मार्च 2021 से जून 2023 के बीच देश के 24 प्रमुख राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में से 7 में कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) में अंशदान करने वाले ग्राहकों की संख्या में कमी आई है। सरकार के आंकड़ों से यह पता चलता है।
हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर ईपीएफ में नियमित रूप से अंशदान करने वाले कर्मचारियों की संख्या इस अवधि के दौरान करीब 8 प्रतिशत कम हुई है।
लोकसभा (Loksabha) में एक सवाल के जवाब में श्रम और रोजगार राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने कहा कि पिछले एक साल में कम से कम एक बार अंशदान करने वाले नियमित सदस्यों की कुल संख्या इस अवधि के दौरान बढ़कर 6.322 करोड़ हो गई है, जो पहले 5.86 करोड़ थी।
पंजाब में सबसे ज्यादा गिरावट
सक्रिय खातों में गिरावट दर्ज करने वाले राज्यों में पंजाब में सबसे ज्यादा 6.76 प्रतिशत, उत्तराखंड में 5 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश में 2.83 प्रतिशत, गुजरात में 1.92 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 1.13 प्रतिशत, जम्मू कश्मीर में 1.09 प्रतिशत और तमिलनाडु में 0.08 प्रतिशत गिरावट आई है।
ईपीएफ के उन खातों को परिचालन से बाहर माना जाता है जब कर्मचारी या नियोक्ता 36 माह से कोई अंशदान न कर रहे हों या कर्मचारी ने कंपनी छोड़ने के 3 साल के भीतर पैसे नहीं निकाले हैं। बहरहाल ऐसे निष्क्रिय खातों पर अभी ब्याज का भुगतान किया जाता है।
नई औपचारिक नौकरियों का सृजन अभी भी चुनौती
इंपैक्ट ऐंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के विजिटिंग प्रोफेसर केआर श्यामसुंदर ने कहा कि कुल सक्रिय युनिवर्सल एकाउंट नंबर (यूएएन) में बढ़ोतरी की प्राथमिक वजह सरकार के पहल के कारण नौकरियों का औपचारिक होना हो सकता है क्योंकि नई औपचारिक नौकरियों का सृजन अभी चुनौती बनी हुई है।
उन्होंने कहा, ‘औपचारिक बनाए जाने की पहल के परिणाम आ रहे हैं क्योंकि सक्रिय यूनिवर्सल एकाउंट नंबर (यूएएन) की संख्या बढ़ी है। लेकिन बड़े औद्योगिक राज्यों जैसे गुजरात और तमिलनाडु में संख्या घटने से पता चलता है कि नौकरियों के सृजन की चुनौती अभी बरकरार है। भारतीय अर्थव्यवस्था को प्राथमिक रूप से गति देने वाले सेवा क्षेत्र में भी रोजगार सृजन के संघर्ष के संकेत मिलते हैं क्योंकि उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश या जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में यूएएन में कमी आई है।’
इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए एक प्रमुख वाहन कंपनी में अर्थशात्री ने कहा कि सक्रिय ग्राहकों की संख्या में इस अवधि के दौरान कमी विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों के सुस्त सृजन की वजह से हो सकता है क्योंकि इन दोनों के बीच उच्च सह संबंध है।
उन्होंने कहा, ‘औद्योगिक राज्यों गुजरात और तमिलनाडु के मामलों में यह सह संबंध और ज्यादा है। विनिर्माण क्षेत्र पिछले वित्त वर्ष की लगातार 2 छमाहियों में संकुचित हुआ है। उसके पहले यह कोविड की लहर से प्रभावित रहा था। इसकी वजह से नौकरियों के सृजन पर विपरीत असर पड़ा। साथ ही वैश्विक मंदी की वजह से इन राज्यों से होने वाला निर्यात भी सुस्त हो गया।’
ओडिशा में सबसे ज्यादा वृद्धि
बहरहाल सक्रिय ग्राहकों में इस अवधि के दौरान सबसे ज्यादा वृद्धि ओडिशा में 13.9 प्रतिशत रही है। उसके बाद बिहार में 12.8 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 12.7 प्रतिशत, तेलंगाना में 10.9 प्रतिशत, दिल्ली में 9.8 प्रतिशत और राजस्थान में 9.2 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
टीमलीज सर्सिवेस की सहसंस्थापक ऋतुपुर्णा चक्रवर्ती ने कहा कि सक्रिय ग्राहकों की संख्या में वृद्धि सरकार द्वारा नौकरियों को औपचारिक बनाने की पहल का परीक्षण है क्योंकि सरकार ने नियोक्ताओं को अपने ठेके और अनौपचारिक कामगारों को नियमित करने के लिए तमाम प्रोत्साहन दिए हैं।
टीमलीज सर्सिवेस की चक्रवर्ती ने कहा, ‘आत्मनिर्भर भारत रोजगार जैसी योजनाएं औपचारिक नौकरियां बढ़ाने में प्रभावी साबित हुई हैं। हालांकि नौकरियों को औपचारिक बनाया जाना स्वागत योग्य कदम है, लेकिन और ज्यादा नौकरियों के सृजन की भी जरूरत है।’