वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद शनिवार को प्रस्तावित बैठक में मुनाफाखोरी-रोधी मामलों की प्रगति की समीक्षा कर सकती है। बैठक के एजेंडे की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि परिषद को चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) की प्रदर्शन रिपोर्ट से अवगत कराया जाएगा। पहली तिमाही के दौरान इस तरह के एक भी मामले का निपटारा नहीं हुआ है।
पिछले साल 1 दिसंबर को राष्ट्रीय मुनाफाखोरी-रोधी प्राधिकरण का भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के साथ विलय किए जाने के बाद परिषद मुनाफाखोरी-रोधी से संबंधित मामलों में प्रदर्शन की पहली बार समीक्षा करने जा रही है।
7 अक्टूबर को परिषद के समक्ष प्रस्तुत की जाने वाली स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक सीसीआई को पहली तिमाही में कुल 27 शिकायतें मिलीं, जिनमें से मुनाफाखोरी से संबंधित 12 मामलों की जांच की गई और इस संबंध में आवश्यक निर्देश दिए गए। बाकी शिकायतें जीएसटी के अन्य मामलों से जुड़ी थीं, जिन्हें संबंधित राज्य और केंद्रीय जीएसटी अधिकारियों को आगे की कार्रवाई के लिए भेज दिया गया।
आंकड़ों से पता चलता है कि करीब 176 मामले लंबित हैं और उनमें से ज्यादातर मामले पूर्ववर्ती राष्ट्रीय मुनाफाखोरी-रोधी प्राधिकरण से सीसीआई को हस्तांतरित किए गए थे।
जांच रिपोर्ट के बाद प्राधिकरण दोनों पक्षों को सुनने के बाद आदेश जारी करता है। अगर सीसीआई पाता है कि आपूर्तिकर्ता मुनाफाखोरी की है तो उसे उक्त राशि 18 फीसदी ब्याज के साथ ग्राहकों को लौटाना होता है। विशेषज्ञों ने कहा कि पहली तिमाही के दौरान सीसीआई में न्यूनतम आवश्यक सदस्यों की संख्या पूरी नहीं होने की वजह से मामलों के निपटान में देरी हुई है।
जेएसए में प्रतिस्पर्धी कानून के पार्टनर और प्रमुख वैभव चोकसी ने कहा, ‘प्रतिस्पर्धा कानून की धारा 22 के अनुसार सीसीआई के समक्ष आने वाले मामलों पर निर्णय करने के दौरान कम से कम तीन सदस्य शामिल होने चाहिए। अक्टूबर 2022 में सीसीआई के चेयरपर्सन की सेवानिवृत्ति के बाद आयोग में केवल दो सदस्य बचे थे। ऐसे में मुनाफाखोरी-रोधी मामलों का निपटान करने में देरी की यह भी एक वजह हो सकती है।’19 सितंबर को केंद्र सरकार ने सीसीआई में तीन नए सदस्यों की नियुक्ति की है। नई नियुक्ति के साथ सीसीआई के चेयरमैन सहित सदस्यों की संख्या बढ़कर चार हो गई है।
एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा कि सीसीआई अब पूरी क्षमता के साथ काम कर रहा है। ऐसे में मामलों के निपटान में तेजी आने की उम्मीद है और चालू वित्त वर्ष के बाकी बची तिमाही में यह स्पष्ट तौर पर दिख सकता है।
1 दिसंबर से सीसीआई को जीएसटी से संबंधित मुनाफाखोरी-रोधी मामलों की जांच का जिम्मा सौंपा गया है। इसके साथ ही सीसीआई को इसकी भी जांच करने का काम दिया गया है कि किसी पंजीकृत व्यक्ति द्वारा इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ उठाने या कर की दर में कमी के बाद वस्तुओं या सेवाओं की कीमतों में कमी कर इसका लाभ ग्राहकों को दिया गया है या नहीं। पहले इस तरह के मामलों की जांच राष्ट्रीय मुनाफाखोरी-रोधी प्राधिकरण करता था।