सरकार ने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन देने व आयातित सामान पर भारी कटौती करने की योजना बनाई है। वहीं आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि करीब सभी प्रमुख कारोबारी साझेदार देशों से भारत का आयात, उसके निर्यात की तुलना में ज्यादा है।
वाणिज्य विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 के दौरान शीर्ष 10 कारोबारी साझेदार देशों के साथ 9 देशों से भारत को व्यापार घाटा हुआ। इस दौरान कुल आयात 113 अरब डॉलर रहा, जो इन देशों को होने वाले निर्यात की तुलना में ज्यादा है। इसके पहले के साल में 118 अरब डॉलर का आयात हुआ था, उसकी तुलना में आयात घटा है, वहीं 5 देशों के साथ घाटा बढ़ा है। भारत का अमेरिका के साथ कारोबार में 17 अरब डॉलर का संतोषजनक कारोबारी अधिशेष है, जो उसका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। वहीं अन्य देशों के साथ व्यापार घाटा बढ़ा है। 2019-20 के दौरान संयुक्त अरब अमीरात हाल की प्रविष्टि है, जिसका भारत से निर्यात घटा है। फेडरेशन आफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के मुताबिक घोटाले की वजहों से हीरे के कारोबार के मानक सख्त किए जाने, भारत के परिधान निर्यात की हिस्सेदारी घटने और रिफाइंड पेट्रोलियम के निर्यात में कमी आने की वजह से ऐसा हुआ है।
चीन को लेकर रणनीति
चीन के विशेष प्रशासित क्षेत्र हॉन्गकॉन्ग से आयात भी बढ़ा है, जिसकी वजह से चीन के निर्यातकों के उत्पाद के निर्यात के मूल क्षेत्र के नियमों को लेकर सीमाशुल्क अधिकारियों की जांच बढ़ी है। सरकार गैर शुल्क व्यवधानों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिससे विदेश से खासकर चीन से आने वाली वस्तुओं का मुक्त प्रवाह सीमित किया जा सके।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक सरकार 371 वस्तुओं के आयात पर प्रावधान सख्त करने जा रही है, जिनमें खिलौनों से लेकर प्लास्टिक के सामान और खेल के सामान से लेकर फर्नीचर तक शामिल हैं। इनका कुल 127 अरब डॉलर का आयात होता है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘इसमें से बड़े हिस्से का आयात चीन से होता है और हम इनके आयात का विकल्प तलाशेंगे।’ चीन से इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाओं, परिधान व उपभोक्ता वस्तुओं का आयात भी सूची में है।
लेकिन भारत सीधे शुल्क बढ़ाने के पक्ष में नहीं है क्योंकि मंत्रालय का मानना है कि चीन से आयातित सामानों पर शुल्क बढ़ाने से भारत में विनिर्माण पर असर पड़ सकता है।
