भारत और यूनाइटेड किंगडम (UK) के बीच गुरुवार को फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) साइन होने के बाद उद्योग जगत में उत्साह का माहौल देखने को मिला।
भारती एंटरप्राइजेज के चेयरमैन और इंडिया-यूके CEO फोरम के सह-अध्यक्ष सुनील भारती मित्तल और भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी, इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चेकर्स (लंदन के पास) में मौजूद थे।
निवेदिता मुखर्जी से ज़ूम पर हुई इस बातचीत में समझौते के अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा हुई। नीचे बातचीत के संपादित अंश पेश हैं:
सुनील भारती मित्तल (SBM):
यह समझौता दोनों देशों के लिए फायदेमंद है। लंबे और कठिन बातचीत के बाद जो नतीजा निकला है, वह संतुलित है। अब ब्रिटेन की कई कंपनियों को भारत में निवेश करने, यहां काम करने और अपने बेस बनाने को लेकर ज्यादा भरोसा मिलेगा।
प्रधानमंत्री ने आज कहा कि इस समझौते के जरिए द्विपक्षीय व्यापार को 56 अरब डॉलर से बढ़ाकर पांच साल में 112 अरब डॉलर तक ले जाया जा सकता है। यह लक्ष्य बड़ा जरूर है, लेकिन इसे हासिल किया जा सकता है। एफटीए को लेकर अक्सर दोनों पक्षों में ‘मांग’ और ‘रियायतों’ पर असहमति होती है, लेकिन इस बार दोनों पक्ष एक ऐसे संतुलन पर पहुंचे हैं, जहां कोई बड़ी रुकावट नजर नहीं आती।
चंद्रजीत बनर्जी (CB):
भारत की कई इंडस्ट्रीज को इस एफटीए से फायदा मिलेगा—मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर दोनों को। खासकर टेक्सटाइल और रेडीमेड गारमेंट्स जैसे सेक्टर के लिए यूके एक बड़ा बाजार खुलेगा। फार्मा सेक्टर में भी भारत के लिए बड़े मौके बनेंगे।
इंजीनियरिंग और ऑटो कंपोनेंट्स सेक्टर की छोटी और मंझोली कंपनियां इससे लाभ में रहेंगी। इसके अलावा लेदर और फुटवियर जैसे श्रम आधारित सेक्टरों को भी यूके बाजार तक ज्यादा पहुंच मिलेगी, जिससे निर्यात बढ़ेगा।
SBM: इस डील का पूरा होना भारत के लिए अहम है। इससे भारत की स्थिति मजबूत होती है। लेकिन अमेरिका का मामला अलग है। वह दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है… अच्छा है कि यह समझौता अब निपट गया है। इससे एक कम डील पर ध्यान देना होगा और अब वार्ताकार अगली डील पर फोकस कर पाएंगे। उम्मीद है कि यूरोपीय संघ (EU) के साथ अगली डील कुछ हफ्तों या महीनों में पूरी हो सकती है।
जहां तक अमेरिका की बात है, वहां कोई अंतरिम समझौता हो सकता है। यह हमारे लिए चर्चा करना आसान है, लेकिन अमेरिका में हर दिन कोई नया घटनाक्रम सामने आ रहा है।
CB: एक तरह से देखें तो यूके के साथ FTA ये संकेत देता है कि भारत अब दुनियाभर में लगातार बड़े व्यापार समझौते कर रहा है—चाहे वो पूर्वी गोलार्ध हो या अब पश्चिमी। इससे यह भी साफ होता है कि भारतीय उद्योग अब वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन चुका है। यह डील यह भी दिखाती है कि भारत न सिर्फ विदेशी कंपनियों को निवेश के मौके दे रहा है, बल्कि भारतीय कंपनियां भी अब अन्य देशों में मजबूती से निवेश कर रही हैं… यह एक तरह से वैश्विक शक्ति संतुलन की झलक है।
भारती एंटरप्राइजेज के चेयरमैन सुनील भारती मित्तल ने कहा है कि भारत और ब्रिटेन के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) में टेलीकॉम सेक्टर को लेकर एक पूरा अध्याय शामिल किया गया है। इसे लेकर उन्होंने खुशी जताई। मित्तल ने कहा, “जैसा कि आप समझ सकते हैं, मैं इस चैप्टर को देखकर बहुत खुश हूं। दोनों देशों के बीच अब टेलीकॉम सेक्टर में विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए दरवाज़े पूरी तरह खुले रहेंगे।”
