facebookmetapixel
छोटी कारों की CAFE छूट पर उलझी इंडस्ट्री; 15 कंपनियों ने कहा ‘ना’, 2 ने कहा ‘हां’Tenneco Clean Air IPO: तगड़े GMP वाले आईपीओ का अलॉटमेंट आज हो सकता है फाइनल, फटाफट चेक करें ऑनलाइन स्टेटसचीनी लोग अब विदेशी लग्जरी क्यों छोड़ रहे हैं? वजह जानकर भारत भी चौंक जाएगाक्रिमिनल केस से लेकर करोड़पतियों तक: बिहार के नए विधानसभा आंकड़ेPEG रेशियो ने खोला राज – SMID शेयर क्यों हैं निवेशकों की नई पसंद?Stock Market Update: हरे निशान में खुला बाजार, सेंसेक्स 100 अंक चढ़ा; निफ्टी 25900 के ऊपरBihar CM Oath Ceremony: NDA की शपथ ग्रहण समारोह 20 नवंबर को, पीएम मोदी समेत कई नेता होंगे मौजूदStocks To Watch Today: Websol, TruAlt Bioenergy, IRB Infra सहित कई कंपनियां रहेंगी लाइमलाइट मेंबिहार चुनाव पर भाकपा माले के महासचिव दीपंकर का बड़ा आरोप: राजग के तीन ‘प्रयोगों’ ने पूरी तस्वीर पलट दीदोहा में जयशंकर की कतर नेतृत्व से अहम बातचीत, ऊर्जा-व्यापार सहयोग पर बड़ा फोकस

केंद्र अपने हाथों में लेना चाह रहा उप-पारेषण नेटवर्क

Last Updated- December 12, 2022 | 1:20 AM IST

राज्यों के अंतिम छोर तक बिजली पारेषण तंत्र का कायाकल्प करने की संभावना तलाश रहे केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने राज्यों को परामर्श जारी किया है। इसके तहत 33 किलोवाट क्षमता वाले बिजली स्टेशन बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के बजाय अब राज्य पारेषण यूटिलिटी (एसटीयू) के अंतर्गत आएंगे। मंत्रालय ने यह सुझाव भी दिया है कि अगर राज्य एसटीयू को वित्तीय सहायता देने में अक्षम रहते हैं तो 33 केवी सिस्टम को पावरग्रिड कॉर्पोरेशन की अगुआई वाले संयुक्त उपक्रम को सौंप देना चाहिए।
यह कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब राज्य केंद्र पर आरोप लगा रहे हैं कि वह विद्युत अधिनियम, 2003 में संशोधन के जरिये उनके अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। कई राज्यों ने संसद सत्र के दौरान भी कहा था कि केंद्र राज्यों के अधिकारों का उल्लंघन कर रही है। इसमें बिजली क्षेत्र के संघीय ढांचे का तर्क दिया गया था, जिसमें उत्पादन और पारेषण केंद्र की जिम्मेदारी है तथा वितरण राज्यों का विषय है।

केंद्रीय बिजली मंत्रालय के अनुसार 33 केवी सिस्टम घाटे में चल रहे हैं। 33केवी या उप-पारेषण सिस्टम केंद्र और राज्य के विद्युत ग्रिड के बीच की कड़ी है। केंद्रीय बिजली मंत्रालय की एक समिति के अनुसार 33 केवी का परिचालन घाटा 4.8 फीसदी है जबकि 66 से 220 केवी का नुकसान 1.72 से 2.39 फीसदी है। समिति ने कहा है कि 33 केवी की सालाना उपलब्धता 96.3 फीसदी है जबकि 66 से 220 केवी की उपलब्धता स्तर 98.5 से 99.4 फीसदी है। मंत्रालय ने पावरग्रिड कॉर्पोरेशन के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक की अगुआई में एक समिति का गठन किया था, जिसमें केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, हरियाणा, महाराष्टï्र और ओडिशा के एसटीयू तथा सेंट्रल ट्रांसमिशन यूटिलिटी ऑफ इंडिया के प्रतिनिधि शामिल थे। समिति को 33 केवी के नुकसान को कम करने के उपाय तलाशने का जिम्मा सौंपा गया था।
समिति ने कहा कि वर्तमान में डिस्कॉम द्वारा संचालित 33 केवी सिस्टम के प्रदर्शन में सुधार की व्यापक संभावना है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘वितरण प्रणाली मुख्य रूप से उपभोक्ता केंद्रित इकाई है, ऐसे में बिजली आपूर्ति में बाधा आने या गड़बड़ी होने पर डिस्कॉम का ध्यान शीघ्रता से बिजली आपूर्ति बहाल करने पर होता है और नए उपभोक्ताओं को कनेक्शन देने पर भी जोर रहता है। डिस्कॉम वितरण नेटवर्क के विस्तार और इसके लिए दीर्घावधि की योजना बनाने पर ध्यान नहीं देती हैं। इसके साथ ही डिस्कॉम की खस्ताहाल वित्तीय स्थिति के कारण 33 केवी सिस्टम के विस्तार और नई तकनीक अपनाने में भी दिक्कत आती है। बिजली मंत्रालय की गणना के अनुसार 33 केवी सिस्टम में सुधार से सालाना राजस्व 7,865 करोड़ रुपये तक बढ़ सकता है।

इसलिए बिजली मंत्रालय ने 33 केवी सिस्टम डिस्कॉम से लेकर एसटीयू को देने का सुझाव दिया है ताकि बेहतर योजना बनाई जा सके और घाटे को कम करने के साथ ही भरोसमंद बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित किया जा सके। मंत्रालय ने कहा है कि 33 केवी सिस्टम के आधुनिकीकरण और उन्नयन के लिए राज्यों को एसटीयू को वित्तीय मदद देने की जरूरत होगी। हालांकि राज्य सरकार ऐसा करने में सक्षम नहीं होती हैं तो एसटीयू इसके लिए पावरग्रिड के साथ 50-50 फीसदी हिस्सेदारी वाला संयुक्त उपक्रम बनाने के लिए कह सकती है।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह दांव उलटा भी पड़ सकता है और राज्य-केंद्र के बीच टकराव बढ़ सकता है। इस क्षेत्र से जुड़ी एक कंपनी के वरिष्ठï अधिकारी ने कहा कि अगर 33 केवी डिस्कॉम के हाथ से निकल जाएगी तो उसके मूल्य में खासी गिरावट आएगी और उसकी आय भी घट सकती है।

एनपीसीएल ग्रेटर नोएडा के पूर्व अध्यक्ष और मर्काडस एनर्जी के राजीव गोयल ने कहा, ’33 केवी नेटवर्क एसटीयू को देने में बिजली मंत्रालय को कानूनी और नियामकीय प्रावधानों से भी दो-चार होना होगा। यह कवायद डिस्कॉम की वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखकर की जा रही है लेकिन हर राज्य की स्थिति एक समान नहीं है।’

First Published - September 5, 2021 | 11:17 PM IST

संबंधित पोस्ट