अमेरिका के शुल्क से मुश्किलों का सामना कर रहे निर्यातकों को सहारा देने के लिए बैंकों ने तरकीब निकालनी शुरू कर दी है। इसमें खासकर सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों पर विशेष ध्यान रखा जा रहा है।
वाणिज्यिक बैंक ब्याज दरों में छूट,कर्ज भुगतान करने के लचीले विकल्प प्रदान कर रहे हैं और निर्यात बीमा एवं ऋण गारंटी योजनाएं ज्यादा सुगमता से उपलब्ध करा रहे हैं। वे नए-नए बाजारों में जाने के लिए प्रोत्साहित करने के इरादे से कार्यशालाएं भी आयोजित कर रहे हैं।
बैंकिंग क्षेत्र के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि 27 अगस्त से लागू होने जा रहे 50 प्रतिशत शुल्क के असर को कम करने के लिए सक्रियता से कदम उठाने पड़ रहे हैं। ऋण आसानी से उपलब्ध कराने तथा ब्याज में छूट देने के साथ बैंक विभिन्न तरह के प्रशासनिक शुल्क जैसे लोन प्रॉसेसिंग, फॉरेक्स हैंडलिंग और कलेक्शन शुल्क से छूट देने पर भी विचार कर रहे हैं, जिससे प्रभावित व्यवसायों की परिचालन लागत में कमी आ सके।
इंडियन बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हम निर्यातकों से सीधे बात कर रहे हैं और देख रहे हैं कि इन शुल्कों का कारोबार पर वास्तविक असर क्या हो रहा है, जिससे कि निर्यातकों की ओर से ऋण की मांग सुस्त होने की आशंका है।’ अधिकारी ने कहा, ‘निर्यात बीमा और ऋण योजना के तहत हमने ऋण की पहुंच बढ़ा दी है। निर्यात केंद्रित एमएसएमई पर हमारा अधिक ध्यान है।’
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने शुरुआत में अमेरिका माल भेजने वाले भारत के निर्यातकों पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाया था, उसके बाद 25 प्रतिशत शुल्क और लगाने की घोषणा कर दी है। मूडीज एनॉलिटिक्स ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि भारत के निर्यातकों पर कुल मिलाकर 50 प्रतिशत अमेरिकी शुल्क लगाया जाना उल्लेखनीय है, क्योंकि इससे अमेरिका की ओर से मांग में उल्लेखनीय कमी आ जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ फर्में उत्पादन बनाए रखने के लिए कीमतों में कटौती करने को तैयार हो सकती हैं, लेकिन इससे कम मार्जिन, वेतन में कमी और निवेश में कमी के कारण प्रदर्शन प्रभावित होगा। इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप के शेष कार्यकाल के दौरान शुल्क लागू रहने की उम्मीद है, ऐसे में निवेश और निर्यात पर उल्लेखनीय असर पड़ सकता है और वृद्धि में कमी आ सकती है।
बैंकरों को डर है कि इससे एमएसएमई की ओर से ऋण की मांग में उल्लेखनीय कमी आ सकती है क्योंकि ज्यादातर एमएसएमई क्षेत्र निर्यात केंद्रित व्यापार में लगा हुआ है। देश के ज्यादातर एमएसएमई टेक्सटाइल व गारमेंट्स, रत्न एवं आभूषण, कालीन, चमड़े के सामान, केमिकल्स और खाद्य प्रसंस्करण से जुड़े हुए हैं, जो अमेरिकी बाजार पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं।
एक निजी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘ज्यादातर एमएसएमई टेक्टलाइल के निर्यात में लगे हुए हैं और अमेरिका को निर्यात करते हैं। ऐसे मे उन पर दबाव कम करने के पहले कदम के रूप में हम उन्हें अन्य देशों को निर्यात करने को कह रहे हैं। इसके साथ ही हम उनकी नकदी की कमी पूीर करने में सहयोग करने पर ध्यान दे रहे हैं, जिससे वे अपना कारोबार जारी रख सकें।’
बैंकिंग के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि वे निर्यातकों को पश्चिम एशिया,अफ्रीका और यूरोप के बाजारों पर ध्यान देने को कह रहे हैं, जिससे अमेरिका के बाजार पर निर्भरता कम की जा सके।
तमिलनाड मर्केंटाइल बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘रिलेशनशिप मैनेजरों की मदद से बैंक निर्यातकों के साथ सत्र आयोजित कर रहा है और कांट्रैक्ट व शिपमेंट की समीक्षा की जा रही है। बैंक उनकी कार्यशील पूंजी की जरूरतों को प्राथमिकता दे रहा है और जब भी और जहां भी जरूरत होगी, हम सभी उचित विकल्प अपनाएंगे, जिनमें छूट, लचीले पुनर्भुगतान की सुविधा व अन्य विकल्प शामिल हैं।’
बैंकरों ने कहा कि शुल्क लागू होने की तारीख नजदीक आ रही है, इसलिए बैंक निर्यातकों की कार्यशील पूंजी की जरूरतों को पूरी करने की नीति आसान बनाने के लिए विभिन्न रणनीति बना रहे हैं, जिससे बैंकों के ऋण कारोबार पर कोई प्रभाव न पड़े।