गर्मियों में ज्यादा बिजली की मांग के दौरान 4 राज्यों- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और राजस्थान की सरकारी बिजली इकाइयों ने कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के भुगतान में चूक की। ऐसे में सीआईएल ने इन राज्यों को कोयले की आपूर्ति कम कर दी।
मॉनसून में देरी और कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद अर्थव्यवस्था खुलने के बाद बिजली की मांग बढ़ी है। परिणामस्वरूप बिजली की मांग अगस्त में 200 गीगावॉट के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। बहरहाल इस दौरान सीआईएल ने बारिश के महीनों के दौरान कोयले का उत्पादन घटा दिया था। कोयले की मांग व आपूर्ति में अंतर के कारण 90 गीगावॉट क्षमता के ताप बिजली संयंत्रों में इस समय 8 दिन का ही कोयले का स्टॉक है।
इसके बाद एनटीपीसी जैसे बिजली उत्पादक हरकत में आए और उन्होंने आयातित कोयले का विकल्प चुना या अपनी खदानों से कोयला उत्पादन तेज कर दिया। केंद्र सरकार ने कहा कि आयातित कोयले पर आधारित उत्पादन इकाइयां ज्यादा उत्पादन और बिक्री करें। अधिकारियों का कहना है कि बिजली का बढ़ता संकट टल गया है, लेकिन इस बात का डर भी है कि भुगतान अनुशासन और राज्यों की योजना की वजह से ऐसा फिर हो सकता है। सीआईएल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हमने राज्यों और उत्पादन कंपनियों से कहा है कि अक्टूबर, 2020 के पहले कोयले का भंडारण कर लें। तमाम बिजली संयंत्रों ने नवंबर, 2020 से जून, 2021 के लिए अपनी कोयले की मात्रा नियमित की है, अपने स्टॉक का खपत बढ़ाया है और बफर स्टॉक बनाया है। इसकी वजह से इन संयंत्रों में स्टॉक की कमी हुई है।’
बिजनेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए बिजली मंत्रालय के सचिव आलोक कुमार ने कहा, ‘राज्य अग्रिम कोयले का भंडार नहीं करते हैं और उन्होंने सीआईएल को भुगतान में भी देरी की। डिस्कॉम बिजली उत्पादन कंपनियों को समय से भुगतान नहीं करते, जिसकी वजह से सीआईएल के भुगतान में देरी होती है। डिस्कॉम को अपनी रिकवरी दुरुस्त करनी चाहिए।’
कुमार ने कहा कि 4 राज्यों को अपना भुगतान नियमित करने के लिए पत्र लिखा गया, जिससे उनके पास कोयले का पर्याप्त भंडार रहे। कुमार ने कहा, ‘एक सप्ताह के लिए हमने फैसला किया कि उन संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति रोक दी जाए जिनके पास पर्याप्त कोयला है और जिन संयंत्रों को कोयले की कमी है, उन्हें आपूर्ति की जाए।’ बिजली सचिव ने यह भी कहा कि मंत्रालय ने आयातित कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को अपनी बिजली एक्सचेंजों को अपने मूल्य जोखिम पर और बिजली खरीद समझौतों को ध्यान में रखते हुए बेचने को कहा है। मंत्रालय ने पिछले सप्ताह एक बयान में कहा था कि वह मुंद्रा के दो आयातित कोयला आधारित संयंत्रों टाटा पावर यूएमपीपी और अदाणी मुंद्रा द्वारा एक्सचेंजों में बिजली बेचने के मसले पर बात कर रहा है। मंत्रालय से वैधानिक आदेश की प्रतीक्षा है। अधिकारियों ने कहा कि बिजली खरीदने वाले राज्य मुंद्रा इकाई की बिजली हाजिर बाजार में बेचे जाने को लेकर सहमत हैं।
अधिकारियों का कहना है कि अगले पखवाड़े में कोयले की आपूर्ति सुधर सकती है। लेकिन भुगतान आपूर्ति में अंतर बने रहने की संभावना है। जुलाई के अंत तक सीआईएल का जेनको व राज्यों पर बकाया 17,000 करोड़ रुपये था, जो 3 महीने पहले की तुलना में 40 प्रतिशत ज्यादा है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक करीब 20 गीगावॉट क्षमता के संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति में कटौती करनी पड़ी क्योंकि सीआईएल को भुगतान में देरी हुई है।
तमिलनाडु ने सीआईएल को भुगतान में सबसे ज्यादा चूक की है, जिसके बिजली संयंत्रों का औसत कोयला स्टॉक 10 दिन रह गया है, जो पहले 15 दिन था। बहरहाल राज्य रेलवे पर आरोप लगा रहा है। राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हमें जितने रैक का आश्वासन दिया गया था, उसका सिर्फ 60-70 प्रतिशत मिल रहा है। मौजूदा कमी रेलवे ने पैदा की है क्योंकि वह मांग पूरी कर पाने में सक्षम नहीं हैं।’
वहीं रेलवे ने इन दावों का खंडन किया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में 25.3 करोड़ टन कोयला लोड किया गया, जो पिछले साल की समान अवधि से 34 प्रतिशत ज्यादा है।