उन्होंने आगे कहा कि पहले भी वोडाफोन को भारत में 100 फीसदी एफडीआई की अनुमति दी गई थी। लेकिन एफटीए के तहत अब यह स्थिति सिर्फ मौखिक सहमति नहीं रहेगी, बल्कि इसे समझौते में स्पष्ट रूप से दर्ज कर लिया जाएगा।
एसबीएम: बिल्कुल, मैं कहूंगा कि यह डील मददगार साबित हो सकती है। पहले बड़ी कंपनियां बनती हैं, फिर वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाती हैं—दुनियाभर में यही तरीका रहा है। पश्चिमी देशों को यह फायदा काफी पहले से मिला हुआ है क्योंकि उन्होंने हमसे पहले समृद्धि हासिल की। लेकिन अब भारत भी उसी रास्ते पर है। आने वाले समय में भारतीय मल्टीनेशनल कंपनियां (MNCs) वैश्विक मंच पर मजबूत होती दिखेंगी। टाटा ग्रुप पहले ही जगुआर लैंड रोवर (JLR) और अन्य ब्रांड्स के साथ वहां मौजूद है। मुझे लगता है कि एयरटेल को भी उनमें गिना जा सकता है। इसके अलावा गोदरेज और महिंद्रा जैसी कुछ और कंपनियां भी इसी दिशा में बढ़ रही हैं।
SBM: यह डील हमें टेलीकॉम, रियल एस्टेट और हॉस्पिटैलिटी जैसे सेक्टर्स में सालों से किए जा रहे काम की मान्यता देती है। हमारे पास ब्रिटिश सरकार के साथ OneWeb सैटेलाइट डील भी है।
यह समझौता भारत और ब्रिटेन के बीच हमारे रिश्तों को और मजबूत बनाता है। शायद हम यहां की कुछ तकनीकें भारत ले जाकर वहां के बड़े बाजार में इस्तेमाल कर सकें।
हम लचीले हैं और नए अवसरों की तलाश में हैं। लेकिन आज मैं आपके सामने भारतीय बिजनेस लीडर्स डेलिगेशन और CEO फोरम के सह-अध्यक्ष के तौर पर खड़ा हूं। इस भूमिका में मेरा काम दोनों देशों के बिजनेस नेतृत्व को साथ लाकर हमारे ट्रेड को उस स्तर तक पहुंचाना है, जो दोनों देशों ने मिलकर तय किया है।
SBM:
यह एक ऐसा मौका है जहां दोनों देशों को एक-दूसरे की ताकतों से फायदा मिल सकता है। भारत और ब्रिटेन के बीच कारोबार के कई क्षेत्रों में पूरकता (complementarity) है, जो एक मजबूत साझेदारी का आधार बनती है। आपने सही कहा कि कई बार व्यापार समझौते होने के बावजूद अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता। लेकिन इस बार स्थिति अलग है। मुझे पूरा भरोसा है कि जैसे ही यह समझौता लागू होगा, पहले साल में ही व्यापार की दिशा ऊपर जाएगी।
CB:
यह व्यापार समझौता दोनों देशों के हितों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है – चाहे वह निवेश हो या व्यापार। छोटे और मझोले उद्यम, टेक्नोलॉजी, शिक्षा जैसे क्षेत्र हों, हम (भारत-यूके बिजनेस फोरम) अलग-अलग समूह बनाकर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि किस तरह से इस समझौते का सबसे अच्छा इस्तेमाल किया जाए। यह समझौता इंडस्ट्री के लिए रचनात्मक तरीके से काम करने का एक अच्छा अवसर है।
SBM: देखिए, किसी भी समझौते में कुछ न कुछ ऐसा जरूर होता है जिसे बेहतर किया जा सकता था। कुछ इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को लग सकता है कि कुछ पहलुओं को और अच्छे से संभाला जा सकता था। लेकिन कुल मिलाकर मुझे नहीं लगता कि इस समझौते को लेकर कोई खास शिकायत होनी चाहिए। किसी एक वर्ग को थोड़ी असहमति हो सकती है, लेकिन ऐसे ट्रेड डील में जहां दोनों पक्षों को फायदा हो, वैसी स्थिति बहुत कम देखने को मिलती है। इस समझौते में वो संतुलन नजर आ रहा है।
SBM ने कहा: “फिलहाल इंडस्ट्री का मूड बहुत अच्छा है। माहौल काफी उत्साहजनक है।”
CB ने जोड़ा: “हमने सरकार और उद्योग के बीच बेहतरीन साझेदारी देखी है। यह सहयोगी ढांचा आगे भी अहम भूमिका निभाएगा। जब सरकार उद्योग को साथ लेकर चलती है और उनसे सलाह-मशविरा करती है, तो एफटीए जैसी नीतियां सभी के लिए फायदेमंद साबित होती हैं।”