वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) पोर्टल द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वस्तुओं के अंतरराज्यीय और राज्यों के भीतर परिवहन के लिए व्यवसायों द्वारा निकाली गई इलेक्ट्रॉनिक परमिट या ई-वे बिल फरवरी में सालाना आधार पर घटकर 14.7 फीसदी हो गई जबकि जनवरी में यह 23.1 फीसदी थी।
लगातार तीन महीने तक बढ़ने और जनवरी में 11.8 करोड़ के रिकॉर्ड को छूने के बाद फरवरी में ई-वे बिलों की संख्या घटकर 11.1 करोड़ हो गई। ई-वे बिल 50,000 रुपये से अधिक के मूल्य के माल की आवाजाही के लिए अनिवार्य होता है और यह अर्थव्यवस्था में मांग और आपूर्ति के रुझानों के लिए शुरुआती संकेतक है। यह अक्सर कुछ समय बाद वृहद आर्थिक संकेतकों में दिखाई देता है।
राज्य के भीतर ई-वे बिल फरवरी में 7.2 करोड़ थे जबकि अंतरराज्यीय ई-वे बिल इस महीने के दौरान 3.9 करोड़ रहा। जीएसटीएन के डेटा के मुताबिक करीब 1.5 करोड़ पंजीकृत जीएसटी खिलाड़ी हैं और अब तक कुल 5.8 अरब ई-वे बिल जारी किए जा चुके हैं।
ई-वे बिल का प्रदर्शन एचएसबीसी इंडिया के मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) के अनुरूप है जो फरवरी में 14 महीने के निचले स्तर 56.3 के स्तर पर चला गया जो जनवरी में 57.7 के स्तर पर था। हालांकि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मांग में सुधार के कारण सेवा पीएमआई फरवरी में बढ़कर 59 पर चला गया जबकि जनवरी में यह 26 महीने के निचले स्तर 56.5 पर था।
बुधवार को जारी एक निजी कारोबारी सर्वेक्षण के मुताबिक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मांग में सुधार के चलते भारत में दबदबे वाले सेवा क्षेत्र में फरवरी में वृद्धि देखी गई क्योंकि भारतीय कंपनियों के ऑर्डर में भी तेजी देखी गई। फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (फाडा) के आंकड़ों के मुताबिक फरवरी में सभी श्रेणी में मंदी का आलम दिखा क्योंकि वाहन बाजार में 7 फीसदी की सालाना गिरावट दिखी।