ब्याज दरों में कमी का बैंक के उधारी और जमा कारोबार पर भी असर देखने को मिल रहा है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने बुधवार को जो आंकड़े जारी किए हैं उसके अनुसार पिछले तीन महीनों में पहली बार सूचीबध्द वाणिज्यिक बैंकों, जिसमें ग्रामीण बैंक भी शामिल हैं, के जमा आधार (डिपॉजिट बेस) में कमी आई है।
पिछले 13 मार्च को समाप्त हुए पखवाड़े में इन बैंकों के जमा आधार में 3,362 करोड रुपये की कमी आई है जबकि इससे पहले पिछले 14 दिन की अवधि में इमें 49,891 करोड रुपये की बढ़ोतरी हुई थी।
लगातार दो सालों में ऐसा पहली बार हुआ है कि बैंकों के जमा आधार में पहले पखवाड़े में कमी दर्ज की गई है। हालांकि वर्ष 2004 और 2007 के बीच की समान अवधि में जमा रकम में 9,500 करोड और 20,500 करोड रुपये की बढ़ोतरी हुई थी।
मार्च के दौरान बैंकों के जमा अधार में काफी बढ़ोतरी देखी जाती है। बैंकरों का कहना है कि इस समय करों में बचत करने के लिए जमाकर्ता बैंक से अपने रकम को निकालकर विभिन्न निवेश के स्रोतों, मसलन कर्मचारी भविष्य निधि और जीवन बीमा पॉलिसियों में डाल रहे हैं, जिस वजह से जमा आधार में कमी देखी जा रही है।
ठीक इसी समय बैंकरों ने इस बात की ओर भी इशारा किया है कि मांग जमाओं में इसी पखवाड़े के दौरान 1,580 करोड रुपये की तेजी आई है जबकि टाइम डिपॉजिट में 4,943 करोड रुपये की कमी आई है। मांग जमाओं की अवधि एक साल से कम की होती है।
हाल के महीनों में जब बैंक जमा आधार में ज्यादा से ज्यादा रकम जुटाने के लिए इन पर ऊंची ब्याज दे रहे थे उस समय टाइम डिपाजिट में मांग जमाओं की अपेक्षा ज्यादा की बढ़ोतरी देखने को मिली थी। इसकी वजह यह थी कि जमाकर्ता बेहतर प्रतिफल हासिल करना चाहते थे। लेकिन दिसंबर के बाद से आरबीआई द्वारा फंडों की कीमतों कमी लाने के प्रयासों बाद बैंकों ने अपनी जमा दरों में कमी करना शुरू कर दिया है।
इसके अलावा एक बैंकर ने यह भी कहा कि ऐसे बैंक जिनके पास पर्याप्त नकदी थी, उन्होंने भी जमा दरों में कमी करना शुरू कर दिया क्योंकि उस समय ये कर्ज देने में कोताही बरत रहे थे। इसकेबाद बैंकों के लिए ऊंची कीमतों पर फंड जुटाना आसान नहीं रह गया था।
