इन्वेस्टर एजुकेशन प्रोटेक्शन फंड (आईईपीएफ) जो निवेशकों की जागरूकता और उनके हितों की रक्षा के लिए है, के चाहने वालों की कमी रही और इस फंड को इस्तेमाल में कम लाया गया।
कंपनी मामलों के मंत्रालय (एमसीए) के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘पिछले कई वर्षों में आईईपीएफ के तहत ज्यादा खर्च नहीं किए गए हैं क्योंकि इस फंड की प्राप्ति के लिए अच्छे प्रस्ताव नहीं मिल रहे।’
आईईपीएफ साल 2001 में कंपनी अधिनियम 205सी के तहत बनाया गया था। इस खाते के माध्यम से दावा नहीं किए गए लाभांश के फंड, परिपक्व जमाएं, परिपक्व प्रतिभूतियां या शेयर अप्लिकेशन मनी कंपनियों द्वारा सरकार को दे दिए जाते हैं अगर सात वर्षों तक इन पर दावा नहीं किया जाता है।
एमसीए के अधिकारियों के अनुसार आईईपीएफ फंड का कोष लगभग 500 करोड रुपये का है लेकिन इनमें से ज्यादा का उठाव नहीं हुआ है। उदाहरण के तौर पर, साल 2005 से 2008 तक की तीन साल की अवधि में 89.51 करोड रुपये कंपनियों से आईईपीएफ के तहत संग्रहित किए गए लकिन इस फंड से केवल 8 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
अधिकारी ने कहा, ‘मंत्रालय इप पैसों को खर्च करने का इच्छुक है लेकिन इसके लिए उपयुक्त प्रस्ताव नहीं मिले।’ संयोगवश, यह फंड कंपनी मामले के मंत्रालय के पास नहीं है बल्कि वित्त मंत्रालय के पास भारत के समेकित फंड (सीएफआई) में है और प्रत्येक वर्ष एमसीए को इसमें से सीमित राशि निवेशकों के हितों की रक्षा और उनकी शिक्षा के लिए मिलती है।
एमसीए के अधिरी ने कहा कि मंत्रालय कहता रहा है कि यह फंड एमसीए का एक हिस्सा होना चाहिए क्योंकि यह राजस्व प्राप्तियों का हिस्सा नहीं है बल्कि निवेशकों का धन है। फंड को पाने का मंत्रालय का प्रयास विफल रहा है।
बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ने भी साल 2007 में निवेशकों की शिक्षा और उनके हितों की रखा के लिए 10 करोड़ रुपये की आरंभिक राशि से एक फंड बनाया था। इस फंड में सेबी बोर्ड, राज्य और केंद्र सरकार के अनुदानों, और इस फंड के निवेश से प्राप्त होने वाली आय या ब्याज से पैसे आते हैं।
