वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी 2.0) में बदलाव की तैयारी चल रही है। इसमें सरकार व्यवसायों को मौजूदा इन्वेंट्री पर संचित इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) को आगे ले जाने की अनुमति दे सकती है ताकि कंपनियों को उच्च दरों पर खरीदे गए सामान पर आईटीसी का लाभ गंवाना न पड़े।
जीएसटी परिषद सुचारु रूप से बदलाव सुनिश्चित करने तथा व्यवसायों को अतिरिक्त लागतों से बचाने के लिए कर प्रशासन व्यवस्था को अद्यतन कर सकती है। इस मामले से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, ‘हम जीएसटी में बदलाव की ओर बढ़ रहे हैं। इसमें हमारा मकसद कारोबारियों के लिए बाधारहित बदलाव सुनिश्चित करना है। मौजूदा इन्वेंट्री पर संचित आईटीसी को आगे ले जाने की अनुमति देने से कंपनियों को दरों के युक्तिकरण के कारण होने वाले किसी भी कर नुकसान से बचाया जा सकेगा। अद्यतन बनाई गई आईटी व्यवस्था से आसानी से क्रेडिट ट्रांसफर हो सकेगा और करदाताओं को अतिरिक्त लागत से बचाया जा सकेगा।’
इस सिलसिले में वित्त मंत्रालय को भेजे गए ई-मेल का जवाब खबर छपने को भेजे जाने तक नहीं मिल सका। उदाहरण के लिए अगर कोई कंपनी सोलर मॉड्यूल का व्यापार करती है और उसके पास 100 करोड़ रुपये का माल पड़ा हुआ है और 12 करोड़ रुपये आईटीसी मिलना है। इस समय सोलर मॉड्यूल पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगता है, और अगर जीएसटी में बदलाव के बाद यह घटकर 5 प्रतिशत हो जाता है। ऐसी स्थिति में 10 प्रतिशत फायदे के हिसाब से कंपनी 5.5 करोड़ रुपये (110 करोड़ रुपये का 5 प्रतिशत) जीएसटी का भुगतान करेगी और इस तरह से 6.5 करोड़ रुपये आईटीसी का समायोजन भंडार के समाप्त होने के बाद होगा।
टैक्स कनेक्ट एडवाइजरी के पार्टनर विवेक जालान ने कहा, ‘कंपनी के पास शेष आईटीसी को समाप्त करने का कोई विकल्प नहीं होगा। इसका मतलब यह होगा कि जिन मामलों में जीएसटी घटने की उम्मीद है, व्यापारी और कुल मिलाकर उद्योग जगत जीएसटी में व्यापक बदलाव से पहले अपने स्टॉक को समाप्त करने की कोशिश करेंगे, अगर दरों को तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया के तहत इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकाला जाता।’
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) की 2020 की सर्कुलर में साफ किया गया है कि संचित आईटीसी के रिफंड की अनुमति उन मामलों में नहीं दी जाएगी, जहां कोई व्यवसाय अनिवार्य रूप से एक ही सामान खरीद और बेच रहा है, और क्रेडिट केवल दर में कटौती के कारण जमा होता है। अगर ट्रेडर ने खरीदारी के स्टॉक पर पहले ही जीएसटी का भुगतान उच्च दर पर कर दिया है, लेकिन बिक्री के समय कम दर पर जीएसटी ले रहा है तो ऐसे में अतिरिक्त आईटीसी फंसा रह जाएगा।
बहरहाल विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ उत्पादों पर इस तरह के बदलाव से कोई व्यापक व्यवधान नहीं आएगा, लेकिन अगर व्यापक रूप से दर को युक्तियुक्त बनाया जाता है तो इससे कारोबारियों को नकदी के गंभीर संकट का सामना करना पड़ सकता है।
एसऐंडए लॉ ऑफिसेज की पार्टनर स्मिता सिंह ने कहा कि जीएसटी 2.0 की घोषणा ने उच्च दरों पर खरीदी गई इन्वेंट्री रखने वाले व्यवसायों के लिए चिंता पैदा कर दी है। उन्होंने कहा, ‘पहले की अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था से जीएटसी व्यवस्था में आने पर और उसके बाद कर की दरों में संशोधन के दौरान व्यवसायों को मौजूदा संचित आईटीसी को आगे ले जाने की अनुमति दी गई थी। हम उम्मीद करते हैं कि निरंतरता बनाए रखने और व्यवसायों की कार्यशील पूंजी की सुरक्षा के लिए इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाया जाएगा।’