अर्थव्यवस्था

G20 देशों के शिखर सम्मेलन में डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर बन सकता है लक्ष्य

G20 की भारत की अध्यक्षता में वैश्विक DPI प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक रहा है। भारत ने DPI पर अपनी सफलता की कहानी मार्च में G20 के शेरपाओं के सामने प्रस्तुत की थी

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असित रंजन मिश्र   
Last Updated- September 03, 2023 | 10:48 PM IST

विकसित देशों के लगातार विरोध के बीच जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में नेताओं द्वारा दिल्ली घोषणा में डिजिटल सार्वजिक बुनियादी ढांचे (डीपीआई) की अंतर- संचालनीयता को ‘दीर्घकालीन लक्ष्य’ घोषित किया जा सकता है।

जी-20 की भारत की अध्यक्षता में वैश्विक डीपीआई प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक रहा है। भारत ने डीपीआई पर अपनी सफलता की कहानी मार्च में जी-20 के शेरपाओं के सामने प्रस्तुत की थी। इसमें भारत द्वारा विकसित प्रमुख डीपीआई जैसे आधार, को-विन, यूपीआई, डिजी लॉकर और भाषिनी का उल्लेख किया गया था, जिससे डिजिटल पहचान, वित्तीय समावेशन और स्वास्थ्य एवं शिक्षा तक एकसमान पहुंच आसान हुई है। बहरहाल विकसित देशों का मानना है कि डीपीआई निजी भुगतान नेटवर्कों के लिए खतरा बन सकता है, साथ ही इसमें डेटा सुरक्षा से जुड़े मसले भी बढ़ सकते हैं।

एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘डीपीआई को लेकर कोई आम राय नहीं बन पाई है। ऐसे में जी-20 के नेताओं के बयान में इसका उल्लेख दीर्घावधि लक्ष्य के रूप में हो सकता है। इससे भविष्य के जी-20 सम्मेलनों में इस मसले पर चर्चा के द्वार खुले रहेंगे।’

जी-20 अर्थव्यवस्थाओं के कारोबारी मंच बी-20 ने पिछले महीने अपनी नीतिगत सिफारिशों में व्यक्तिगत, उद्यम और कृषि के स्तर पर इकाइयों के डिजिटलीकरण की वकालत की थी, जिसमें अंतरसंचालनीयता और सीमा पार इसे किया जाना शामिल है।

इसमें कहा गया है, ‘जी-20 देश एमएसएमई और व्यक्तिगत स्तर के लिए एक विशेष एकल डिजिटल पहचान को लेकर 3 साल के भीतर दिशानिर्देश बनाएंगे, जिससे सत्यापन और सूचना तक पहुंच के लिए विभिन्न सरकारी व निजी हितधारकों द्वारा सुरक्षित रूप से (सहमति के आधार पर) इस्तेमाल किया जा सकता है।’

बहरहाल पिछले महीने जारी जी-20 डिजिटल अर्थव्यवस्था परिणाम में मंत्री इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि डीपीआई एक उभरती अवधारणा है, जो डिजिटल व्यवस्थाओं के एक प्रारूप तक संभवतः सीमित नहीं हो सकती है और डिजिटल बदलाव को लेकर जी-20 के सदस्यों के अलग अलग तरीकों को देखते हुए इसे किसी खास देश के संदर्भ में ही तैयार किया जा सकता है।

बयान में कहा गया है, ‘तकनीकी प्रगति सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों की सेवा की डिलिवरी में बदलाव के अवसर प्रदान कर रही है, ऐसे में डीपीआई साझा तकनीकी बुनियादी ढांचे के मामले में डिजिटल बदलाव को लेकर एक आशाजनक दृष्टिकोण प्रदान करता है। इसे सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा बनाया और इसका लाभ उठाया जा सकता है।’

डिजिटल अर्थव्यवस्था पर मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में यह भी संज्ञान में लिया गया कि पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की कमी, टिकाऊ वित्तपोषण और तकनीकी सहायता की कमी होने पर खराब तरीके से डीपीआई तैयार हो सकता है, जिसके अपने जोखिम हैं। ऐसे जोखिमों में डेटा की सुरक्षा को खतरा, निजता का उल्लंघन, व्यक्तिगत आंकड़ों तक गलत और असीमित पहुंच, बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघन और सुरक्षा संबंधी जोखिम शामिल हैं।

इसमें कहा गया है, ‘इसे देखते हुए हम एलएमआईसी (कम और मध्यम आय वाले देशों में) में मजबूत, समावेशी, मानव केंद्रित और टिकाऊ डीपीआई लागू करने के लिए क्षमता निर्माण, तकनीकी सहायता और पर्याप्त धन की सहायता प्रदान करने के लिए वैश्विक बहु-हितधारक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत को रेखांकित कर रहे हैं।’

भारत ने वन फ्यूचर अलायंस (ओएफए) के गठन का भी प्रस्ताव किया है। यह स्वैच्छिक पहल होगी, जिसका मकसद सरकारों, निजी क्षेत्र, शिक्षाविदों और शोध संस्थानों, दानदाता एजेंसियों, सामाजिक संगठनों व अन्य संबंधित हिस्सेदारों और मौजूदा व्यवस्था को एक साथ लाना है, जिससे कि डीपीआई का माहौल तैयार करने की वैश्विक कवायद एकसाथ मिलकर की जा सके।

भारत ने एक वैश्विक डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा रिपॉजिटरी (जीडीपीआईआर) बनाने और उसके रखरखाव का भी फैसला किया है। यह डीपीआई की वर्चुअल रिपॉजिटरी होगी, जिसे स्वैच्छिक रूप से जी-20 देशों व अन्य के साथ साझा किया जाएगा। रिपॉजिटरी का मकसद डीपीआई के विकास और इसे कार्यरूप देने के अनुभवों व गतिविधियों को साझा करना है, जिसमें विभिन्न देशों के संबंधित तरीके व संसाधनों को शामिल किया जा सकता है।

First Published : September 3, 2023 | 10:48 PM IST