नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया का मानना है कि 2022-23 में भारतीय इकोनॉमी सात फीसदी से अधिक की दर से बढ़ेगी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यदि आगामी बजट में कुछ हैरान करने वाले ‘प्रतिकूल’ कदम नहीं उठाए जाते हैं, तो अगले वित्त वर्ष में भी यह वृद्धि दर बनी रहेगी।
पनगढ़िया ने बुधवार को पीटीआई-भाषा से कहा कि मंदी की आशंका कुछ समय से बनी हुई है, लेकिन अभी तक न तो अमेरिका और न ही यूरोपीय संघ मंदी की ‘चपेट’ में आए हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘विदेशों में बन रही परिस्थितियों को भारत के नजरिये से देखा जाए, हम कह सकते हैं कि बुरा दौर पीछे छूट चुका है।’’ इस महीने की शुरुआत में रिजर्व बैंक ने 2022-23 के लिए भारत के वृद्धि दर के अनुमान को सात से घटाकर 6.8 फीसदी कर दिया था। वहीं विश्व बैंक ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि के अनुमान को संशोधित कर 6.9 फीसदी कर दिया है।
उन्होंने कहा कि भारतीय इकोनॉमी वैश्विक झटकों के बीच ऊंची जुझारू क्षमता का प्रदर्शन कर रही है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ने कहा, ‘‘कुल मिलाकर मैं अब भी उम्मीद करता हूं कि हम चालू वित्त वर्ष में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि दर हासिल करेंगे। यदि आगामी बजट में हैरान करने वाला कोई नकारात्मक पहलू नहीं रहता है, तो अगले वित्त वर्ष में भी यह वृद्धि दर बनी रहेगी।’’
पनगढ़िया ने कहा कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा नीतिगत दर में की गई वृद्धि से पूंजी निकासी हुई है, जिससे रुपये पर काफी दबाव पड़ा है। उन्होंने कहा कि नवंबर में शुद्ध सकारात्मक प्रवाह के साथ यह रुख पलट गया है। इसके साथ ही पनगढ़िया ने कहा कि कि यूरो और येन जैसी मुद्राओं के मुकाबले रुपये में मजबूती आई है, जो आने वाले वर्ष में निर्यात में कमजोरी का कारण बन सकता है।
उन्होंने कहा कि इस प्रकरण से पहले भी रुपये का मूल्य अधिक था। वर्तमान में कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पनगढ़िया ने कहा, ‘‘इसलिए, मैं डॉलर के मुकाबले रुपये में और गिरावट के पक्ष में हूं।’’ बेरोजगारी पर एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि आवधिक श्रमबल सर्वे (PLFS) को देखते हुए उन्हें नहीं लगता कि बेरोजगारी दर अधिक है। यह परिवारों पर उपलब्ध सबसे विश्वसनीय सर्वे माना जाता है।