भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव अपने पहले सात महीने की नौकरी को चुनौतीपूर्ण बताते हैं। आंशिक रूप से वे इसका श्रेय अनिश्चित वैश्विक आर्थिक माहौल और देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में खुद को व्यवस्थित करने को देते हैं।
लेकिन, इससे उनकी मौद्रिक नीति घोषणा पर काम करने में कोई अड़चन नहीं आई। सुब्बाराव ने अपनी योजनाओं और अर्थव्यवस्था के संदर्भ में अपने नजरिये के बारे में सिध्दार्थ से बातचीत की। पेश है उसके कुछ अंश:
वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान आपने कम वृध्दि की बात कही थी लेकिन हम निचले स्तर पर जाने के संकेत देख रहे हैं?
लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि क्या सबसे बुरे दिन आने अभी बाकी है और आर्थिक चक्र बदल गया है। इस संकट से एक शिक्षा मिली कि इन सबकी भविष्यवाणी नहीं की जानी चाहिए। बदलाव के बाद हम जानेंगे कि यह हो चुका है। हालांकि कुछ संकेत ऐसे हैं जिनमें सुधार हुआ है जैसे एबीएन एमरो बैंक के पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स में सुधार हुआ है। यद्यपि यह अभी भी 50 के नीचे है।
औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े ऋणात्मक हैं लेकिन पूंजीगत वस्तुएं और एफएमसीजी से कुछ सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। लोगों ने कुछ खास क्षेत्रों जैसे वाणिज्यिक वाहनों, दोपहिए, सीमेंट और इस्पात की बात की जो बेहतर कर रहे हैं। ये सब संकेत हैं, मैं इसे निश्चयात्मक तौर पर नहीं कह रहा।
नीति की पिछली दो घोषणाओं में आपने दरों में बदलाव को समीक्षा से दूर रखा था। इस बार, आपने रेपो और रिवर्स रेपो में कटौती की है और कहा है कि बैंकों द्वारा दरों में कटौती किए जाने की गुंजाइश थी। इसका आधार क्या है?
आरबीआई द्वारा किए गए पॉलिसी रेट समायोजन में दरों में कटौती की गुंजाइश थी। हमलोगों के समाने सवाल यह था कि क्या हमें पॉलिसी रेट घटानी चाहिए अगर हां तो क्या इसके अभी किया जाना चाहिए या भविष्य के लिए टाल देना चाहिए? इस के पक्ष और विपक्ष में काफी तर्क दिए गए। हमलोगों ने सोचा कि लाभ इसी में है कि इसे पॉलिसी के हिस्से के रूप में घोषित किया जाए। इसके द्वारा हम ब्याज दरें कम करने का निश्चयात्मक संकेत देना चाहते हैं। और हमें भविष्य में समायोजन के गुंजाइश का ध्यान रखना होगा।
रिवर्स रेपो में आपके लिए कितनी गुंजाइश है क्योंकि आप पहले ही इसे घटा कर 3.25 फीसदी कर चुके हैं?
मैं कोई अंदाजा नहीं लगाना चाहता कि हम इसे कितना घटा सकते हैं। मैं यह कहना चाहता हूं कि भारत के रिवर्स रेपो रेट अमेरिका के पॉलिसी रेट और इंगलैंड के बैंक रेट से करें जो भ्रमात्मक हैं। हम इसे शून्य नहीं कर सकते। यह कोई विकल्प नहीं है। हालांकि, परिस्थितियों के अनुसार हम सुधार करेंगे। इस बारे में कोई संख्यात्मक अनुमान लगाना न तो हमारे लिए संभव है और न ही यह उचित है।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को अभी भी पूंजी प्राप्त करने में समस्याएं आ रही हैं। क्या वजह है कि अधिक पूंजी पर्याप्तता की जरूरतों को भविष्य के लिए टाल दिया गया? इसके अलावा, वित्तीय क्षेत्र की आकलन करने वाली समिति के विचारों को देखते हुए, इनके लिए दीर्घावधि की क्या योजना है?
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पिछले चार वर्षों में भारत के विकास में इनका खासा योगदान रहा है। वर्तमान समय में पूंजी जुटाने के आ रही समस्याओं के मद्देनजर एनबीएफसी के पूंजी पर्याप्तता अनुपात को बढ़ाए जाने की समय-सीमा को भविष्य के लिए टाल दिया गया है।
विश्व अभी काउंटर-साइक्लिकल पॉलिसी की बात कर रहा है और आप देखेंगे कि हमारी नीति भी वैसी ही है। अब एनबीएफसी महत्वपूर्ण आर्थिक एजेंट बनने के लिए किस प्रकार खुद को पुनर्गठित करते हैं ये उनका मामला है लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक वही करेगी जो जरूरी होगा। कुछेक एनबीएफसी की कुछ खास क्षेत्रों में विशेषज्ञता है, विभिन्न आकार के एनबीएफसी हैं, वे काफी विविधिकृत प्रकार के हैं इसलिए यह कहना काफी कठिन है कि हम उनके लिए क्या करेंगे।
