प्रतिपूर्ति शुल्क में कटौती की वजह से 150 से अधिक जीवन-रक्षक दवाओं की कीमतों में कमी आने की संभावना है।
वैसे भी बजट में आयातित दवाई के रसायनों को सस्ता बनाने की बात कही गई थी।दवाओं की कीमतों को निर्धारित करने वाली देश की सर्वोच्च संस्था नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने भी इस तरह की दवाओं के 1000 पैकेटों की कीमतों का निर्धारण बजट के बाद करना शुरू कर दिया है। फाइजर, नोवो नॉरडिस्क,सनोफी एवेंटिस और एलिलिल्ली जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के द्वारा आयातित दवाओं की कीमतों में भी कमी कर दी गई है।
उद्योगों के अनुमान के मुताबिक जिन दवाओं की कीमतों में बदलाव होना है उनका अनुमानित बाजार 4000 करोड़ रुपये का है। इन दवाइयों में कार्बामेजेपाइन, सालब्यूटामोल सल्फेट, राइफे?पीसिन, मानव इंसुलिन, बीटामीथाजोन और रेनीटीडाइन आदि जीवन-रक्षक दवाइयों की कीमतें कम होंगी।
एनपीपीए ने इस तरह के 64 बल्क ड्रग्स को चिह्नित किया है जिसके दामों का निर्धारण सरकार करती है। इनमें 36 दवाइयों के रसायन बाहर से मंगाए जाते हैं। प्रतिपूर्ति शुल्क को 16 प्रतिशत के बजाय 8 प्रतिशत कर देने के कारण इन दवाओं की कीमतों में कमी आ रही है। अथॉरिटी इस संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय कीमतों में हो रहे उतारचढ़ाव का भी ध्यान रखेगी।
एक सूत्र के मुताबिक 36 ऐसी दवाइयां जिन्हें आयात किया जाता है,उनमें से 33 दवाओं के दामों में परिवर्तन किया गया है। ऐसे 21 मामलों में दवाओं के दाम 1 प्रतिशत से ज्यादा कम कर दिया गया है। एनपीपीए के निर्देशों के अनुसार यह कमी उपभोक्ताओं को भी मुहैया कराई जाएगी।
एनपीपीए ने यह कदम 20 जून के बाद उठाया और 38 दवाओं की कीमतें कम कर दी गई। बल्क ड्रग्स की कीमतों में कमी के बाद ऐसी भी योजना बनाई जा रही है कि इसके अंतिम उत्पाद की कीमतों में भी कमी की जाए। हालांकि इस कदम को पूरा करने में एक साल का वक्त लग सकता है।
बजट की घोषणा के बाद एनपीपीए ने दवाओं की कमी के संदर्भ में तीसरी बार निर्देश जारी किए हैं। सरकार ने दवाओं पर उत्पाद शुल्क को 16 प्रतिशत से घटाकर 8 प्रतिशत कर दिया है।