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उतार-चढ़ाव के बीच ‘न्यू नॉर्मल’ की ​स्थिति

Last Updated- December 23, 2022 | 11:52 PM IST
Situation of 'New Normal' amidst ups and downs

कोरोना महामारी के दो साल तक दुनिया एक तरह से ठहरी रही। इस दौरान महामारी से लाखों लोगों को जान गंवानी पड़ी, अर्थव्यवस्था गहरी मंदी में फंस गई थी और आपूर्ति श्रृंखला पर भी असर पड़ा था। ऐसे में 2022 उम्मीद की किरण लेकर आई कि भारत और दुनिया में ​स्थिति अब सामान्य होगी।

हालांकि दुनिया के अ​धिकांश हिस्सों में महामारी का असर धीरे-धीरे कम हो गया, लेकिन भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और भू-आर्थिक अड़चनों ने इसकी जगह ले ली। साल की शुरुआत यानी 2022 के फरवरी में यूरोप में युद्ध छिड़ गया और साल खत्म होते-होते कोविड-19 की आहट फिर सुनाई देने लगी। शून्य कोविड नीति और सख्त लॉकडाउन के कारण चीन अभी तक कोरोना महामारी की वि​भी​षिका से बचा हुआ था, लेकिन इस बार वह भी चपेट में आता दिख रहा है।

2020 में पहले लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने या ‘आत्मनिर्भर भारत’ की नीति का ऐलान किया था। मगर 2022 ने दिखा दिया कि आत्मनिर्भरता पर जोर देने वाला भारत भी वै​श्विक भू-राजनीतिक घटनाओं से अछूता नहीं है। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने विशेष रूप से खाद्य और ईंधन की आपूर्ति श्रृंखला में व्यापक बाधा खड़ी की। महामारी के कारण आपूर्ति श्रृंखला पर पहले ही काफी दबाव था, जिसकी वजह से मौद्रिक और राजकोषीय नीति में व्यापक ढील दी गई थी। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से खाद्य, ईंधन और अन्य जिंसों की आपूर्ति में अचानक बाधा ने दुनिया भर में महंगाई भड़काने का काम किया। केंद्रीय बैंकों ने महामारी के बाद सुधार को थोड़ा दरकिनार कर महंगाई पर काबू पाने के लिए दरों में इजाफा किया, जिससे मंदी की आशंका बढ़ गई है।

इन सबके बीच भारत वै​​श्विक स्तर पर आकर्षक स्थान दिख सकता है। इसकी एक वजह यह है कि कई अन्य देशों के विपरीत भारत में सरकार ने महामारी के दौरान राजकोषीय उपायों का ज्यादा उपयोग नहीं किया। इसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का उस तरह का दबाव नहीं है ​जैसा अन्य देश महसूस कर रहे हैं। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में ‘अर्थव्यवस्था की स्थिति’ पर अपनी रिपोर्ट में बताया है कि ईंधन की कीमतों पर अनि​श्चितता बनी हुई है। संयोग से पिछले कुछ वर्षों में भारत में ईंधन पर कर काफी अधिक रहे हैं। ऐसे में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमत बढ़ने का उतना अधिक असर नहीं हुआ, जितना अतीत में कीमतों में वृद्धि की वजह से हुआ था। 

फिर भी भू-राजनीतिक उथल-पुथल का 2023 में भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। युद्ध और महामारी पूरी तरह खत्म नहीं होने से आने वाले साल में भी वै​श्विक वृद्धि की रफ्तार घटकर दो फीसदी से नीचे रह सकती है। इसका मतलब यह है कि इलेक्ट्रॉनिक सामान सहित भारत के निर्यात में हालिया वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि निर्यात वृद्धि में यह गिरावट पहले ही शुरू हो सकती है। विकसित देशों में उच्च दरें होने से भारत में पूंजी प्रवाह भी प्रभावित होगा। संभावना यह भी है कि भारत को शुरुआत में पूंजी की निकासी का उतना सामना नहीं करना पड़े। लेकिन पूंजी प्रवाह लंबे समय तक सुस्त बने रहने की आशंका सरकार और केंद्रीय बैंक के लिए चुनौती पैदा करती है। ​ऐसे में निर्यात के मामले में भारतीय उद्योग जगत की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने से इसका स्थायी समाधान मिल सकता है। 

यह भी पढ़ें: वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं से अगले साल प्रभावित हो सकता है देश का निर्यात

यूक्रेन पर रूस के हमले ने दुनिया में 1980 के दशक के पश्चिम के दृष्टिकोण को नए सिरे से परिभा​षित कर सकता है क्योंकि स्पष्ट है कि यह व्लादीमिर पुतिन की ‘रूसी दुनिया’ से लंबे समय तक चुनौती का सामना करेगा। एक तरफ यह संकेत मिलता है कि यह भारत की तुलना में हिंद-प्रशांत पर कम ध्यान दे सकता है। हालांकि बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि पश्चिमी देश किस हद तक यह समझते हैं कि चीन के समर्थन की वजह से ही रूस ने इस तरह का सैन्य दुस्साहस किया है। निश्चित रूप से यूक्रेन युद्ध के कारण हुए व्यवधानों ने कई लोगों को यह सोचने पर मजबूर किया है कि ताइवान में आक्रमण होने की स्थिति में व्यापक प्रभाव पड़ेगा। इससे चीन को इस तरह का दुस्साहस करने से रोकने की आवश्यकता और बढ़ जाती है।

चीन के लिए शून्य कोविड नीति से बाहर निकलने में साल खत्म होते-होते नया मोड़ आ गया है। चीन में इसके विरोध में व्यापक प्रदर्शन हुए, जिसकी वजह से आईफोन के विनिर्माण संयंत्र पर भी असर पड़ा। इसने वै​श्विक मूल्य श्रृंखला में ज्यादा मजबूती लाने की जरूरत सामने रखी है। भारत पर भू-राजनीतिक प्रभाव की बात करें तो चीन और पश्चिमी देशों, दोनों को लेकर भविष्य के संबंधों का निरंतर पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है। इससे भारत के लिए नए अवसर भी पैदा हुए हैं। मगर उस अवसर को यथार्थ में बदलने के लिए देसी व्यापार पर केंद्रित और भी सुधारों की आवश्यकता होगी।

First Published - December 23, 2022 | 8:00 PM IST

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