भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने भारत के प्राथमिकता क्षेत्र के ऋण (पीएसएल) ढांचे में उल्लेखनीय सुधार किए जाने का अनुरोध किया है। बजट के पहले दिए गए सुझाव में सीआईआई ने कहा है कि इससे देश की उभरती आर्थिक प्राथमिकताओं के साथ बेहतर तालमेल हो सकेगा। उद्योग संगठन ने उभरते हुए क्षेत्रों को समर्थन देने के लिए अधिक विकास वित्त संस्थानों (डीएफआई) की स्थापना का भी आह्वान किया है।
प्राथमिकता क्षेत्र के ऋण में बैंकों को अपने ऋण का एक हिस्सा महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे कृषि, शिक्षा, आवास और छोटे उद्योगों के लिए रखना होता है, जो भारतीय रिजर्व बैंक ने नीतिगत रूप से अनिवार्य कर रखा है। यह व्यवस्था ऋण का समान वितरण सुनिश्चित करने और वंचित क्षेत्रों में सामाजिक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में सहायक रही है।
बहरहाल सीआईआई ने कहा है कि पीएसएल ढांचा सफल रहा है, लेकिन इसे प्रासंगिक बनाए रखने के लिए इसे नए सिरे से दुरुस्त करने की जरूरत है। सीआईआई के डायरेक्टर जनरल चंद्रजित बनर्जी ने कहा, ‘विकसित भारत 2047 का लक्ष्य हासिल करने के लिए यह जरूरी है कि पीएसएल ढांचे की समीक्षा की जाए और हर 3-4 साल पर इसे अद्यतन किया जाए।’
उन्होंने जोर दिया कि पीएसएल आवंटन में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विभिन्न क्षेत्रों के बदलते योगदान और उनके विकास की क्षमता नजर आनी चाहिए। उदाहरण के लिए 1990 के दशक में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 30 प्रतिशत था, जो अब करीब 14 प्रतिशत रह गया है, जबकि इसका पीएसएल आवंटन 18 प्रतिशत पर अपरिवर्तित बना हुआ है।
सीआईआई ने पीएसएल ढांचे में उभरते क्षेत्रों को शामिल किए जाने की सिफारिश की है, जिससे सतत विकास सुनिश्चित हो सके। ऐसे क्षेत्रों में हरित पहल, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल टेक्नोलॉजी और आर्टीफिशल इंटेलिजेंस व हेल्थकेयर शामिल हैं।
उद्योग संगठन ने बुनियादी ढांचे और नवोन्मेषी विनिर्माण पर ज्यादा ध्यान देने पर जोर दिया है, जो भारत के भविष्य की वृद्धि में अहम भूमिका निभाएगा। इसके अलावा सीआईआई ने पीएसएल मानकों की समीक्षा के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाए जाने और नए डीएफआई की संभावना तलाशने की मांग की है, जिससे उभरते क्षेत्रों को मदद मिल सके।
उद्योग संगठन ने ऋण वितरण में परिणाम-आधारित व्यवस्था में बदलाव की भी सिफारिश की है। उसका कहना है कि कड़े ऋण लक्ष्यों से हटकर विकासात्मक परिणामों पर ध्यान देने पर जोर दिया जाना चाहिए। बनर्जी ने कहा कि बदलते आर्थिक परिदृश्य में ज्यादा गतिशील और जरूरत के मुताबिक प्रतिक्रिया देने वाले पीएसएल ढांचे की ओर बदलाव की जरूरत है, जो भारत के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण उच्च विकास वाले क्षेत्रों को समर्थन कर सके।