वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज कहा कि नियामकीय व्यवस्था सख्त तो होनी चाहिए मगर प्रतिस्पर्द्धा को खतरा नहीं हो तो विलय एवं अधिग्रहण सौदों को फौरन बिना रुकावट मंजूरी मिल जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्द्धा आयोग को ऐसे सौदे तुरंत मंजूर कर देने चाहिए।
वित्त मंत्री ने कहा, ‘जब पूरी दुनिया निर्यात, ऊर्जा और उत्सर्जन के मोर्चों पर चुनौतियों से जूझ रही है तब वृद्धि के लिए देसी कारकों पर बढ़ती निर्भरता के बीच नियम एवं आजादी का सही संतुलन बिठाना जरूरी है।’
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) के 16वें वार्षिक दिवस पर सीतारमण ने कहा, ‘नियामकीय मंजूरी में देर हो तो अनिश्चितता उपजती है। इससे कारोबार की समयसीमा बिगड़ती है और सौदों की कीमत कम होने का खटका भी रहता है।’
सीसीआई के ग्रीन चैनल मैकेनिज्म के तहत विलय-अधिग्रहण के उन सौदों को अपने आप मंजूरी मिल जाती है, जहां बाजार में प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका नहीं होती। इससे विलय-अधिग्रहण सौदों पर होने वाला खर्च घटता है और समय भी कम लगता है।
वित्त मंत्री ने कहा, ‘नियामकों को कम से कम जरूरी और अधिक से अधिक व्यावहारिक के सिद्धांत पर चलना चाहिए ताकि नियामकीय निगरानी के साथ वृद्धि को सहारा देना वाली मानसिकता का भी तालमेल रहे।’ उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्द्धा आयोग नियामकीय सतर्कता और वृद्धि को सहारा देने वाली मानसिकता के बीच संतुलन बिठा सके तो बारत में मजबूत, न्यायसंगत और नवाचार से चलने वाली आर्थिक व्यवस्था तैयार हो सकेगी। जैसे-जैसे भारत वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं और डिजिटल परिवेश के साथ जुड़ता जाएगा, खुले बाजारों को बनाए रखना उसकी होड़ करने की क्षमता के लिए जरूरी होगा।
सीसीआई ने अब तक विलय-अधिग्रहण के 1,284 मामलों में से 1,256 को मंजूरी दी है। उसने प्रतिस्पर्द्धा रोकने के 1,300 मामलों में से 1,200 निपटा भी दिए हैं।
सीतारमण ने कहा कि परिसंपत्ति मुद्रीकरण, विनिवेश और डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे जैसे बुनियादी सुधार बाजार की क्षमता बढ़ा रहे हैं और होड़ भी तेज कर रहे हैं। डेटा की उपलब्धता में विषमता और कारोबारी मॉडलों के सीमा पार प्रभाव के कारण डिजिटल बाजार को चुनौतियां मिल रही हैं। उन्होंने कहा, ‘सीमापार डिजिटल एकाधिकार के बढ़ने के कारण वैश्विक सहयोग और सख्त विनियमन की आवश्यकता है।’
वित्त मंत्री ने कहा कि कारोबारी सदाशयता के कारण नहीं बल्कि मजबूरी के कारण सुनते, मानते और सुधार करते हैं। कीमतों में गिरावट दान-धर्म के नाम पर नहीं घटाई जातीं बल्कि इसलिए कम होती हैं क्योंकि कोई दूसरा व्यक्ति वही उत्पाद कम कीमत पर दे रहा होता है। उन्होंने कहा, ‘गुणवत्ता में सुधार नैतिकता के कारण नहीं किया जाता बल्कि इसलिए होता है क्योंकि बाजार की ताकतें औसत माल को बाहर कर देती हैं।’