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‘परिषद की मानना जरूरी नहीं’

Last Updated- December 11, 2022 | 6:52 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि केंद्र और राज्यों को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद के सुझाव मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। एक अहम फैसले में न्यायालय ने कहा कि जीएसटी परिषद के सुझाव केवल राह दिखा सकते हैं मगर इन पर चलना या नहीं चलना केंद्र एवं राज्यों पर निर्भर है। न्यायालय ने आज समुद्री मार्ग से माल वहन के एक मामले में एकीकृत जीएसटी (आईजीएसटी) को निरस्त कर दिया।
शीर्ष न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा कि जीएसटी पर कानून बनाने के लिए संसद और राज्य विधानसभाओं के पास समान अधिकार हैं। न्यायालय ने कहा कि केंद्र एवं राज्य के बीच रजामंदी भरा समाधान निकालने में जीएसटी परिषद को एक मध्यस्थ की तरह काम करना चाहिए। न्यायालय ने कहा, ‘संसद के लिए जीएसटी परिषद के सुझाव का महत्त्व सलाह-मशविरे तक ही सीमित हैं खासकर तब जब जीएसटी व्यवस्था का मकसद केंद्र एवं राज्य के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देना है। संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों को जीएसटी पर कानून बनाने का समान अधिकार हैं।’
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जीएसटी परिषद की सिफारिशों का आधार केंद्र एवं राज्यों के बीच आपसी संवाद एवं सहमति हैं। न्यायालय ने कहा, ‘परिषद के सुझाव सलाह-मशविरे तक सीमित हैं। अगर इन सुझावों को बाध्यकारी माना जाएगा तो इससे राजकोषीय संघीय ढांचे को नुकसान पहुंच सकता है। यह जरूरी नहीं है कि संघीय ढांचे में एक घटक को दूसरे घटक की तुलना में निर्णय लेने संबंधी ज्यादा अधिकार होने चाहिए।’
उच्चतम न्यायालय का यह आदेश तब आया है जब जीएसटी व्यवस्था लागू हुए पांच साल पूरे होने जा रहे हैं। यह व्यवस्था जुलाई, 2017 में लागू हुई थी।
विधि विशेषज्ञ मानते हैं कि उच्चतम न्यायालय के आदेश से जीएसटी के तहत उन प्रावधानों में बदलाव आ सकते हैं जिनकी न्यायिक समीक्षा हो सकती है। शार्दूल अमरचंद मंगलदास ऐंड कंपनी में पार्टनर रजत बोस ने कहा, ‘शीर्ष न्यायालय का यह आदेश महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें जीएसटी परिषद, केंद्र और राज्य की भूमिका तथा  जीएसटी व्यवस्था में उनके ताने-बाने को स्पष्टï रूप से परिभाषित किया गया है। जीएसटी परिषद संवैधानिक संस्था है, जिसका कार्य जीएसटी संबंधित विषयों पर अपने सुझाव देना है। परिषद के सुझावों का स्वीकार करना या नहीं करना पूरी तरह संसद एवं राज्यों विधानसभाओं के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।’
क्या था मामला?
मोहित मिनरल्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारत सरकार मामले में गुजरात उच्च्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि आईजीएसटी कानून 2007 के तहत गैर-कराधान क्षेत्र में आने वाले व्यक्ति द्वारा समुद्री मार्ग से दी जाने वाली सेवाओं पर कोई कर नहीं लिया जा सकता। उच्च न्यायालय ने कहा था कि भारत से बाहर किसी कर मुक्त क्षेत्र में रहने वाला कोई व्यक्ति अगर समुद्री मार्ग से भारत में सीमा शुल्क निपटान स्टेशन तक माल वहन करता है तो इस पर कर नहीं लगाया जा सकता।

First Published - May 20, 2022 | 12:07 AM IST

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