देश के बड़े औद्योगिक केंद्र प्रवासी मजदूरों की कमी से जूझ रहे हैं मगर मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल इलाके के औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों की कोई किल्लत नहीं है। लॉकडाउन खुलने के साथ ही उद्यमियों को ऑर्डर मिलने शुरू हो गए हैं। मगर दूसरी दिक्कतें काम के आड़े आ रही हैं।
सबसे बड़ी दिक्कत शारीरिक दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग की है, जिसकी वजह से कारखानों में उत्पादन कम हो रहा है। उत्पादन कम होने से कमाई तो कम है मगर कोविड-19 महामारी में खर्च बढ़ गए हैं। बड़े कारखाने तो फिर भी ठीक हैं, छोटे कारखानों की हालत ज्यादा खराब है। ग्वालियर-चंबल इलाके में बामौर (जिला मुरैना) और मालनपुर (जिला भिंड) जैसे बड़े औद्योगिक क्षेत्र हैं, जहां करीब 500 छोटी-बड़ी इकाइयां हैं, जिनमें 25-30 हजार लोगों को सीधे रोजगार मिलता है। इनमें जेके टायर, कैडबरी, सूर्या रोशनी, गोदरेज जैसी बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं।
मालनपुर लघु उद्योग संघ के अध्यक्ष और वाहन कलपुर्जा निर्माता यादवेंद प्रताप सिंह परिहार ने बताया कि लॉकडाउन खुलने के बाद बड़े कारखानों में उत्पादन जोर पकडऩे लगा है। मजदूरों की किल्लत नहीं है मगर कुशल कामगारों के घर जाने से कुछ दिक्कत जरूर हो गई है। अलबत्ता दूसरे राज्यों से कामगार वापस आ गए हैं, जिससे अकुशल कामगार भरपूर संख्या में मिल रहे हैं। बड़ी दिक्कत यह है कि सोशल डिस्टेंसिंग लागू होने से छोटी इकाइयां पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रही हैं। उनमें 40-50 फीसदी क्षमता से ही काम हो रहा है। इससे उत्पादन कम हो गया है और लागत बढ़ गई है।
परिहार ने कहा कि सोशल डिस्टेंसिंग ही दिक्कत नहीं है। पिछला भुगतान अटक गया है, बिजली का बिल देना है, मजदूरों का वेतन है, कारखाने के रखरखाव का खर्च है, कोरोना से बचाव के उपाय करने हैं। इनसे हर महीने 40,000 रुपये तक का खर्च बढ़ गया है। लॉकडाउन में कारखाने बंद रहे मगर बिजली विभाग ने फिक्स्ड चार्ज के नाम पर 2-2 लाख रुपये तक के बिल थमा दिए हैं। इनके फेर में पड़े उद्यमी को कच्चा माल भी महंगा मंगाना पड़ रहा है क्योंकि काफी माल बाहरी राज्यों से भी आता है। मंडी गोविंदगढ़ से माल मंगाने का खर्च भी करीब 30 फीसदी बढ़ गया है। परिहार और दूसरे उद्यमियों की मांग है कि बढ़ती लागत से राहत देने के लिए सरकार पट्टा किराया, रखरखाव शुल्क और बिजली बिल का फिक्स्ड चार्ज माफ कर दे। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं होने पर मालनपुर की 400 इकाइयों में से 20 फीसदी छोटी इकाइयों पर ताले लटक सकते हैं।
अलबत्ता बड़ी कंपनियों को ऐसी किसी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ रहा है। हां, सोशल डिस्टेंसिंग के कारण उत्पादन में कमी उन्हें जरूर खल रही है। बामौर औद्योगिक क्षेत्र में जेके टायर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हाल ही में कुछ ऑर्डर मिलने के बाद पिछले हफ्ते कारखाने में उत्पादन शुरू हो गया है। लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग और कम ऑर्डर की वजह से 40-50 फीसदी उत्पादन ही हो रहा है। मजदूरों की दिक्कत भी नहीं है क्योंकि ज्यादातर काम करने वाले स्थानीय ही हैं।
ग्वालियर शहर के महाराजपुरा, गिरवई, बाराघटा, तानसेन नगर जैसे औद्योगिक इलाकों में भी 450-500 सूक्ष्म एवं लघु इकाइयां हैं। वहां भी सबकी पैसा नहीं होने और लागत बढ़ जाने की ही शिकायत है। ग्वालियर इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष कमल शर्मा कहते हैं कि लॉकडाउन के कारण पुराने माल का भुगतान अटका हुआ है, जिससे कच्चा माल खरीदने के लिए भी पैसे की तंगी हो गई है। यहीं की इकाई डायमंड फूड प्रोडक्ट्स के कैलाश वलेचा कहते हैं कि ऑर्डर आ रह हैं मगर उत्पादों की पैकिंग के लिए कंटेनरों की कमी है क्योंकि ये गाजियाबाद और रुद्रपुर से आते हैं। सीमा पार आवाजाही कम होने की वजह से इनकी आपूर्ति में दिक्कत आ रही है।
ग्वालियर के बाजारों में बिक्री सुस्त
कोरोनावायरस ने ग्वालियर के बाजारों का पूरा गर्मी का सीजन खा लिया। भिंड, मुरैना, दतिया जिलों के लोग शादियों पर कपड़े आदि की खरीदारी करने ग्वालियर के बाजारों में आते हैं। ग्वालियर में रेडीमेड गारमेंट थोक व्यवसायी संघ के अध्यक्ष गोपाल जायसवाल ने बताया कि यहां में थोक रेडीमेड गारमेंट का सालाना कारोबार 175 से 200 करोड़ रुपये है। इसमें 80 से 120 करोड़ रुपये का कारोबार गर्मियों के सीजन में होता है। लेकिन इस साल अब तक 20-25 करोड़ रुपये का कारोबार ही हो पाया है।
शहर में इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के बड़े कारोबारी प्रवीन माहेश्वरी ने बताया कि लॉकडाउन में ढील के बाद से एसी, फ्रिज की बिक्री ने जोर पकड़ा है और अब तक करीब 3.5 करोड़ रुपये का सामान बिक चुका है। मगर लॉकडाउन नहीं होता तो 7.5 करोड़ रुपये तक की बिक्री हो चुकी होती।
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया टेडर्स की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष और ग्वालियर के कारोबारी भूपेंद्र जैन ने बताया कि शादियों के सीजन का कारोबार लॉकडाउन की भेंट चढ़ गया। अब सीमित संख्या में हो रही शादियों की खरीदारी के अलावा बहुत जरूरी होने पर ही लोग खरीदारी करने आ रहे हैं। लिहाजा सामान्य दिनों के मुकाबले कारोबार काफी कम हो रहा है।