ड (अमेरिकी फेड) में अंतर या मुद्रा में नरमी का असर नहीं पड़ता है। कुल मिलाकर यह मुद्रास्फीति-वृद्धि के समीकरण और इसके भविष्य के परिदृश्य पर निर्भर करता है।’
पिछले महीने आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने आम सहमति से रीपो दर को 6.5 फीसदी पर यथावत रखने का निर्णय किया था। यह लगातार चौथा मौका था जब रीपो दर में इजाफा नहीं किया गया। इससे पहले अर्थव्यवस्था पर बढ़ती मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के लिए मौद्रिक नीति समिति ने मई 2022 से फरवरी 2023 के बीच रीपो दर में 250 आधार अंक का इजाफा किया गया था।
तेल कीमतों से जुड़े जोखिम पर नागेश्वरन ने कहा कि तेल कीमत में इजाफे का जो अनुमान है, उसके हिसाब से भारत का मार्जिन सुरक्षित दायरे में है। आरबीआई ने यह अनुमान चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में कच्चे तेल के दाम 85 डॉलर प्रति बैरल के आधार पर लगाया है।
नागेश्वरन ने यह भी कहा कि पूंजी निर्माण इस दशक में भारत के विकास को रेखांकित करता है। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कुछ जोखिम भी हैं। उन्होंने कहा कि वैश्विक शेयर बाजार में तेज गिरावट का भारत सहित अन्य देशों के बाजारों पर भी पड़ सकता है।