मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस का कहना है कि अगर कच्चे तेल की कीमतें और महंगाई की रफ्तार आगे और बढ़ती है तो उसे भारत की रेटिंग घटानी पड़ सकती है।
इंडिया सावरिन रेटिंग्स पर अपनी रिपोर्ट में मूडीज ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में जोखिम बढ़े हैं लेकिन अभी ये इस स्तर तक नहीं पहुंचे हैं कि देश की रेटिंग को प्रभावित करें। मूडीज सावरिन रिस्क यूनिट की वरिष्ठ विश्लेषक अनिंदा मित्रा का कहना है कि तेल की बढ़ती कीमतों और उपयुक्त मौद्रिक उपायों की अनुपस्थिति से कीमतें बढी हैं। इसके अलावा मैक्रो इकोनॉमिक पॉलिसी पर दबाव बढ़ा है।
लिहाजा कड़े प्रावधानों से न सिर्फ ब्याज दरें बढ़ेगी बल्कि विकास दर में भी तेज गिरावट देखी जा सकती है। मूडीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर मौद्रिक उपायों के कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आते हैं या महंगाई बढ़ना जारी रहती है तो भारत की सावरिन रेटिंग में परिवर्तन के लिए दबाव पड़ेगा और यह स्थायी से नकारात्मक हो सकता है। मौजूदा समय में भारत की फॉरेन करेंसी को मूडीस ने ग्रेड बीएएए थ्री रेटिंग दी है जबकि घरेलू मुद्रा की रेटिंग बीएटू है। जो कि फॉरेन करेंसी लेवल से दो पायदान नीचे हैं। घरेलू करेंसी की रेटिंग अभी अनुमान के चरण में है क्योंकि यहां पब्लिक डेट कांस्ट्रैंट बहुत ज्यादा है।
अभी रेटिंग आउटलुक स्थायी है। गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने 29 जुलाई को रेपो रेट में 0.50 फीसदी और सीआरआर में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी की थी। केंद्रीय बैंक को अनुमान है कि वित्त्तीय वर्ष 2008-09 में भारत की विकास दर आठ फीसदी रहेगी। ये पहले किए गए अनुमान से नौ फीसदी से कम है। मूडी की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सभी विश्लेषण मौजूदा स्थिरता के माहौल में किए गए हैं लेकिन आगे डाउनसाइड प्रेशर आ सकता है।
इस जोखिमों के श्रोत दो चरणों में है। पहला ये तेजी बढ़ती कमोडिटी की कीमतों और अनुपयुक्त वित्त्तीय कदमों से सरकार केजनरल डेट मैट्रिक्स की डेटेरीओरेशन में शामिल हो सकते हैं। दूसरे ये जोखिम देश केएक्सटरनल एकाउंट में बढ़ते स्पिलओवर की वजह से हो सकते हैं। मूडीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर ये स्पिलओवर ज्यादा होते हैं तो फॉरेन करेंसी और घरेलू करेंसी के बीच फासला कम हो सकता है।
मूडीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्थिक सुधारों के बारे में भी अभी अनिश्तिता है क्योंकि चुनाव होने में महज एक साल है और पार्टी की सहयोगी पार्टियां इसका समर्थन करेंगी या नहीं। बढ़ती सब्सिडी और सरकार की कीमतें बढ़ानें में असफलता से वित्त्तीय घाटा बढ़ेगा। सरकार की वित्त्तीय परेशानियां उसकी तेल की कीमतों में बढ़ोतरी न करने और तेल कंपनियों को घाटे से बचाने के लिए जारी किए जाने वाले ऑयल बांड से जुड़ी हुई हैं।