भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने सोमवार को आगाह किया कि जब वित्तीय बाजार अर्थव्यवस्था से बड़ा हो जाता है तो वित्तीय बाजार की प्राथमिकताएं व विचार व्यापक आर्थिक परिणामों पर हावी हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि वित्तीय बाजार का बड़ा होना स्वाभाविक है लेकिन यह वाजिब नहीं है।
भारत अब आगे 2047 की तरफ देख रहा है तो ऐसे रुझानों से बचना चाहिए क्योंकि विकसित दुनिया में ऐसी प्रवृत्ति के परिणाम सभी के सामने हैं। नीतियों और व्यापक आर्थिक परिणामों पर वित्तीय बाजार के प्रभुत्व को वित्तीयकरण कहा जाता है।
नागेश्वरन ने मुंबई में आयोजित सीआईआई फाइनैंसिंग 3.0 समिट में कहा कि जब वित्तीय क्षेत्र की सेहत बहुत ज्यादा मजबूत होती है तो शेष अर्थव्यवस्था की सेहत कमजोर हो जाती है। उन्होंने बताया, ‘भारत के शेयर बाजार का पूंजीकरण सकल घरेलू उत्पाद का करीब 130 फीसदी है।
भारतीय वित्तीय क्षेत्र की रिकॉर्ड लाभप्रदता और बाजार के पूंजीकरण का उच्च स्तर या जीडीपी की तुलना में बाजार पूंजीकरण के अनुपात से एक अलग परिघटना सामने आती है, जिसकी जांच की जानी चाहिए।’ वित्तीय बाजार जोखिम और प्रतिफल का सबसे भरोसेमंद मानदंड नहीं हैं।
यदि ये मानदंड नहीं है तो इन पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। यदि वे ऐसा हैं तो उपलब्ध बचत को सर्वाधिक कुशल अनुप्रयोगों में लगाने के लिए उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा नागेश्वरन ने कहा कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने भौतिक रूप से समृद्ध होने के बाद सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के ऋण के अभूतपूर्व स्तर, संपत्ति की कीमतों में निरंतर वृद्धि पर निर्भर आर्थिक विकास और असमानता में भारी उछाल के रूप में वित्तीयकरण के प्रभाव को देखा है।
भारत अभी भी निम्न मध्यम आय श्रेणी में है इसलिए देश को इन प्रभावों और जोखिम से बचना चाहिए। नागेश्वरन ने अन्य क्षेत्रों की तुलना में वित्तीय सेवा के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि इसकी ज्यादा जिम्मेदारी है।
उन्होंने बताया, ‘वित्तीय क्षेत्र और अन्य क्षेत्र में बड़ा फर्क यह है कि वित्तीय क्षेत्र में होने वाली घटना का असर पूरी अर्थव्यवस्था पर दूरगामी रूप से पड़ता है। लिहाजा वित्तीय क्षेत्र पर अधिक जिम्मेदारी है।’
उन्होंने बताया कि उधारी देने में बैंकिंग की मदद कम कर दी गई है और इसकी जगह वित्तीय क्षेत्र ने उत्पाद और हिस्सेदारी के रूप में हासिल कर ली है। इस बारे में देश ने सोच समझकर कदम उठाया है।