अमेरिका यदि वाहनों और इनके कलपुर्जों के आयात पर लगे 25 फीसदी शुल्क में कटौती करता है तो भारत भी इनके आयात पर शुल्क घटाकर 0-1 प्रतिशत कटौती की पेशकश कर सकता है। भारत-अमेरिका के बीच जारी द्विपक्षीय व्यापार समझौते के बीच एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी।
अमेरिका ने डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन ने बीते सप्ताह वाहनों और उसके चुनिंदा कलपुर्जों के आयात पर 25 फीसदी शुल्क लगा दिया था। वाहनों पर जहां ये शुल्क 3 अप्रैल से लागू होंगे, वहीं ऑटो कलपुर्जों के आयात पर 3 मई से लागू होंगे। अधिकारी ने बताया, ‘वे वाहनों पर शुल्क घटाने को तैयार नहीं हैं लेकिन कलपुर्जों के शुल्क में कटौती कर सकते हैं। लिहाजा हमें भी कलपुर्जों के आयात पर आयात शुल्क मौजूदा 10-15 फीसदी से घटाकर 0 से 1 फीसदी करने में कोई समस्या नहीं होगी।
अधिकारी ने बताया, ‘कलपुर्जा क्षेत्र ने अनौपचारिक रूप से कह दिया गया है लेकिन हमने अभी तक बीटीए में उल्लेख नहीं किया है। इसका कारण यह है कि अभी तक अमेरिका ने आधिकारिक रूप से वाहन कलपुर्जों के आयात शुल्क पर बातचीत नहीं की है। यह अनौपचारिक है लेकिन बीटीए में इसको लेकर बातचीत होने की उम्मीद होगी। यदि वे बातचीत करते हैं तो हम अपनी पेशकश के साथ तैयार हैं। हमारे लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है।’ इस बारे में वाणिज्य और भारी उद्योग मंत्रालयों को सवाल भेजे गए थे लेकिन खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं मिला।
बाजार विश्लेषकों के अनुसार ट्रंप प्रशासन के फैसले के कारण भारत के वाहन कलपुर्जों के निर्यात का परिचालन मार्जिन 125-150 आधार अंक तक कम हो जाएगा। अभी इनका परिचालन मार्जिन 12 से 12.5 फीसदी के दायरे में है।
अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यालय (व्हाइट हाउस) ने एक फैक्ट शीट में बताया कि अमेरिका का 25 फीसदी शुल्क वाहनों और उसके कलपुर्जों पर लागू किया जाएगा और इस क्रम में जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त हिस्सों पर शुल्क बढ़ाया जा सकता है। इसके अनुसार वाहनों में सिडान, एसयूवी, क्रॉसओवर, मिनीवैन्स, कार्गो वैन व हल्के ट्रक और कलपुर्जों में इंजन, ट्रांसमिशन, पॉवरट्रेन घटक व प्रमुख बिजली उपकरणों पर शुल्क लागू होगा।
हालांकि अमेरिका को भारत ज्यादा वाहनों का निर्यात नहीं करता है। लेकिन 80 फीसदी वाहन कलपुर्जा निर्यात अमेरिका को जाता है। भारत से सबसे ज्यादा इंजन के कलपुर्जे, पॉवर ट्रेन और ट्रांसमिशन का निर्यात किया जाता है।
भारत में अमेरिका के वाहन कलपुर्जों के आयात पर तीन तरह के शुल्क – 7.5 फीसदी, 10 फीसदी और 15 फीसदी लगते हैं। वहीं भारत से होने वाले आयात पर अमेरिका 3.4-4.0 फीसदी का शुल्क लगाता है।
अमेरिका के वाहन कलपुर्जों के आयात पर शुल्क घटाए जाने की तार्किकता पर अधिकारी ने कहा कि इससे अमेरिका को भारत के ऑटोमोटिव बाजार में अधिक पहुंच मिल सकती है।
भारत ने वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में वैश्विक स्तर पर 11.1 अरब डॉलर के कलपुर्जों का निर्यात किया था। इसमें से करीब 28 फीसदी (3.67 अरब डॉलर मूल्य के) कलपुर्जों की खेप अमेरिका को भेजी गई थी। ऑटोमोटिव कंपोनेंट्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत ने वित्त वर्ष 24 में कुल 6.79 अरब डॉलर के मूल्य के बराबर निर्यात किया था। यूनाइटेड नेशन्स कॉमट्रेड के डेटाबेस के मुताबिक भारत ने अमेरिका को वर्ष 2023 में 3.71 करोड़ डॉलर मूल्य की कारों और अन्य वाहनों का निर्यात किया था।
वाहन उद्योग के एक अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया, ‘यदि अमेरिका भारत की तुलना में अन्य देशों को बेहतर रियायतें दे देता है तो चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी। अभी भारत अमेरिका से बीटीए के बारे में बातचीत कर रहा है। हो सकता है कि इस मुद्दे पर अन्य देश भी अमेरिका से बातचीत कर रहे हों। ऐसी स्थिति में अन्य देश अधिक प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं। ऐसे में कर ढांचा बदल सकता है, कुछ को फायदा हो सकता है और कुछ को नुकसान हो सकता है। इस बारे में आगे चलकर ही जानकारी मिलेगी।’
दूसरा, नए शुल्क के कारण अमेरिका में वाहनों के दाम में खासी बढ़ोतरी हो सकती है और इससे अमेरिका में घरेलू मांग भी प्रभावित होगी। इससे इस देश में आयात होने वाले वाहनों के कलपुर्जों की मांग भी प्रभावित हो सकती है।
अमेरिका प्रमुख आपूर्तिकर्ता जैसे चीन, मेक्सिको और कनाडा पर भरोसा नहीं कर सकता है क्योंकि भूराजनीतिक कारकों के कारण अक्सर इन देशों में लागत का ढांचा अधिक या अनिश्चित हो सकता है। उद्योग के अधिकारी ने बताया, ‘तीसरा, अभी चीन 21 फीसदी आयात शुल्क का सामना कर रहा है। चीन अपनी वस्तुओं को सस्ता बनाने के लिए अपारदर्शी ढंग से सब्सिडी दे सकता है। कनाडा तो अमेरिका की अत्यधिक जांच के दायरे में है।’
अमेरिका में होने वाले वाहनों के कलपुर्जों के आयात में दो तिहाई हिस्सेदारी मेक्सिको, कनाडा और चीन की है। अमेरिका में बीते वर्ष 89 अरब डॉ़लर के कलपुर्जों का आयात हुआ था जिसमें मेक्सिको की हिस्सेदारी 36 अरब डॉलर और चीन की हिस्सेदारी 10.1 अरब डॉलर थी।
ईवाई इंडिया के टैक्स पार्टनर सौरभ अग्रवाल ने कहा, ‘सरकार को वाहन क्षेत्र की पीएलआई योजना फिर से शुरू करने पर विचार करना चाहिए। इसमें विशेष तौर पर ईवी वाहन कारों पर लक्ष्य केंद्रित किया जाए। इससे भारतीय बाजार में ओईएम (ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्युफैक्चरर्स) अपने उत्पादों को प्रतिस्पर्धी बना सकेंगे।’
अग्रवाल ने बताया कि इसके अलावा निर्यातोन्मुखी ईवी यात्री कार सुविधाओं के लिए कुछ अन्य योजनाओं में उपयोग न हुए बजट को स्थानांतरित कर किसी पूंजी सब्सिडी योजना को शुरू करना महत्त्वपूर्ण हो सकता है। यह कदम भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाएगा और भारत वर्तमान भूराजनीतिक परिदृश्य का लाभ उठा सकेगा।