केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज बजट सत्र के पहले दिन 2024-25 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया। यह सर्वेक्षण देश की आर्थिक प्रगति और चुनौतियों की समीक्षा करने वाला सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसे मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी. अनंत नागेश्वरन और उनकी टीम ने तैयार किया था।
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2025-26 में 6.3 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत के बीच बढ़ने की उम्मीद है। मौजूदा वित्त वर्ष में इसमें 6.4 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है। भारत की आर्थिक विकास दर वित्त वर्ष 2023-24 में 8.2 प्रतिशत रही थी। नागेश्वरन ने कहा कि भारत स्थिर विकास के रास्ते पर है, लेकिन वैश्वीकरण धीमा हो रहा है। यह बदलाव भारत के लिए नई चुनौतियां और अवसर दोनों लेकर आ सकता है। निरंतर विकास बनाए रखने के लिए, भारत को आर्थिक सुधारों पर ध्यान देना होगा और अपनी युवा कार्यशक्ति का सही उपयोग करना होगा।
वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद, भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारत के वित्तीय और कॉर्पोरेट सेक्टर अच्छे स्थिति में हैं। मजबूत सरकारी नीतियां, स्थिर निजी खर्च और वित्तीय अनुशासन अर्थव्यवस्था को मजबूती दे रहे हैं। हालांकि, वैश्वीकरण की धीमी गति भविष्य में कुछ मुश्किल पैदा कर सकती है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 की पहली छमाही (H1 FY25) में भारत की अर्थव्यवस्था 6.2 प्रतिशत की दर से बढ़ी। पहले तिमाही (Q1 FY25) में विकास दर 8.3 प्रतिशत रही, लेकिन दूसरी तिमाही (Q2 FY25) में औद्योगिक क्षेत्र की चुनौतियों के कारण यह घट गई। कृषि और सेवा क्षेत्र का प्रदर्शन बेहतर रहा, जबकि वैश्विक मांग में कमी और आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटों के कारण विनिर्माण क्षेत्र (मैन्युफैक्चरिंग) को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। सर्वे में कहा गया है कि 2047 तक भारत को विकसित भारत बनाने के लिए अगले एक से दो दशक तक 8% के दर से आर्थिक विकास करना होगा।
वित्तीय वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही (Q2 FY25) में आर्थिक वृद्धि तीन मुख्य कारणों से धीमी हुई:
निर्यात में गिरावट – व्यापार प्रतिबंधों और वैश्विक बाजारों में कमजोरी के कारण भारतीय सामानों की मांग घटी।
मॉनसून का प्रभाव – भारी बारिश ने कृषि क्षेत्र को तो फायदा पहुंचाया, लेकिन खनन, निर्माण और कुछ विनिर्माण क्षेत्रों को नुकसान पहुंचाया।
त्योहारों का समय – कुछ प्रमुख त्योहार आमतौर पर जल्दी होते हैं, लेकिन इस बार वे अपेक्षाकृत देर से पड़े, जिससे दूसरी तिमाही में आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ा।
FY25 की पहली तिमाही (Q1) में भारत की जीडीपी 6.7 प्रतिशत बढ़ी, लेकिन दूसरी तिमाही (Q2) में यह घटकर 5.4 प्रतिशत रह गई। कुल मिलाकर, वित्तीय वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में 6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जो एक मिश्रित प्रदर्शन को दर्शाता है, हालांकि साल की शुरुआत मजबूत रही थी।
निर्मला सीतारमण ने संसद में आर्थिक समीक्षा पेश करते हुए बताया कि सरकार के विभिन्न पहल और मौद्रिक नीतिगत उपायों से भारत में खुदरा महंगाई वित्त वर्ष 2024 के 5.4 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2025 (अप्रैल से दिसम्बर) में 4.9 प्रतिशत पर आ गई है। आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया कि वित्त वर्ष 2024 से वित्त वर्ष 2025 (अप्रैल से दिसम्बर) के बीच (गैर-खाद्य, गैर-ईंधन) महंगाई में 0.9 प्रतिशत की कमी के कारण आई।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि खाद्य पदार्थों के बफर स्टॉक बढ़ाने, खुले बाजार में खाद्य वस्तुएं जारी करने और आपूर्ति में कमी की स्थिति में आयात में ढील देने के सरकार के प्रशासनिक उपाय महंगाई स्थिर रखने में सहायक रहे हैं। भारत में महंगाई सब्जियों और दालों जैसे कुछ खाद्य पदार्थों की अधिक कीमतों के कारण रही है। वित्त वर्ष 2025 में (अप्रैल से दिसम्बर तक) कुल 32.3 प्रतिशत की महंगाई दर में सब्जियों और दालों की कीमतों ने ही मुख्य रूप से प्रभावित किया। इन वस्तुओं को छोड़कर वित्त वर्ष 25 (अप्रैल से दिसम्बर) में औसत खाद्य महंगाई दर 4.3 प्रतिशत रही जो कुल खाद्य महंगाई दर 4.1 प्रतिशत से कम है।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि तूफान, भारी वर्षा, बाढ़, गरज भरी आंधी, ओलावृष्टि जैसी मौसम संबंधी विषम स्थितियों के कारण सब्जियों का उत्पादन प्रभावित हुआ और इनकी कीमतें बढ़ीं। प्रतिकूल मौसम के कारण इनके भंडारण और ढुलाई की भी चुनौती आई जिससे आपूर्ति श्रृंखला कुछ समय के लिए बाधित हुई और सब्जियों के दाम बढ़ गए।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2024 और मौजूदा वर्ष में भी प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी का दबाव बना हुआ है। हालांकि, सरकार द्वारा कीमतों में कमी लाने के लिए उपाय किए जा रहे हैं। लेकिन इसकी उपज में कमी और सीमित आपूर्ति की वजह से वित्त वर्ष 2024 और वित्त वर्ष 2025 (अप्रैल से दिसम्बर) में प्याज में महंगाई दर का दबाव बना हुआ है। टमाटर की कीमतों में भी वित्त वर्ष 2023 से समय-समय पर कम आपूर्ति के कारण उछाल आता रहा है। इन चुनौतियों के बावजूद भारतीय रिज़र्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमान के अनुसार भारत की उपभोक्ता मूल्य महंगाई दर वित्त वर्ष 2026 में 4 प्रतिशत तक सीमित रखने के लक्ष्य की ओर बढ़ेगी। भारतीय रिजर्व बैंक का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 में हेडलाइन महंगाई दर 4.2 प्रतिशत रहेगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के लिए महंगाई दर वित्त वर्ष 2025 में 4.4 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2026 में 4.1 रहने का अनुमान जताया है।
विश्व बैंक के कमोडिटी मार्केट्स आउटलुक, अक्टूबर 2024 के अनुसार कमोडिटी की कीमतों में 2025 में 5.1 प्रतिशत और 2026 में 1.7 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है। यह कमी तेल की अनुमानित कीमतों में गिरावट की वजह से है। हालांकि, प्राकृतिक गैस की कीमतों में बढ़ोतरी और कृषि संबंधित कच्चे माल की कीमतों से यह कम रह जाएगी। आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है भारत द्वारा आयातित वस्तुओं की कीमतों में गिरावट की प्रवृत्ति रहने के कारण घरेलू महंगाई दर के लिए यह फायदेमंद है।