ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में अगस्त 2023 से जुलाई 2024 के बीच प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय (एमपीसीई) में खाद्य वस्तुओं की हिस्सेदारी थोड़ी सी बढ़ी है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण से यह खुलासा हुआ है। मगर विशेषज्ञों का कहना है कि यह महज अस्थायी झटका हो सकता है और रुझान में बदलाव नहीं।
प्रति व्यक्ति कुल मासिक उपभोग व्यय में खाद्य वस्तुओं की हिस्सेदारी 2023-24 के दौरान ग्रामीण इलाकों में 47.04 फीसदी जबकि शहरों में 39.7 फीसदी। एक साल पहले यानी 2022-23 में यह आंकड़ा क्रम से 46.4 फीसदी और 39.2 फीसदी था।
एनएसओ के सर्वेक्षण से पता चलता है कि 2023-24 की अवधि में ग्रामीण परिवारों का मासिक घरेलू खर्च 2023-24 में नॉमिनल कीमतों पर 9.2 फीसदी बढ़कर 4,122 रुपये हो गया। इस दौरान दौरान शहरी परिवारों का मासिक घरेलू खर्च 8.3 फीसदी बढ़कर 6,996 रुपये हो गया। इन आंकड़ों में विभिन्न सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के जरिये परिवारों को मिलने वाली मुफ्त वस्तुओं के मूल्यों को शामिल नहीं किया गया है।
आंकड़ों से पता चलता है कि अनाज पर गांवों और शहरों दोनों इलाकों में परिवारों के खर्च में क्रमश: 4.99 फीसदी और 3.76 फीसदी की वृद्धि हुई। एक साल पहले यह आंकड़ा क्रमश: 4.91 फीसदी और 3.64 फीसदी रहा था। यह ऐसे समय में दिखा है जब ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में अनाज पर औसत मासिक प्रति व्यक्ति मात्रात्मक खपत में गिरावट आई है।
जहां तक अन्य खाद्य वस्तुओं का सवाल है तो ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में पेय पदार्थों, दालों, सब्जियों, फल, अंडा-मांस और मसालों पर खर्च में भी बढ़ोतरी हुई। गैर-खाद्य वस्तुओं के मामले में ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा, शिक्षा, किराया, ईंधन और टिकाऊ वस्तुओं पर व्यय में कमी आई जबकि शहरी क्षेत्रों में पान, तंबाकू, ईंधन, चिकित्सा, वाहन, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और उपभोक्ता सेवाओं पर खर्च में कमी दर्ज की गई।
आंकड़ों से पता चलता है कि आंकड़ों से यह भी पता चला है कि ग्रामीण उपभोग में वृद्धि की रफ्तार तेज रहने के कारण गांवों और शहरी परिवारों के बीच औसत मासिक उपभोग व्यय में अंतर 2023-24 में 69.7 फीसदी तक कम हो गया है। एक साल पहले यानी 2022-23 की इसी अवधि में यह आंकड़ा 71.2 फीसदी था।
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) के पूर्व कार्यवाहक चेयरमैन पीसी मोहनन ने कहा कि खाद्य वस्तुओं पर व्यय की हिस्सेदारी बढ़ने का एक कारण साल भर से बरकरार खाद्य मुद्रास्फीति में तेजी भी हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘खपत पैटर्न आम तौर पर इतने कम समय में नहीं बदलते हैं। मगर यह भी सच है कि पिछले एक साल के दौरान सब्जियों, फलों और दालों सहित लगभग सभी खाद्य पदार्थों की कीमतों में काफी तेजी दिखी है। ऐसे में निश्चित तौर पर परिवारों का बजट प्रभावित हुआ है। हालांकि यह एक अस्थायी झटका है।’
भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणब सेन ने कहा कि एनएसओ ने कार्यप्रणाली में किए गए बदलावों की मजबूती की जांच करने के लिए लगातार दो उपभोग व्यय सर्वेक्षण किए। उन्होंने कहा, ‘जो नतीजे सामने आए हैं वे काफी सुसंगत हैं और जो भिन्नता दिखी है वह सांख्यिकीय त्रुटि के दायरे में हो सकती है। इसलिए यह रुझान में बदलाव का संकेत नहीं देता है।’