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Critical Minerals: महत्त्वपूर्ण खनिजों का खनन होगा तेज, चार गुना से ज्यादा बढ़ेगा एरिया; विशेषज्ञों ने केंद्र को दी चेतावनी

यह कदम तब सामने आ रहा है, जब इस साल की शुरुआत में केंद्र सरकार को महत्त्वपूर्ण खनिज के ब्लॉकों की शुरुआती नीलामी में झटका लगा है।

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नितिन कुमार   
Last Updated- July 14, 2024 | 10:18 PM IST

Critical Mineral Mining: देश में महत्त्वपूर्ण खनिजों का खनन तेज करने की कवायद के तहत केंद्र सरकार व्यक्तिगत खननकर्ताओं के लिए स्वीकृत क्षेत्रफल की सीमा चार गुने से ज्यादा बढ़ाने की योजना बना रही है।

खनन पट्टे के लिए क्षेत्रफल मौजूदा सीमा 10 वर्ग किलोमीटर से बढ़ाकर 50 वर्ग किलोमीटर की जाएगी। वहीं प्रॉस्पेक्टिंग लाइसेंस (कंपोजिट लाइसेंस के मामले में जारी किए जाने के मामले में) के लिए सीमा 25 वर्ग किलोमीटर से बढ़ाकर 100 वर्ग किलोमीटर की जाएगी।

नीति में इस बदलाव का मकसद महत्त्वपूर्ण खनिजों के खनन से जुड़ी खास चुनौतियों का समाधान करना है। ये खनिज सामान्यतया गहराई में पाए जाते हैं और चूने के पत्थर और लौह अयस्क जैसे प्रमुख खनिजों की तुलना में इनकी रिकवरी दर कम होती है।

यह कदम तब सामने आ रहा है, जब इस साल की शुरुआत में केंद्र सरकार को महत्त्वपूर्ण खनिज के ब्लॉकों की शुरुआती नीलामी में झटका लगा है। केंद्र सरकार की पहली दो नीलामियों में घोषित 38 में से 28 ब्लॉकों में संभावित बोलीदाताओं की रुचि न होने के कारण बोली रद्द कर दी गई थी।

दरअसल माइंस ऐंड मिनरल्स (डेवलपमेंट ऐंड रेगुलेशन) ऐक्ट (एमएमडीआर) के तहत तय की गई सीमा खनन क्षेत्र में गोलबंदी को रोकने के लिए थी।

बहरहाल विभिन्न उद्योगों और राष्ट्रीय सुरक्षा के हिसाब से महत्त्वपूर्ण खनिजों के रणनीतिक महत्त्व को देखते हुए सरकार ने इन सीमाओं में बदलाव करने का फैसला किया है।

एक अधिकारी ने कहा, ‘महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिए बहुत ज्यादा अन्वेषण व खनन कवायदों की जरूरत होती है, क्योंकि वे गहराई में होते हैं और खनिज से उनकी रिकवरी दर बहुत कम होती है। खनन और पूर्वेक्षण के लिए अनुमति प्राप्त क्षेत्रफल में बढ़ोतरी, इन कार्यों को आर्थिक रूप से व्यावहारिक बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण है।’

अधिकारी ने कहा कि यह फैसला MMDR ऐक्ट के दायरे में किया जाएगा। ऐक्ट में केंद्र सरकार को क्षेत्रफल बढ़ाने की अनुमति दी गई है, लेकिन यह तभी हो सकता है, जब खनिज या उद्योग के विकास के हित में हो।

सावधानी के विषय

केंद्र सरकार व्यक्तिगत खननकर्ताओं के लिए क्षेत्रफल में बढ़ोतरी करने जा रही है, जिसे देखते हुए विशेषज्ञों ने तकनीक बेहतर करने पर जोर दिया है, जिससे खदानों में से पूरी तरह से खनिज निकाला जा सके।

विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि खनन के पर्यावरण पर पड़ने वाले असर की निगरानी जरूरी है। उन्होंने रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र जैसी व्यापक शब्दावली को लेकर भी चेतावनी दी है, जिसके नाम पर पर्यावरण संबंधी चिंता की अवहेलना की जाती है।

विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी में जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र के प्रमुख देवादित्य सिन्हा ने कहा, ‘कुछ क्षेत्रों या उद्योगों को समर्थन देने के लिए रणनीतिक महत्त्व और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे भारी भरकम शब्दों का उपयोग करने और फिर चुनिंदा रूप से पर्यावरण अनुपालन और सार्वजनिक जांच में ढील दिया जाना खतरनाक प्रवृत्ति है। हमें पर्यावरण संबंधी सख्त मानदंडों और मजबूत नियामक निगरानी के माध्यम से अपनी पारिस्थितिक संपदा को संरक्षित करने की अनिवार्यता के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने की जरूरत है।

सिन्हा ने नीतिगत फैसले लेने के पहले पर्यावरण पर उसके असर के आकलन पर जोर दिया है। उन्होंने कहा, ‘नीतिगत फैसले लेने से पहले रणनीतिक पर्यावरण संबंधी असर का आकलन भी महत्त्वपूर्ण है। हम अक्सर अपनी आर्थिक गणनाओं में पारिस्थितिकी, सामाजिक और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर जैसे बाहरी प्रभावों को ध्यान में नहीं रखते। खासतौर पर ऐसा तब हो रहा है, जब जलवायु परिवर्तन से जुड़ी घटनाएं राष्ट्रीय खतरा बन रही हैं।’

एक और विशेषज्ञ ने कहा कि सरकार को सिर्फ क्षेत्रफल ही नहीं बढ़ाना चाहिए, बल्कि हाईटेक उपकरणों का इस्तेमाल भी बढ़ाने की जरूरत है, जिससे खदानों की पूरी क्षमता का उपयोग किया जा सके।

विशेषज्ञ ने जोर दिया कि खनिज निकालने की तकनीकों में नवोन्मेष करने की जरूरत है, जिससे 2 प्रमुख क्षेत्रों में सुधार हो सके। पहला, खनिज की निकासी की प्रक्रिया के दौरान इससे जुड़े कार्बन को कम किया जा सके, जिसका असर भविष्य में कार्बन बॉर्डर अडजेस्टमेंट मैकेनिज्म से संबंधित कानूनों पर पड़ सकता है। दूसरे, इससे मौजूदा अयस्कों से अधिक उत्पादन के लिए खनिजों को शुद्ध रूप में बदलने की दक्षता के लिए यह जरूरी है।

First Published : July 14, 2024 | 9:36 PM IST